धर्म-ग्रन्थों के अनुसार मनुष्य को सृष्टि में मात्र पांच हजार वर्ष पुराना बताया जाता था। जबकि इस्लामी दर्शन में इस विषय पर स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं कहा गया है। पाश्चात्य जगत के वैज्ञानिक भी अपने धर्म-ग्रन्थों की भांति ही कहते हैं कि मानवीय सृष्टि का बहुत प्राचीन नहीं है।
हिन्दू जीवन-दर्शन के अनुसार इस सृष्टि का प्रारम्भ हुए 1 अरब, 97 करोड़, 29 लाख, 49 हजार, 11 वर्ष बीत चुके हैं और अब चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से उसका 1 अरब, 97 करोड़, 29 लाख, 49 हजार, 12 वां वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। भूगर्भ से सम्बन्धित नवीनतम आविष्कारों के बाद तो पश्चिमी विद्वान और वैज्ञानिक भी इस तथ्य की पुष्टि करने की कोशिशों कर रहे हैं। उनका मानना है कि हमारी सृष्टि 2 अरब वर्ष पुरानी है।
हिन्दू जीवन-दर्शन की मान्यता है कि सृष्टिकर्ता भगवान ब्रम्हा जी द्वारा प्रारम्भ की गई है। कहते हैं कि मानवीय सृष्टि की कालगणना के अनुसार भारत में प्रचलित संवत केवल हिन्दुओं, भारतवासियों का ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण संसार या समस्त मानवीय सृष्टि का संवत है। इसलिए यह ब्रम्हांड के लिए नव-वर्ष के आगमन का सूचक है।
ब्रम्हाजी ने की थी काल गणना
ब्रम्हाजी द्वारा की गई यह कालगणना प्रकृति पर आधारित होने के कारण पूरी तरह वैज्ञानिक है। अत: नक्षत्रों को आधार बनाकर जहां एक ओर विज्ञान सम्मत चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कात्तिर्क, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन नामक 12 मासों का विधान एक वर्ष में किया गया है, वहीं दूसरी ओर सप्ताह के सात दिवसों यानि रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार का नामकरण भी ब्रम्हाजी ने विज्ञान के आधार पर किया है।
सवाल कई है जैसे ब्रम्हाजी ने आधा चैत्र मास व्यतीत हो जाने पर नव सम्वत्सर और सूर्योदय से नवीन दिवस का प्रारम्भ होने का विधान क्यों किया ? इसी तरह सप्ताह का प्रथम दिवस सोमवार न होकर रविवार ही क्यों निर्धारित किया गया? इन सवालों का जबाव है कि मानवीय सृष्टि की रचना तथा कालगणना का पूरा उपक्रम निसर्ग या प्रकृति से तारतम्यता बनाए रखकर किया गया है।
जीवनदायिनी ऊर्जा शक्ति
सूर्य उदय के साथ इस पृथ्वी पर न केवल प्रकाश प्रारम्भ हुआ बल्कि सूर्य की जीवनदायिनी ऊर्जा शक्ति के प्रभाव से पृथ्वी तल पर जीव-जगत का जीवन भी सम्भव हो सका। चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के स्थान पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वर्ष का आरम्भ, अर्द्धरात्रि के स्थान पर सूर्योदय से दिवस परिवर्तन की व्यवस्था तथा रविवार को सप्ताह का प्रथम दिवस घोषित करने का वैज्ञानिक आधार प्रकाश की अनुपम छटा बिखेरने के साथ सृजन को सम्भव बनाने की सूर्य की शक्ति में निहित है।
वैसे भी इंग्लैण्ड के ग्रीनविच नामक स्थान से दिन परिवर्तन की व्यवस्था में अर्द्ध रात्रि के 12 बजे को आधार इसलिए बनाया गया है। क्योंकि जब इंग्लैण्ड में रात्रि के 12 बजते हैं, तब भारत में भगवान सूर्यदेव के स्वागत के लिए भारत में प्रात: 5.30 बजे होते हैं।
सात दिनों का नामकरण
