ध्यान मनुष्य को उस छोर पर ले जाता है। जहां ना कोई चिंता है और ना ही कोई मोह-माया का बंधन। ध्यान में व्यक्ति उस परम शक्ति से साक्षात्कार करता है।
वह ध्यान के समय उस ईश्वरीय शक्ति के साथ एकाकार हो जाना चाहता है जिसने इस नश्वर जगत का निर्माण किया है। कोई भी व्यक्ति ध्यान में सांसारिक बंधनों से दूर एक अलग दुनिया में रहता है।
हम मस्तिष्क और ध्यान के बारे में आधुनिक शोधों पर अमूमन चर्चा करते हैं। वर्तमान में यह सिद्ध हो चुका है कि ध्यान काफी हद तक मस्तिष्क को और भी ज्यादा शक्तिशाली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
ध्यान की कुंजी है मन
हाल ही में हुए एक अनुसंधान से यह सिद्ध हुआ है कि अधिक सोचना मस्तिष्क के ह्रास का कारण बन सकता है। लेकिन अभी तक उनकी पकड़ में यह नहीं आया कि ध्यान ही एक कुंजी है जो मन को शांति प्रदान करती है।
ध्यान हमारे मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। कुछ समय पहले 'द इकॉनॉमिस्ट' मैगजीन में इसे कुछ इस तरह कहा गया है कि जैसे 'कठोर परिश्रम हाथों पर अपने निशान छोड़ जाता है, वैसे ही अधिक सोच-विचार मस्तिष्क पर अपने निशान छोड़ जाते हैं।'
शोधकर्ताओं का मानना है कि 'मस्तिष्क एक अति संवेदनशील अंग है एक खिलाड़ी का मस्तिष्क एक कंप्यूटर इस्तेमाल करने वाले से सर्वथा भिन्न दिखाई देता है। यानी हर व्यक्ति के सोचने समझने की प्रक्रिया बहुत कुछ अलग ही होती है। इसे आप ध्यान के जरिए ही नियंत्रण में कर सकते हैं।'
माहौल का असर
बर्कले में स्थित कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में हुई एक रिसर्च में बताया गया है कि 'उत्तेजनापूर्ण वातावरण में पले चूहों के मस्तिष्क अधिक सघन और जटिल थे बजाए उन चूहों के जिन्हें काफी तनाव वाले माहौल में पाला गया।
यहां तक कि जिन बूढ़े चूहों को रोचक पिंजरों में रखा गया था उनके मस्तिष्क में भी वही बदलाव दिखाई दिये। और उन कोशिकाओं को सहारा देने वाले स्नायु से अधिक जुड़ा पाया गया।
यह 'इस्तेमाल करो या गवां दो' कहावत को सार्थक करते हैं केवल मस्तिष्क के सेलों में ही बढ़ोतरी नहीं होती,बल्कि आवश्यक ऊर्जा से स्रोतों को लाने वाला रक्त-प्रवाह भी बढ़ता है।'
चुनौतियों का संसार
इलिनॉयस यूनिवर्सिटी में विलियम ग्रीनो और उसके साथियों द्वारा की गई एक रिसर्च में तीन तरह के चूहों पर विभिन्न वातावरण में प्रयोग किया गया। 'एक्रोबेट' नामक चूहों को ऐसा चुनौती भरा कार्य दिया गया जिसमें एक-दूसरे का सहयोग वांछित था।
'जौक्स' नामक चूहों को केवल शारीरिक चुनौती दी गयी तथा 'काऊच पटेटो' नामक चूहों को कोई चुनौती नहीं दी गयी। एक्रोबेट चूहों के मस्तिष्क के उन भागों में नाटकीय बदलाव दिखाई दिए जिनका योगदान सहयोग बिठाने में था।
अभिन्न हिस्सा
भारतीय संस्कृति में ध्यान की पुरानी परिपाटी का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। आदिकाल से ही यह ऋषि-मुनियों की दैनिक दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा रहा है।
ध्यान का जिक्र संसार के लगभग हर धर्म में मिलता है। शायद ही कोई ऐसा धर्म हो जहां ध्यान को उनके विचारों से दूर रखा गया हो। यह ध्यान ही है जिसके बल पर वैदिक काल में ऋचाओं का उद्गम हुआ।
जाहिर है कि ध्यान और मस्तिष्क का नाता आधुनिक विज्ञान ने बहुत बाद में दिया हो पर यह ध्यान भारतीय संस्कृति में आदिकाल से रचा-बसा है।
