हमेशा ध्यान रखिए शरीर छूटता है, शब्द नहीं। शब्द में नीति व प्रभाव होना चाहिए। हम देखते हैं कि एक ही बात कोई व्यक्ति कहता है तो कोई असर नहीं होता है और जब उसी बात को दूसरा व्यक्ति कहता है तो उसका व्यापक असर होता है। ऐसा इसलिए कि दूसरे व्यक्ति की बात में वजन होता है।
यह वजन भजन से वचन में उपजता है। यह बात शनिवार को मालवा भूषण संत कमलकिशोर नागर ने गोम्मटगिरि के पास जम्बूड़ी हप्सी में आयोजित भागवत कथा में कही। संतश्री ने कहा कि रोटी पाने के लिए हमें प्रयत्न और पाप करना होते हैं। रोटी के लिए किए गए पाप से मुक्ति के लिए हमेशा घर में बनने वाली पहली रोटी गाय के लिए निकाली जाती है।
जीवन में हम नौकरी-व्यवसाय आदि करके जो धन अर्जित करते हैं, उसकी शुद्धता के लिए यह आवश्यक है कि उसका दसवां भाग दान कर दिया जाए। यह दसवां भाग यदि दक्षिणा के रूप में गुरु या ब्राह्मण को दिया जा रहा है तो इस हिस्से को प्राप्त करने वाले व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने तप द्वारा खुद व दानदाता दोनों की शुद्धि सुनिश्चित करे।
समय की अनुकूलता के लिए पूरे वर्ष का दसवां हिस्सा भी सेवा-पूजा के लिए संकल्प लेकर समर्पित करना चाहिए।
शक्ति के अभाव में शिव भी शव के समान
धर्म मनुष्य के कल्याण का एक अहम माध्यम है। धर्म का ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए। धर्म छिपाने से बढ़ता है और पाप उजागर करने से मिटता है। धर्म और पुण्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। पुण्य का अहंकार भी मनुष्य को नहीं छोड़ता। धर्म में प्रदर्शन और पाखंड नहीं होना चाहिए। धर्म से ही शक्ति मिलती है। शक्ति के अभाव में शिव भी शव के समान ही हैं।
ये उद्गार श्रीविद्याधाम में गुप्त नवरात्र के उपलक्ष्य में चल रहे देवी भागवत ज्ञानयज्ञ में पं राहुल शर्मा ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि मन की गति सबसे ज्यादा तेज है। यह चंद क्षणों में ही हमें कहां से कहां ले जाती है। मन पर बुद्धि और विवेक का नियंत्रण जरूरी है। जगत के मोह में फंसकर मन हमें अपनी मंजिल से भटका देता है। बुद्धि सात्विक और शुद्ध हो तो हम पतन से बच सकते हैं और पतन से बचने के लिए शक्ति की आराधना सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। संसार में शक्ति ही सर्वोपरि है।
परमात्मा को अपने अंदर ही खोजें
श्रीमद् भागवत मानव मात्र के लिए उस प्रकाश पुंज जैसा है, जो जीवन की महायात्रा में हर क्षण हमारे भ्रम और संदेह को दूर करता है। भागवत कथा जीवन जीने की दृष्टि को नये आयाम देती है। कलियुग में हर क्षेत्र प्रदूषण से घिरा है।
भागवत बुद्धि की शुद्धि के साथ सृष्टि के प्रति हमारी दृष्टि को भी सात्विक बनाती है। हमारे संचित पुण्यों के फल से प्राप्त दुर्लभ मानव जीवन को सद्मार्ग पर आगे बढ़ाना ही हमारा परम लक्ष्य होना चाहिए। ये उद्गार वृंदावन के स्वामी भास्करानंद ने अखंड धाम आश्रम में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि भक्ति किसी भी स्वरूप में करें, निष्फल नहीं होती। परमात्मा तो हर जगह है। उससे बड़ा कोई सत्य नहीं, उससे बड़ी कोई सत्ता नहीं। उसे किसी हिमालय या गुफा में खोजने के बजाय अपने अंदर ही खोज लें, जीवन की दिशा और दशा बदल जाएगी।