वारों के नामकरण की विज्ञान सम्मत प्रक्रिया में ब्रम्हाजी ने स्पष्ट किया कि आकाश में ग्रहों की स्थिति सूर्य से प्रारम्भ होकर क्रमश: बुध, शुक्र, चन्द्र, मंगल, गुरु और शनि की है। पृथ्वी के उपग्रह चन्द्रमा सहित इन्हीं अन्य छह ग्रहों को साथ लेकर ब्रम्हाजी ने सप्ताह के सात दिनों का नामकरण किया है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पृथ्वी अपने उपग्रह चन्द्रमा सहित स्वयं एक ग्रह है, किन्तु पृथ्वी पर उसके नाम से किसी दिवस का नामकरण नहीं किया जाएगा। उसके उपग्रह चन्द्रमा को इस नामकरण में इसलिए स्थान दिया जाएगा। क्योंकि पृथ्वी के निकटस्थ होने के कारण चन्द्रमा आकाश मण्डल की रश्मियों को पृथ्वी तक पहुँचाने में संचार उपग्रह का कार्य सम्पादित करता है।
उससे मानवीय जीवन बहुत गहरे रूप में प्रभावित होता है। लेकिन पृथ्वी पर यह गणना करते समय सूर्य के स्थान पर चन्द्र तथा चन्द्र के स्थान पर सूर्य अथवा रवि को रखा जाएगा।
एक दिन यानि 24 घण्टे
हम सभी यह जानते हैं कि एक अहोरात्र या दिवस में 24 घण्टे होते हैं। ब्रम्हाजी ने इन 24 घण्टों में से प्रत्येक होरा (घंटे) का स्वामी क्रमश: सूर्य, शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि, गुरु और मंगल को घोषित करते हुए स्पष्ट किया कि सृष्टि की कालगणना के प्रथम दिवस पर अन्धकार को विदीर्ण कर भगवान भास्कर की प्रथम घंटों से क्रमश: शुक्र की दूसरी, बुध की तीसरी, चन्द्रमा की चौथी, शनि की नौवीं, गुरु की छठी तथा मंगल की सातवें घंटे में होगी।
इस क्रम से इक्कीसवीं होरा (घंटा) पुन: मंगल की हुई। सूर्य की बाईसवीं, शुक्र की तेईसवीं और बुध की चौबीसवीं घंटो के साथ एक अहोरात्र या दिवस पूर्ण हो गया।
इसके बाद अगले दिन सूर्योदय के समय चन्द्रमा की होरा होने से दूसरे दिन का नामकरण सोमवार किया गया। अब इसी क्रम से चन्द्र की पहली, आठवीं और पंद्रहवीं, शनि की दूसरी, नववीं और सोलहवीं, गुरु की तीसरी, दशवीं और उन्नीसवीं, मंगल की चौथी, ग्यारहवीं और अठ्ठारहवीं, सूर्य की पाचवीं, बारहवीं और उन्नीसवीं, शुक्र की छठी, तेरहवीं और बीसवीं, बुध की सातवीं, चौदहवीं और इक्कीसवीं होरा होगी।
बाईसवीं होरा( घंटा) पुन: चन्द्र, तेईसवीं शनि और चौबीसवीं होरा गुरु की होगी। अब तीसरे दिन सूर्योदय के समय पहली होरा मंगल की होने से सोमवार के बाद मंगलवार होना सुनिश्चित हुआ। इसी क्रम से सातों दिवसों की गणना करने पर वे क्रमश: बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार तथा शनिवार घोषित किये गये; क्योंकि मंगल से गणना करने पर बारहवीं होरा गुरु पर समाप्त होकर बाईसवीं होरा मंगल, तेईसवीं होरा रवि और चौबीसवीं होरा शुक्र की हुई।
अब चौथे दिवस की पहली होरा बुध की होने से मंगलवार के बाद का दिन बुधवार कहा गया। अब बुधवार की पहली होरा से इक्कीसवीं होरा शुक्र की होकर बाईसवीं, तेईसवीं और चौबीसवीं होरा क्रमश: बुध, चन्द्र और शनि की होगी। तदुपरान्त पांचवें दिवस की पहली, होरा गुरु की होने से पांचवां दिवस गुरुवार हुआ।
पुन: छठा दिवस शुक्रवार होगा; क्योंकि गुरु की पहली, आठवीं, पन्द्रहवीं और बाईसवीं होरा के पश्चात् तेईसवीं होरा मंगल और चौबीसवीं होरा सूर्य की होगी। अब छठे दिवस की पहली होरा शुक्र की होगी। सप्ताह का अन्तिम दिवस शनिवार घोषित किया गया; क्योंकि शुक्र की पहली, आठवीं, पन्द्रहवीं और बाईसवीं होरा के उपरान्त बुध की तेईसवीं और चन्द्रमा की चौबीसवीं होरा पूर्ण होकर सातवें दिवस सूर्योदय के समय प्रथम होरा शनि की होगी।
संक्षेप में कहें तो ब्रम्हा जी की इस कालगणना में नक्षत्रों, ऋतुओं, मासों, दिवसों आदि का निर्धारण पूरी तरह प्रकृति पर आधारित वैज्ञानिक रूप से किया गया है। दिवसों के नामकरण को प्राप्त विश्वव्यापी मान्यता इसी तथ्य का प्रतीक है।
