कर्म करते हुए जाने-अनजाने कई बार हम पुण्य अर्जित कर लेते हैं तो पाप भी हमारे ज़िंदगी के लेखे-जाेखे में आ जाते हैं। यही कारण है कि मनुष्य इसी पाप-पुण्य और जीवन-मृत्यु के चक्र में उलझा रहता है।
इस चक्र से मुक्त होने के लिए हमारे पौराणिक धर्म ग्रंथों में पापमोचिनी एकादशी व्रत की उपयोगिता के बारे में बताया गया है। पुराणों के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी पापमोचिनी है यानी सभी तरह के पाप को नष्ट करने वाली।
सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जाने अनजाने में हुए पाप कर्म से मुक्त होने के लिए एक पापमोचिनी एकादशी का व्रत बताया था। तब उन्होंने अर्जुन को एक कथा सुनाई। एक बार चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे।
इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी तो वह उन पर मोहित हो गई और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने की पूरी कोशिश करने लगी। कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नजर अप्सरा पर गई और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने कार्य में सफल हुई और ऋषि कामपीड़ित हो गए।
काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गए और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जगी तो उन्हें अहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से दूर जा चुके हैं। तब उन्हें उस अप्सरा पर बहुत क्रोध आया और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को श्राप दे दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ। श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए निवेदन करने लगी।
मेधावी ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था अत:ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनका पाप नष्ट हो गया।
उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ व स्वर्ग चली गई। वैसे इस व्रत के विषय में भविष्योत्तर पुराण में विस्तार से वर्णन किया गया है ।
व्रत करने की विधि
एकादशी के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर भगवान विष्णु की पूजा करें। घी का दीपक जलाकर भगवान से जाने-अनजाने जो भी पाप हुए हैं उससे मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना करें। जितना अधिक संभव हो 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप करें। इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है।
व्रती दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन करे और मन से भोग विलास की भावना को निकालकर हरि में मन को लगाएं। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करें । संकल्प के उपरान्त षोड्षोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करें।
पूजा के पश्चात भगवान के समक्ष बैठकर भग्वद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करें। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है अत:रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करें।
द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें फिर ब्राह्मणाें को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें पश्चात स्वयं भोजन करें।
इस चक्र से मुक्त होने के लिए हमारे पौराणिक धर्म ग्रंथों में पापमोचिनी एकादशी व्रत की उपयोगिता के बारे में बताया गया है। पुराणों के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी पापमोचिनी है यानी सभी तरह के पाप को नष्ट करने वाली।
सर्वप्रथम भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जाने अनजाने में हुए पाप कर्म से मुक्त होने के लिए एक पापमोचिनी एकादशी का व्रत बताया था। तब उन्होंने अर्जुन को एक कथा सुनाई। एक बार चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे।
इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नजर ऋषि पर पड़ी तो वह उन पर मोहित हो गई और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने की पूरी कोशिश करने लगी। कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नजर अप्सरा पर गई और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने कार्य में सफल हुई और ऋषि कामपीड़ित हो गए।
काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गए और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जगी तो उन्हें अहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से दूर जा चुके हैं। तब उन्हें उस अप्सरा पर बहुत क्रोध आया और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को श्राप दे दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ। श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए निवेदन करने लगी।
मेधावी ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था अत:ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनका पाप नष्ट हो गया।
उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ व स्वर्ग चली गई। वैसे इस व्रत के विषय में भविष्योत्तर पुराण में विस्तार से वर्णन किया गया है ।
व्रत करने की विधि
एकादशी के दिन प्रातः स्नानादि से निवृत होकर भगवान विष्णु की पूजा करें। घी का दीपक जलाकर भगवान से जाने-अनजाने जो भी पाप हुए हैं उससे मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना करें। जितना अधिक संभव हो 'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप करें। इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है।
व्रती दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन करे और मन से भोग विलास की भावना को निकालकर हरि में मन को लगाएं। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करें । संकल्प के उपरान्त षोड्षोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करें।
पूजा के पश्चात भगवान के समक्ष बैठकर भग्वद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करें। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है अत:रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करें।
द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें फिर ब्राह्मणाें को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें पश्चात स्वयं भोजन करें।
Source: Spiritual News in Hindi & Rashifal 2014
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