यह वजन भजन से वचन में उपजता है। यह बात शनिवार को मालवा भूषण संत कमलकिशोर नागर ने गोम्मटगिरि के पास जम्बूड़ी हप्सी में आयोजित भागवत कथा में कही। संतश्री ने कहा कि रोटी पाने के लिए हमें प्रयत्न और पाप करना होते हैं। रोटी के लिए किए गए पाप से मुक्ति के लिए हमेशा घर में बनने वाली पहली रोटी गाय के लिए निकाली जाती है।
जीवन में हम नौकरी-व्यवसाय आदि करके जो धन अर्जित करते हैं, उसकी शुद्धता के लिए यह आवश्यक है कि उसका दसवां भाग दान कर दिया जाए। यह दसवां भाग यदि दक्षिणा के रूप में गुरु या ब्राह्मण को दिया जा रहा है तो इस हिस्से को प्राप्त करने वाले व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने तप द्वारा खुद व दानदाता दोनों की शुद्धि सुनिश्चित करे।
समय की अनुकूलता के लिए पूरे वर्ष का दसवां हिस्सा भी सेवा-पूजा के लिए संकल्प लेकर समर्पित करना चाहिए।
शक्ति के अभाव में शिव भी शव के समान
धर्म मनुष्य के कल्याण का एक अहम माध्यम है। धर्म का ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए। धर्म छिपाने से बढ़ता है और पाप उजागर करने से मिटता है। धर्म और पुण्य एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। पुण्य का अहंकार भी मनुष्य को नहीं छोड़ता। धर्म में प्रदर्शन और पाखंड नहीं होना चाहिए। धर्म से ही शक्ति मिलती है। शक्ति के अभाव में शिव भी शव के समान ही हैं।
ये उद्गार श्रीविद्याधाम में गुप्त नवरात्र के उपलक्ष्य में चल रहे देवी भागवत ज्ञानयज्ञ में पं राहुल शर्मा ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि मन की गति सबसे ज्यादा तेज है। यह चंद क्षणों में ही हमें कहां से कहां ले जाती है। मन पर बुद्धि और विवेक का नियंत्रण जरूरी है। जगत के मोह में फंसकर मन हमें अपनी मंजिल से भटका देता है। बुद्धि सात्विक और शुद्ध हो तो हम पतन से बच सकते हैं और पतन से बचने के लिए शक्ति की आराधना सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। संसार में शक्ति ही सर्वोपरि है।
परमात्मा को अपने अंदर ही खोजें
श्रीमद् भागवत मानव मात्र के लिए उस प्रकाश पुंज जैसा है, जो जीवन की महायात्रा में हर क्षण हमारे भ्रम और संदेह को दूर करता है। भागवत कथा जीवन जीने की दृष्टि को नये आयाम देती है। कलियुग में हर क्षेत्र प्रदूषण से घिरा है।
भागवत बुद्धि की शुद्धि के साथ सृष्टि के प्रति हमारी दृष्टि को भी सात्विक बनाती है। हमारे संचित पुण्यों के फल से प्राप्त दुर्लभ मानव जीवन को सद्मार्ग पर आगे बढ़ाना ही हमारा परम लक्ष्य होना चाहिए। ये उद्गार वृंदावन के स्वामी भास्करानंद ने अखंड धाम आश्रम में व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि भक्ति किसी भी स्वरूप में करें, निष्फल नहीं होती। परमात्मा तो हर जगह है। उससे बड़ा कोई सत्य नहीं, उससे बड़ी कोई सत्ता नहीं। उसे किसी हिमालय या गुफा में खोजने के बजाय अपने अंदर ही खोज लें, जीवन की दिशा और दशा बदल जाएगी।
Source: Religion News Hindi & Aaj Ka Rashifal
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