वह ध्यान के समय उस ईश्वरीय शक्ति के साथ एकाकार हो जाना चाहता है जिसने इस नश्वर जगत का निर्माण किया है। कोई भी व्यक्ति ध्यान में सांसारिक बंधनों से दूर एक अलग दुनिया में रहता है।
हम मस्तिष्क और ध्यान के बारे में आधुनिक शोधों पर अमूमन चर्चा करते हैं। वर्तमान में यह सिद्ध हो चुका है कि ध्यान काफी हद तक मस्तिष्क को और भी ज्यादा शक्तिशाली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
ध्यान की कुंजी है मन
हाल ही में हुए एक अनुसंधान से यह सिद्ध हुआ है कि अधिक सोचना मस्तिष्क के ह्रास का कारण बन सकता है। लेकिन अभी तक उनकी पकड़ में यह नहीं आया कि ध्यान ही एक कुंजी है जो मन को शांति प्रदान करती है।
ध्यान हमारे मन मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। कुछ समय पहले 'द इकॉनॉमिस्ट' मैगजीन में इसे कुछ इस तरह कहा गया है कि जैसे 'कठोर परिश्रम हाथों पर अपने निशान छोड़ जाता है, वैसे ही अधिक सोच-विचार मस्तिष्क पर अपने निशान छोड़ जाते हैं।'
शोधकर्ताओं का मानना है कि 'मस्तिष्क एक अति संवेदनशील अंग है एक खिलाड़ी का मस्तिष्क एक कंप्यूटर इस्तेमाल करने वाले से सर्वथा भिन्न दिखाई देता है। यानी हर व्यक्ति के सोचने समझने की प्रक्रिया बहुत कुछ अलग ही होती है। इसे आप ध्यान के जरिए ही नियंत्रण में कर सकते हैं।'
माहौल का असर
बर्कले में स्थित कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय में हुई एक रिसर्च में बताया गया है कि 'उत्तेजनापूर्ण वातावरण में पले चूहों के मस्तिष्क अधिक सघन और जटिल थे बजाए उन चूहों के जिन्हें काफी तनाव वाले माहौल में पाला गया।
यहां तक कि जिन बूढ़े चूहों को रोचक पिंजरों में रखा गया था उनके मस्तिष्क में भी वही बदलाव दिखाई दिये। और उन कोशिकाओं को सहारा देने वाले स्नायु से अधिक जुड़ा पाया गया।
यह 'इस्तेमाल करो या गवां दो' कहावत को सार्थक करते हैं केवल मस्तिष्क के सेलों में ही बढ़ोतरी नहीं होती,बल्कि आवश्यक ऊर्जा से स्रोतों को लाने वाला रक्त-प्रवाह भी बढ़ता है।'
चुनौतियों का संसार
इलिनॉयस यूनिवर्सिटी में विलियम ग्रीनो और उसके साथियों द्वारा की गई एक रिसर्च में तीन तरह के चूहों पर विभिन्न वातावरण में प्रयोग किया गया। 'एक्रोबेट' नामक चूहों को ऐसा चुनौती भरा कार्य दिया गया जिसमें एक-दूसरे का सहयोग वांछित था।
'जौक्स' नामक चूहों को केवल शारीरिक चुनौती दी गयी तथा 'काऊच पटेटो' नामक चूहों को कोई चुनौती नहीं दी गयी। एक्रोबेट चूहों के मस्तिष्क के उन भागों में नाटकीय बदलाव दिखाई दिए जिनका योगदान सहयोग बिठाने में था।
अभिन्न हिस्सा
भारतीय संस्कृति में ध्यान की पुरानी परिपाटी का एक अभिन्न हिस्सा रहा है। आदिकाल से ही यह ऋषि-मुनियों की दैनिक दिनचर्या का अभिन्न हिस्सा रहा है।
ध्यान का जिक्र संसार के लगभग हर धर्म में मिलता है। शायद ही कोई ऐसा धर्म हो जहां ध्यान को उनके विचारों से दूर रखा गया हो। यह ध्यान ही है जिसके बल पर वैदिक काल में ऋचाओं का उद्गम हुआ।
जाहिर है कि ध्यान और मस्तिष्क का नाता आधुनिक विज्ञान ने बहुत बाद में दिया हो पर यह ध्यान भारतीय संस्कृति में आदिकाल से रचा-बसा है।
Source: Spiritual News & Aaj Ka Rashifal
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