हम अपनी भूलों को उचित ठहराते हैं ताकि अपराध का बोध न हो पर इससे काम नहीं बनता। तुम अपराध बोध का प्रतिरोध करते हो और वह बना रहता है और फिर कहीं अन्तर की गहराई से तुम्हारे व्यवहार को विकृत कर देता है।
अतीत के बारे में सोचते रहने के बजाय आगे बढ़ जाओ और दूसरों पर या स्वयं पर दोषारोपण में मत फंसो। दोष देना ठीक वैसा ही है जैसे तुम कूडादान लेकर बैठे हो और किसी पर फेंकने को तैयार हो पर वह घूमकर तुम्हारे पास आ जाता है। यह वॉलीबॉल खेलने जैसा है। तुम बॉल फेंकते हो और बॉल फिर से तुम्हारे पास वापस आ जाती है।
यदि तुम इस खेल से बाहर निकलना चाहते हो तो अपनी भूल स्वीकार करो।
भूल को सही साबित करने की बजाए उसे स्वीकार करो। औचित्य सिद्ध करना बहुत सतही है क्योंकि यह अपराध बोध को नहीं हटाता बल्कि और अधिक अपराध का बोध कराता है। अपने अपराध बोध के साथ सौ प्रतिशत रहो। वह पीड़ा ध्यान की तरह बन जाएगी और तुम्हें तुम्हारे अपराध बोध से भारमुक्त करेगी।
भूल करने वाले एक व्यक्ति से तुम कैसे पेश आते हो?उसको उसकी भूल के बारे में मत बताओ जिसे वह पहले से ही जानता है और न उसे अपराधी, रक्षात्मक या विद्वेषपूर्ण महसूस कराओ। क्योंकि इससे और अधिक दूरी कायम होगी।
दूसरों की भूलों के पीछे अभिप्राय मत देखो। हो सकता है वे अशिक्षा, अज्ञान, अत्यधिक तनाव या संकीर्ण मनोवृत्ति का शिकार हों और इनके रहते किसी से भूल हो सकती है। यदि एक प्रबुद्ध व्यक्ति दूसरों में गलतियां देखता है तो करुणा के साथ उन्हें उन भूलों से उबरने में सहायता करता है परंतु एक मूर्ख दूसरों की भूलों पर खुश होता है और सारे संसार के समक्ष उसकी सगर्व घोषणा करता है।
एक बुद्धिमान व्यक्ति सदैव दूसरों की प्रशंसा करता है। आत्मा का उत्थान करना विवेक है। जब तुम केन्द्रित होते हो, हमेशा अपने चारों ओर सभी का उत्थान करने को तत्पर रहते हो। अपने मन को सहेजो। जब मन स्थापित होता है, तुम चाहो तो भी गलत नहीं कर सकते। आत्मज्ञान से भय, क्रोध, अपराध बोध, अवसाद जैसी सभी नकारात्मक भावनाएं तिरोहित हो जाती हैं।
अतीत के बारे में सोचते रहने के बजाय आगे बढ़ जाओ और दूसरों पर या स्वयं पर दोषारोपण में मत फंसो। दोष देना ठीक वैसा ही है जैसे तुम कूडादान लेकर बैठे हो और किसी पर फेंकने को तैयार हो पर वह घूमकर तुम्हारे पास आ जाता है। यह वॉलीबॉल खेलने जैसा है। तुम बॉल फेंकते हो और बॉल फिर से तुम्हारे पास वापस आ जाती है।
यदि तुम इस खेल से बाहर निकलना चाहते हो तो अपनी भूल स्वीकार करो।
भूल को सही साबित करने की बजाए उसे स्वीकार करो। औचित्य सिद्ध करना बहुत सतही है क्योंकि यह अपराध बोध को नहीं हटाता बल्कि और अधिक अपराध का बोध कराता है। अपने अपराध बोध के साथ सौ प्रतिशत रहो। वह पीड़ा ध्यान की तरह बन जाएगी और तुम्हें तुम्हारे अपराध बोध से भारमुक्त करेगी।
भूल करने वाले एक व्यक्ति से तुम कैसे पेश आते हो?उसको उसकी भूल के बारे में मत बताओ जिसे वह पहले से ही जानता है और न उसे अपराधी, रक्षात्मक या विद्वेषपूर्ण महसूस कराओ। क्योंकि इससे और अधिक दूरी कायम होगी।
दूसरों की भूलों के पीछे अभिप्राय मत देखो। हो सकता है वे अशिक्षा, अज्ञान, अत्यधिक तनाव या संकीर्ण मनोवृत्ति का शिकार हों और इनके रहते किसी से भूल हो सकती है। यदि एक प्रबुद्ध व्यक्ति दूसरों में गलतियां देखता है तो करुणा के साथ उन्हें उन भूलों से उबरने में सहायता करता है परंतु एक मूर्ख दूसरों की भूलों पर खुश होता है और सारे संसार के समक्ष उसकी सगर्व घोषणा करता है।
एक बुद्धिमान व्यक्ति सदैव दूसरों की प्रशंसा करता है। आत्मा का उत्थान करना विवेक है। जब तुम केन्द्रित होते हो, हमेशा अपने चारों ओर सभी का उत्थान करने को तत्पर रहते हो। अपने मन को सहेजो। जब मन स्थापित होता है, तुम चाहो तो भी गलत नहीं कर सकते। आत्मज्ञान से भय, क्रोध, अपराध बोध, अवसाद जैसी सभी नकारात्मक भावनाएं तिरोहित हो जाती हैं।
Source: Spiritual Hindi News & 2014 Ka Rashifal
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