कश्मीर स्थित खीर भवानी मंदिर श्रीनगर से महज 27 किलोमीटर दूर तुल्ला मुल्ला गांव में स्थित है। इस मंदिर में मां को खीर प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है इसलिए इस मंदिर को खीर भवानी मंदिर कहा जाता है।
यहां खीर का एक विशेष महत्त्व है और इसका इस्तेमाल यहां प्रमुख प्रसाद के रूप में किया जाता है। मान्यता है कि अगर यहां मौजूद झरने के पानी का रंग बदल कर सफ़ेद से काला हो जाए तो पूरे क्षेत्र में अप्रत्याशित विपत्ति आती है।
मां दुर्गा को समर्पित इस मंदिर का निर्माण एक बहती हुई धारा पर किया गया है। इस मंदिर के चारों ओर चिनार के पेड़ और नदियों की धाराएं हैं, जो इस जगह की सुंदरता पर चार चांद लगाते हुए नज़र आते हैं।
ये मंदिर, कश्मीर के हिन्दू समुदाय की आस्था को बखूबी दर्शाता है। खीर भवानी देवी के मंदिर को कई नामों से जाना जाता है जैसे 'महाराग्य देवी', 'रग्न्या देवी', 'रजनी देवी', 'रग्न्या भगवती' मंदिर अन्य नाम भी प्रचलित हैं।
इस मंदिर का निर्माण 1912 में महाराजा प्रताप सिंह द्वारा करवाया गया जिसे बाद में महाराजा हरि सिंह द्वारा पूरा किया गया। इस मंदिर की एक ख़ास बात यह है कि यहां एक षट्कोणीय झरना है जिसे यहां के मूल निवासी देवी का प्रतीक मानते हैं।
किंवदंती है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने इस मंदिर में चौदह वर्ष के वनवास के समय पूजा की थी। वनवास की अवधि समाप्त होने के बाद भगवान हनुमानजी को एक दिन अचानक यह आदेश मिला कि वो देवी की मूर्ति को स्थापित करें।
हनुमानजी ने प्राप्त आदेश का पालन किया और देवी की मूर्ति को इस स्थान पर स्थापित किया, तब से लेकर आज तक मां की मूर्ति इसी स्थान पर है।
यहां खीर का एक विशेष महत्त्व है और इसका इस्तेमाल यहां प्रमुख प्रसाद के रूप में किया जाता है। मान्यता है कि अगर यहां मौजूद झरने के पानी का रंग बदल कर सफ़ेद से काला हो जाए तो पूरे क्षेत्र में अप्रत्याशित विपत्ति आती है।
मां दुर्गा को समर्पित इस मंदिर का निर्माण एक बहती हुई धारा पर किया गया है। इस मंदिर के चारों ओर चिनार के पेड़ और नदियों की धाराएं हैं, जो इस जगह की सुंदरता पर चार चांद लगाते हुए नज़र आते हैं।
ये मंदिर, कश्मीर के हिन्दू समुदाय की आस्था को बखूबी दर्शाता है। खीर भवानी देवी के मंदिर को कई नामों से जाना जाता है जैसे 'महाराग्य देवी', 'रग्न्या देवी', 'रजनी देवी', 'रग्न्या भगवती' मंदिर अन्य नाम भी प्रचलित हैं।
इस मंदिर का निर्माण 1912 में महाराजा प्रताप सिंह द्वारा करवाया गया जिसे बाद में महाराजा हरि सिंह द्वारा पूरा किया गया। इस मंदिर की एक ख़ास बात यह है कि यहां एक षट्कोणीय झरना है जिसे यहां के मूल निवासी देवी का प्रतीक मानते हैं।
किंवदंती है कि त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने इस मंदिर में चौदह वर्ष के वनवास के समय पूजा की थी। वनवास की अवधि समाप्त होने के बाद भगवान हनुमानजी को एक दिन अचानक यह आदेश मिला कि वो देवी की मूर्ति को स्थापित करें।
हनुमानजी ने प्राप्त आदेश का पालन किया और देवी की मूर्ति को इस स्थान पर स्थापित किया, तब से लेकर आज तक मां की मूर्ति इसी स्थान पर है।
Source: Spirituality News & 2014 Ka Rashifal
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