हिन्दू जीवन-दर्शन के अनुसार इस सृष्टि का प्रारम्भ हुए 1 अरब, 97 करोड़, 29 लाख, 49 हजार, 11 वर्ष बीत चुके हैं और अब चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से उसका 1 अरब, 97 करोड़, 29 लाख, 49 हजार, 12 वां वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। भूगर्भ से सम्बन्धित नवीनतम आविष्कारों के बाद तो पश्चिमी विद्वान और वैज्ञानिक भी इस तथ्य की पुष्टि करने की कोशिशों कर रहे हैं। उनका मानना है कि हमारी सृष्टि 2 अरब वर्ष पुरानी है।
हिन्दू जीवन-दर्शन की मान्यता है कि सृष्टिकर्ता भगवान ब्रम्हा जी द्वारा प्रारम्भ की गई है। कहते हैं कि मानवीय सृष्टि की कालगणना के अनुसार भारत में प्रचलित संवत केवल हिन्दुओं, भारतवासियों का ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण संसार या समस्त मानवीय सृष्टि का संवत है। इसलिए यह ब्रम्हांड के लिए नव-वर्ष के आगमन का सूचक है।
ब्रम्हाजी ने की थी काल गणना
ब्रम्हाजी द्वारा की गई यह कालगणना प्रकृति पर आधारित होने के कारण पूरी तरह वैज्ञानिक है। अत: नक्षत्रों को आधार बनाकर जहां एक ओर विज्ञान सम्मत चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कात्तिर्क, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन नामक 12 मासों का विधान एक वर्ष में किया गया है, वहीं दूसरी ओर सप्ताह के सात दिवसों यानि रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार और शनिवार का नामकरण भी ब्रम्हाजी ने विज्ञान के आधार पर किया है।
सवाल कई है जैसे ब्रम्हाजी ने आधा चैत्र मास व्यतीत हो जाने पर नव सम्वत्सर और सूर्योदय से नवीन दिवस का प्रारम्भ होने का विधान क्यों किया ? इसी तरह सप्ताह का प्रथम दिवस सोमवार न होकर रविवार ही क्यों निर्धारित किया गया? इन सवालों का जबाव है कि मानवीय सृष्टि की रचना तथा कालगणना का पूरा उपक्रम निसर्ग या प्रकृति से तारतम्यता बनाए रखकर किया गया है।
जीवनदायिनी ऊर्जा शक्ति
सूर्य उदय के साथ इस पृथ्वी पर न केवल प्रकाश प्रारम्भ हुआ बल्कि सूर्य की जीवनदायिनी ऊर्जा शक्ति के प्रभाव से पृथ्वी तल पर जीव-जगत का जीवन भी सम्भव हो सका। चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के स्थान पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से वर्ष का आरम्भ, अर्द्धरात्रि के स्थान पर सूर्योदय से दिवस परिवर्तन की व्यवस्था तथा रविवार को सप्ताह का प्रथम दिवस घोषित करने का वैज्ञानिक आधार प्रकाश की अनुपम छटा बिखेरने के साथ सृजन को सम्भव बनाने की सूर्य की शक्ति में निहित है।
वैसे भी इंग्लैण्ड के ग्रीनविच नामक स्थान से दिन परिवर्तन की व्यवस्था में अर्द्ध रात्रि के 12 बजे को आधार इसलिए बनाया गया है। क्योंकि जब इंग्लैण्ड में रात्रि के 12 बजते हैं, तब भारत में भगवान सूर्यदेव के स्वागत के लिए भारत में प्रात: 5.30 बजे होते हैं।
सात दिनों का नामकरण
वारों के नामकरण की विज्ञान सम्मत प्रक्रिया में ब्रम्हाजी ने स्पष्ट किया कि आकाश में ग्रहों की स्थिति सूर्य से प्रारम्भ होकर क्रमश: बुध, शुक्र, चन्द्र, मंगल, गुरु और शनि की है। पृथ्वी के उपग्रह चन्द्रमा सहित इन्हीं अन्य छह ग्रहों को साथ लेकर ब्रम्हाजी ने सप्ताह के सात दिनों का नामकरण किया है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पृथ्वी अपने उपग्रह चन्द्रमा सहित स्वयं एक ग्रह है, किन्तु पृथ्वी पर उसके नाम से किसी दिवस का नामकरण नहीं किया जाएगा। उसके उपग्रह चन्द्रमा को इस नामकरण में इसलिए स्थान दिया जाएगा। क्योंकि पृथ्वी के निकटस्थ होने के कारण चन्द्रमा आकाश मण्डल की रश्मियों को पृथ्वी तक पहुँचाने में संचार उपग्रह का कार्य सम्पादित करता है।
