पूरे विश्व में चैत्र माह की चंद्र तिथि पर भगवान झूलेलाल की जयंती मनाई जाती है। चेटीचंड महोत्सव प्रचलित कथा है कि सिंध प्रदेश के ठट्ठा नगर में एक मिरखशाह नाम का राजा था जो हिन्दुओं पर अत्याचार करता था।
वह हिन्दुओं पर धर्म परिवर्तन के लिए भी दबाव डालता था। एक बार उसने धर्म परिवर्तन के लिए लोगों को सात दिन की मोहलत दी। तब कुछ लोग परेशान होकर सिंधु नदी के किनारे आ गए और भूखे-प्यासे रहकर उन्होंने वरुण देवता की उपासना की।
तब प्रभु का हृदय पसीज गया और वे मछली पर दिव्य रूप में प्रकट हुए। उन्होंने भक्तों से कहा कि तुम लोग निडर होकर जाओ मैं तुम्हारी सहायता के लिए नसरपुर में अपने भक्त रतनराय के घर माता देवकी के गर्म से जन्म लूंगा। जब राजा का अत्याचार किसी भी तरह कम नहीं हुआ तो वरूण देव ने उसे अपने प्रभाव से सही राह दिखाई। प्रभु के अवतरण उपलक्ष में सिंधी समाज द्वारा चेटीचंड धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
इस त्योहार से जुड़ी एक किवदंती यह भी है कि चूंकि सिंधी समुदाय व्यापारिक वर्ग रहा है इसलिए जब इस समुदाय के लोग व्यापार के लिए जलमार्ग से गुजरते थे तो उन्हें कई विपदाओं का सामना करना पड़ता था।
समुद्री तूफान और आपदाओं के साथ दस्यु गिरोह भी लूटपाट करके व्यापारियों का माल लूट लेते थे। ऐसी स्थिति में जब सिंधी समुदाय के व्यापारी जलमार्ग से यात्रा पर निकलते तो उनकी स्त्रियां वरुण देवता से पति की रक्षा की कामना करती थीं, तरह-तरह से मन्न्त मांगती थीं।
भगवान झूलेलाल जल के देवता हैं अंत वे सिंधी समुदाय के आराध्य देव माने गए। वर्ष भर जिनकी मन्नातें पूरी हुई हों वे आज के दिन भगवान झूलेलालजी का शुक्र अदा करते हैं। इस दिन नई मन्नातें भी ली जाती हैं। चेटीचंड के दिन प्रात: उठकर अपने बुजुर्गों एवं संतों के आशीर्वाद से दिन की शुरूआत होती है।
इसी दिन नवजात शिशुओं का मुंडन भी कराया जाता है। सिंधी समुदाय के लोग अपने घर पांच दीप जलाकर और विद्युत सज्जा कर चेटीचंड को दीवाली की तरह मनाते हैं।
वह हिन्दुओं पर धर्म परिवर्तन के लिए भी दबाव डालता था। एक बार उसने धर्म परिवर्तन के लिए लोगों को सात दिन की मोहलत दी। तब कुछ लोग परेशान होकर सिंधु नदी के किनारे आ गए और भूखे-प्यासे रहकर उन्होंने वरुण देवता की उपासना की।
तब प्रभु का हृदय पसीज गया और वे मछली पर दिव्य रूप में प्रकट हुए। उन्होंने भक्तों से कहा कि तुम लोग निडर होकर जाओ मैं तुम्हारी सहायता के लिए नसरपुर में अपने भक्त रतनराय के घर माता देवकी के गर्म से जन्म लूंगा। जब राजा का अत्याचार किसी भी तरह कम नहीं हुआ तो वरूण देव ने उसे अपने प्रभाव से सही राह दिखाई। प्रभु के अवतरण उपलक्ष में सिंधी समाज द्वारा चेटीचंड धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
इस त्योहार से जुड़ी एक किवदंती यह भी है कि चूंकि सिंधी समुदाय व्यापारिक वर्ग रहा है इसलिए जब इस समुदाय के लोग व्यापार के लिए जलमार्ग से गुजरते थे तो उन्हें कई विपदाओं का सामना करना पड़ता था।
समुद्री तूफान और आपदाओं के साथ दस्यु गिरोह भी लूटपाट करके व्यापारियों का माल लूट लेते थे। ऐसी स्थिति में जब सिंधी समुदाय के व्यापारी जलमार्ग से यात्रा पर निकलते तो उनकी स्त्रियां वरुण देवता से पति की रक्षा की कामना करती थीं, तरह-तरह से मन्न्त मांगती थीं।
भगवान झूलेलाल जल के देवता हैं अंत वे सिंधी समुदाय के आराध्य देव माने गए। वर्ष भर जिनकी मन्नातें पूरी हुई हों वे आज के दिन भगवान झूलेलालजी का शुक्र अदा करते हैं। इस दिन नई मन्नातें भी ली जाती हैं। चेटीचंड के दिन प्रात: उठकर अपने बुजुर्गों एवं संतों के आशीर्वाद से दिन की शुरूआत होती है।
इसी दिन नवजात शिशुओं का मुंडन भी कराया जाता है। सिंधी समुदाय के लोग अपने घर पांच दीप जलाकर और विद्युत सज्जा कर चेटीचंड को दीवाली की तरह मनाते हैं।
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