महाकाल की नगरी उज्जैन। यहां के अखंड ज्योति मंदिर में बजरंगबली की मूर्ति से लेकर पूजन की बात ही निराली है। जहां एक तरफ बजरंगबली की सिंदूरी प्रतिमा भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती है, तो वहीं पांव के नीचे दबी लंकिनी राक्षसी उनके पराक्रम की कहानी सुनाती है।
कहते हैं लक्ष्मण को बचाने के लिए जब हनुमान संजीवनी लेकर आ रहे थे तो लंकिनी नाम की राक्षसी ने उनका रास्ता रोक कर उन्हें जाने से रोका, जिसके बाद हनुमान, लंकिनी को अपने पैरों के नीचे दबाकर आगे बढ़ गए थे। इस मंदिर में महावीर के उसी रूप के दर्शन होते हैं जहां आज भी हनुमान के पैरों तले लंकिनी विराजमान है।
पूरे साज श्रृंगार के साथ बाल ब्रह्मचारी का ये रूप बड़ा ही मनमोहक है। दक्षिणामुखी हनुमान की इस प्रतिमा में उनके एक हाथ में संजीवनी तो कंधे पर गदा सुशोभित होती है। हाथों में बाजूबंद, पांव में पाजेब और कलाई में कड़े पहने हुए महावीर के दिव्य रूप के दर्शन मात्र से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
मंदिर के नाम के अनुरूप ही यहां जलता अखंड दिया भक्तों को बजरंबली के चमत्कार की कहानी सुनाता है। वैसे तो देखने में ये मंदिर हनुमान के अन्य मंदिरों की तरह ही है लेकिन मंदिर में सालों से जल रहे अखंड दीये में बजरंगबली की चमत्कारी शक्तियां समाहित हैं।
कहते हैं साढ़ेसाती से परेशान भक्त अगर इस मंदिर में आकर इस अखंड दीये के दर्शन कर लें और मंदिर में आटे का एक दीया जला दें तो शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलते देर नहीं लगती।
भक्त हनुमान जी को यहां कई तरह के प्रसाद चढ़ाते हैं. कहते हैं भक्त यहां अपनी मनोकामना प्रसाद के माध्यम से लेकर आते हैं। अगर किसी को झगड़े, मकदमों से छुटकारा चाहिए तो एक नारियल के अर्पण मात्र से उसके तमाम कष्टों का निवारण हो जाता है। ठीक उसी तरह जिन भक्तों को संतान की कामना है वो अपनी शक्ति और भक्ति के अनुसार 1, 2 या 5 किलो तेल अखंड ज्योति में चढ़ाने का संकल्प लेते हैं।
चना-चिरौंजी से प्रसन्न होने वाले हनुमान को यहां विशेषतौर से अखरोट के प्रसाद का भोग लगाया जाता है. कहते हैं जिन भक्तों की मन्नत पूरी होती है वो यहां आकर आटे में गुड़ मिलाकर रोट का प्रसाद तैयार करते हैं और बजरंगबली को भोग लगाते हैं।
मंदिर में प्रतिदिन होने वाली आरती का गवाह बनने के लिए बड़ी संख्या में भक्तों सैलाब उमड़ता है। कहते हैं बल, विद्या और बुद्धि का वरदान पाने के लिए यहां हनुमान के संग उनकी दायीं ओर रखी हुई चंदन की गदा के दर्शन करना भी जरूरी है। मंगलवार और शनिवार को यहां पूजा करने का विशेष महत्व है।
कहते हैं लक्ष्मण को बचाने के लिए जब हनुमान संजीवनी लेकर आ रहे थे तो लंकिनी नाम की राक्षसी ने उनका रास्ता रोक कर उन्हें जाने से रोका, जिसके बाद हनुमान, लंकिनी को अपने पैरों के नीचे दबाकर आगे बढ़ गए थे। इस मंदिर में महावीर के उसी रूप के दर्शन होते हैं जहां आज भी हनुमान के पैरों तले लंकिनी विराजमान है।
पूरे साज श्रृंगार के साथ बाल ब्रह्मचारी का ये रूप बड़ा ही मनमोहक है। दक्षिणामुखी हनुमान की इस प्रतिमा में उनके एक हाथ में संजीवनी तो कंधे पर गदा सुशोभित होती है। हाथों में बाजूबंद, पांव में पाजेब और कलाई में कड़े पहने हुए महावीर के दिव्य रूप के दर्शन मात्र से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
मंदिर के नाम के अनुरूप ही यहां जलता अखंड दिया भक्तों को बजरंबली के चमत्कार की कहानी सुनाता है। वैसे तो देखने में ये मंदिर हनुमान के अन्य मंदिरों की तरह ही है लेकिन मंदिर में सालों से जल रहे अखंड दीये में बजरंगबली की चमत्कारी शक्तियां समाहित हैं।
कहते हैं साढ़ेसाती से परेशान भक्त अगर इस मंदिर में आकर इस अखंड दीये के दर्शन कर लें और मंदिर में आटे का एक दीया जला दें तो शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलते देर नहीं लगती।
भक्त हनुमान जी को यहां कई तरह के प्रसाद चढ़ाते हैं. कहते हैं भक्त यहां अपनी मनोकामना प्रसाद के माध्यम से लेकर आते हैं। अगर किसी को झगड़े, मकदमों से छुटकारा चाहिए तो एक नारियल के अर्पण मात्र से उसके तमाम कष्टों का निवारण हो जाता है। ठीक उसी तरह जिन भक्तों को संतान की कामना है वो अपनी शक्ति और भक्ति के अनुसार 1, 2 या 5 किलो तेल अखंड ज्योति में चढ़ाने का संकल्प लेते हैं।
चना-चिरौंजी से प्रसन्न होने वाले हनुमान को यहां विशेषतौर से अखरोट के प्रसाद का भोग लगाया जाता है. कहते हैं जिन भक्तों की मन्नत पूरी होती है वो यहां आकर आटे में गुड़ मिलाकर रोट का प्रसाद तैयार करते हैं और बजरंगबली को भोग लगाते हैं।
मंदिर में प्रतिदिन होने वाली आरती का गवाह बनने के लिए बड़ी संख्या में भक्तों सैलाब उमड़ता है। कहते हैं बल, विद्या और बुद्धि का वरदान पाने के लिए यहां हनुमान के संग उनकी दायीं ओर रखी हुई चंदन की गदा के दर्शन करना भी जरूरी है। मंगलवार और शनिवार को यहां पूजा करने का विशेष महत्व है।
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