उससे मानवीय जीवन बहुत गहरे रूप में प्रभावित होता है। लेकिन पृथ्वी पर यह गणना करते समय सूर्य के स्थान पर चन्द्र तथा चन्द्र के स्थान पर सूर्य अथवा रवि को रखा जाएगा।
एक दिन यानि 24 घण्टे
हम सभी यह जानते हैं कि एक अहोरात्र या दिवस में 24 घण्टे होते हैं। ब्रम्हाजी ने इन 24 घण्टों में से प्रत्येक होरा (घंटे) का स्वामी क्रमश: सूर्य, शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि, गुरु और मंगल को घोषित करते हुए स्पष्ट किया कि सृष्टि की कालगणना के प्रथम दिवस पर अन्धकार को विदीर्ण कर भगवान भास्कर की प्रथम घंटों से क्रमश: शुक्र की दूसरी, बुध की तीसरी, चन्द्रमा की चौथी, शनि की नौवीं, गुरु की छठी तथा मंगल की सातवें घंटे में होगी।
इस क्रम से इक्कीसवीं होरा (घंटा) पुन: मंगल की हुई। सूर्य की बाईसवीं, शुक्र की तेईसवीं और बुध की चौबीसवीं घंटो के साथ एक अहोरात्र या दिवस पूर्ण हो गया।
इसके बाद अगले दिन सूर्योदय के समय चन्द्रमा की होरा होने से दूसरे दिन का नामकरण सोमवार किया गया। अब इसी क्रम से चन्द्र की पहली, आठवीं और पंद्रहवीं, शनि की दूसरी, नववीं और सोलहवीं, गुरु की तीसरी, दशवीं और उन्नीसवीं, मंगल की चौथी, ग्यारहवीं और अठ्ठारहवीं, सूर्य की पाचवीं, बारहवीं और उन्नीसवीं, शुक्र की छठी, तेरहवीं और बीसवीं, बुध की सातवीं, चौदहवीं और इक्कीसवीं होरा होगी।
बाईसवीं होरा( घंटा) पुन: चन्द्र, तेईसवीं शनि और चौबीसवीं होरा गुरु की होगी। अब तीसरे दिन सूर्योदय के समय पहली होरा मंगल की होने से सोमवार के बाद मंगलवार होना सुनिश्चित हुआ। इसी क्रम से सातों दिवसों की गणना करने पर वे क्रमश: बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार तथा शनिवार घोषित किये गये; क्योंकि मंगल से गणना करने पर बारहवीं होरा गुरु पर समाप्त होकर बाईसवीं होरा मंगल, तेईसवीं होरा रवि और चौबीसवीं होरा शुक्र की हुई।
अब चौथे दिवस की पहली होरा बुध की होने से मंगलवार के बाद का दिन बुधवार कहा गया। अब बुधवार की पहली होरा से इक्कीसवीं होरा शुक्र की होकर बाईसवीं, तेईसवीं और चौबीसवीं होरा क्रमश: बुध, चन्द्र और शनि की होगी। तदुपरान्त पांचवें दिवस की पहली, होरा गुरु की होने से पांचवां दिवस गुरुवार हुआ।
पुन: छठा दिवस शुक्रवार होगा; क्योंकि गुरु की पहली, आठवीं, पन्द्रहवीं और बाईसवीं होरा के पश्चात् तेईसवीं होरा मंगल और चौबीसवीं होरा सूर्य की होगी। अब छठे दिवस की पहली होरा शुक्र की होगी। सप्ताह का अन्तिम दिवस शनिवार घोषित किया गया; क्योंकि शुक्र की पहली, आठवीं, पन्द्रहवीं और बाईसवीं होरा के उपरान्त बुध की तेईसवीं और चन्द्रमा की चौबीसवीं होरा पूर्ण होकर सातवें दिवस सूर्योदय के समय प्रथम होरा शनि की होगी।
संक्षेप में कहें तो ब्रम्हा जी की इस कालगणना में नक्षत्रों, ऋतुओं, मासों, दिवसों आदि का निर्धारण पूरी तरह प्रकृति पर आधारित वैज्ञानिक रूप से किया गया है। दिवसों के नामकरण को प्राप्त विश्वव्यापी मान्यता इसी तथ्य का प्रतीक है।
Source: Spirituality News & Rashifal 2014
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