कहते हैं एकादशी को चावल नहीं खाना चाहिए। यह तथ्य कहां से अस्तित्व में आया, इसके पीछे कई भ्रांतियां हैं। ऐसे समय अक्सर एक सवाल जेहन में पैदा होता है कि चावल और अन्य अन्नों की खेती में क्या अंतर है?
यह सर्वविदित है कि चावल की खेती के लिए सर्वाधिक जल की आवश्यकता होती है। एकादशी का व्रत इंद्रियों सहित मन के निग्रह के लिए किया जाता है। ऐसे में यह आवश्यक है कि उस वस्तु का कम से कम या बिल्कुल उपभोग नहीं किया जाए जिसमें जलीय तत्व की मात्रा अधिक होती है।
जल का संबंध चंचलता से
इसका एक सटीक कारण यह है कि चंद्र का संबंध जल से है। वह जल को अपनी और आकर्षित करता है। यदि व्रत करने वाला चावल का भोजन करे तो चंद्र किरणें उसके शरीर के संपूर्ण जलीय अंश को तरंगित करेंगी। इसके परिणाम स्वरूप मन में विक्षेप और संशय का जागरण होगा।
इस कारण व्रत करने वाला अपने व्रत पर अडिग नहीं रह सकेगा। यही कारण है कि इंद्रियों को संयमित रखने व मानसिक दृढ़ता बनाए रखने के लिए एकादशी के दिन चावल नहीं खाए जाते।
यह सर्वविदित है कि चावल की खेती के लिए सर्वाधिक जल की आवश्यकता होती है। एकादशी का व्रत इंद्रियों सहित मन के निग्रह के लिए किया जाता है। ऐसे में यह आवश्यक है कि उस वस्तु का कम से कम या बिल्कुल उपभोग नहीं किया जाए जिसमें जलीय तत्व की मात्रा अधिक होती है।
जल का संबंध चंचलता से
इसका एक सटीक कारण यह है कि चंद्र का संबंध जल से है। वह जल को अपनी और आकर्षित करता है। यदि व्रत करने वाला चावल का भोजन करे तो चंद्र किरणें उसके शरीर के संपूर्ण जलीय अंश को तरंगित करेंगी। इसके परिणाम स्वरूप मन में विक्षेप और संशय का जागरण होगा।
इस कारण व्रत करने वाला अपने व्रत पर अडिग नहीं रह सकेगा। यही कारण है कि इंद्रियों को संयमित रखने व मानसिक दृढ़ता बनाए रखने के लिए एकादशी के दिन चावल नहीं खाए जाते।
Source: Spiritual News in Hindi & Hindu Calendar 2014
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