हमारे देश में पेड़ पौधे संस्कृति आैर पाैराणिक कथाअों में रचे बसे हैं। कई पेड़-पौधे जहां औषधीय महत्व रखते हैं तो कई आध्यात्मिक आैर पौराणिक महत्व। शास्त्रों में भी पेड़ पौधों का महत्व दिया गया है।
ऐसा ही एक पौधा है केले का पौधा, जिसे हिंदू धर्म में काफी पवित्र माना गया है और कई धार्मिक कार्य में इसका उपयोग किया जाता है।
कहते हैं केले के वृक्ष में साक्षात भगवान विष्णु(हरि) का वास होता है। भगवत पूजा में इसका उपयाेग करने से भगवान प्रसन्न हाेते हैं आैर भक्तों को सुख समृद्धि और शांति का वर प्राप्त होता है। केले के वृक्ष को शुभ आैर संपन्नता का प्रतीक माना जाता है।
इसके पत्तों को घर के प्रवेश द्वार पर शादी विवाह और कथा के दौरान मंडप बनाने के काम में लाया जाता है।
केले के पत्ते पर भोजन ग्रहण करने वाले को उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं गुरुवार को भगवान वृहस्पतिदेव की पूजा में भी इसका महत्व है।
भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को केले का भोग लगाया जाता है, केले के पत्तों में प्रसाद बांटा जाता है। माना जाता है कि समृद्धि के लिए केले के पेड़ की पूजा अच्छी होती है।
मूसा जाति के इस घासदार पौधे और इस पर उत्पादित फल को आम तौर पर केला कहा जाता है । मूल रूप से यह दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णदेशीय क्षेत्र का पाैधा है और संभवतः पपुआ न्यू गिनी में इन्हें सबसे पहले उपजाया गया था।
ऐसा ही एक पौधा है केले का पौधा, जिसे हिंदू धर्म में काफी पवित्र माना गया है और कई धार्मिक कार्य में इसका उपयोग किया जाता है।
कहते हैं केले के वृक्ष में साक्षात भगवान विष्णु(हरि) का वास होता है। भगवत पूजा में इसका उपयाेग करने से भगवान प्रसन्न हाेते हैं आैर भक्तों को सुख समृद्धि और शांति का वर प्राप्त होता है। केले के वृक्ष को शुभ आैर संपन्नता का प्रतीक माना जाता है।
इसके पत्तों को घर के प्रवेश द्वार पर शादी विवाह और कथा के दौरान मंडप बनाने के काम में लाया जाता है।
केले के पत्ते पर भोजन ग्रहण करने वाले को उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं गुरुवार को भगवान वृहस्पतिदेव की पूजा में भी इसका महत्व है।
भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को केले का भोग लगाया जाता है, केले के पत्तों में प्रसाद बांटा जाता है। माना जाता है कि समृद्धि के लिए केले के पेड़ की पूजा अच्छी होती है।
मूसा जाति के इस घासदार पौधे और इस पर उत्पादित फल को आम तौर पर केला कहा जाता है । मूल रूप से यह दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णदेशीय क्षेत्र का पाैधा है और संभवतः पपुआ न्यू गिनी में इन्हें सबसे पहले उपजाया गया था।
Source: Spiritual News & Hindi Rashifal 2014
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