वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है, मानव तो क्या पेड़-पौधे तथा पशु-पक्षी भी उल्लास से भर जाते हैं। इस दिन नई उमंग से सूर्योदय होता है और नई चेतना प्रदान कर सूर्य अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।
अलग-अलग ऋतुओं को हमारे जन-जीवन, पर्वों व धार्मिक मान्यताओं से जोड़ा जाता है। वसंत ऋतु का भी अपना महत्व है। वसंत ऋतु का अपना ही पौराणिक और साहित्यिक महत्व है। मां सरस्वती को विद्या, ज्ञान, वाणी, संगीत व बुद्धि की देवी माना जाता है। सुरों की देवी की वसंत पंचमी के दिन देशभर में वंदना की जाती है।
पौराणिक नगर पिहोवा (कुरुक्षेत्र) में वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विशेष पूजा-अर्चना होती है। पिहोवा को सरस्वती का नगर भी कहा गया है। यहां प्राचीन समय से ही सरस्वती सरिता प्रवाहित होती रही है। सरस्वती सरिता के तट पर इस क्षेत्र में अनेक प्राचीन तीर्थ हैं।
सरस्वती सरिता के तट पर विश्वामित्र जी ने गायत्री छंद की रचना पिहोवा में की थी। पिहोवा का सबसे मुख्य तीर्थ सरस्वती घाट है जहां सरस्वती सरिता बहती है। वहां मां सरस्वती का अति प्राचीन मंदिर है। शताब्दियों प्राचीन इन मंदिरों में देशभर के श्रद्धालु आकर पूजा-अर्चना करते हैं तथा सरस्वती घाट पर स्नान करते हैं। भव्य शोभायात्रा निकलती है।
यह दिन अनेक साहित्यकारों तथा महापुरुषों से भी जुड़ा है। वसंत पंचमी वाले दिन वीर हकीकत राय जी का वध इसलिए कर दिया गया था क्योंकि इस वीर बालक ने अपना धर्म त्यागने से इनकार कर दिया था। हिंदी के महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का जन्मदिवस भी इसी दिन मनाया जाता है।
सरसों के पीले-पीले फूलों से सुशोभित खेत और पलाश के फूल इस ऋतु में मन को मोह लेते हैं। इस दिन पीत वस्त्र धारण कर, पीले पुष्प व पीले चावल मां सरस्वती पर अर्पित किए जाते हैं। जहां बंगाल में सरस्वती जयंती पर लोग सरस्वती की पूजा करते हैं वहीं उड़ीसा में इस दिन से बच्चों को विद्या दान की शुरुआत की जाती है।
बिहार के लोग मां सरस्वती की पूजा-अर्चना कर प्रतिमाओं को जल में विसर्जित करते हैं। देशभर में आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से पट जाता है। क्या बच्चे व क्या जवान, सभी पतंगबाजी का आनंद उठाते हैं।
अलग-अलग ऋतुओं को हमारे जन-जीवन, पर्वों व धार्मिक मान्यताओं से जोड़ा जाता है। वसंत ऋतु का भी अपना महत्व है। वसंत ऋतु का अपना ही पौराणिक और साहित्यिक महत्व है। मां सरस्वती को विद्या, ज्ञान, वाणी, संगीत व बुद्धि की देवी माना जाता है। सुरों की देवी की वसंत पंचमी के दिन देशभर में वंदना की जाती है।
पौराणिक नगर पिहोवा (कुरुक्षेत्र) में वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विशेष पूजा-अर्चना होती है। पिहोवा को सरस्वती का नगर भी कहा गया है। यहां प्राचीन समय से ही सरस्वती सरिता प्रवाहित होती रही है। सरस्वती सरिता के तट पर इस क्षेत्र में अनेक प्राचीन तीर्थ हैं।
सरस्वती सरिता के तट पर विश्वामित्र जी ने गायत्री छंद की रचना पिहोवा में की थी। पिहोवा का सबसे मुख्य तीर्थ सरस्वती घाट है जहां सरस्वती सरिता बहती है। वहां मां सरस्वती का अति प्राचीन मंदिर है। शताब्दियों प्राचीन इन मंदिरों में देशभर के श्रद्धालु आकर पूजा-अर्चना करते हैं तथा सरस्वती घाट पर स्नान करते हैं। भव्य शोभायात्रा निकलती है।
यह दिन अनेक साहित्यकारों तथा महापुरुषों से भी जुड़ा है। वसंत पंचमी वाले दिन वीर हकीकत राय जी का वध इसलिए कर दिया गया था क्योंकि इस वीर बालक ने अपना धर्म त्यागने से इनकार कर दिया था। हिंदी के महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का जन्मदिवस भी इसी दिन मनाया जाता है।
सरसों के पीले-पीले फूलों से सुशोभित खेत और पलाश के फूल इस ऋतु में मन को मोह लेते हैं। इस दिन पीत वस्त्र धारण कर, पीले पुष्प व पीले चावल मां सरस्वती पर अर्पित किए जाते हैं। जहां बंगाल में सरस्वती जयंती पर लोग सरस्वती की पूजा करते हैं वहीं उड़ीसा में इस दिन से बच्चों को विद्या दान की शुरुआत की जाती है।
बिहार के लोग मां सरस्वती की पूजा-अर्चना कर प्रतिमाओं को जल में विसर्जित करते हैं। देशभर में आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से पट जाता है। क्या बच्चे व क्या जवान, सभी पतंगबाजी का आनंद उठाते हैं।
Source: Spiritual News in Hindi & Hindi Rashifal 2014
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