जहां शक्ति का निवास हो वहां असंभव भी संभव हो जाता है। कुछ ऐसा ही होता है यहां, जब देवी के आस-पास उठती हैं आग की लपटें। जब देवी देती हैं वरदान। तब होने लगती है अग्नि की बारिश। इसलिए इन्हें अग्नि की बारिश करने वाली देवी ईंडाणा कहा जाता है।
राजस्थान के उदयपुर से 100 किलोमीटर दूरी पर बसे बम्बोरा गांव में देवी ईंडाणा का यह मंदिर लोगों की जिज्ञासा और कौतूहल का केंद्र है। मां का यह अग्नि स्नान देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु भारत ही नहीं विदेशों से भी यहां पहुंचते हैं। विशेषतौर पर नवरात्र के दौरान मां के दर्शन जरूर करते हैं क्योंकि इन दिनों हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं मां।
मां का सौम्य रूप
देवी अगर आग कीलपटों से घिरी हुई हों तो यह इनका सौम्य रूप माना जाता है। जब ईंडाणा देवी खुश होती है तब उन्हें ये आग की लपटें घेर लेती हैं। भक्त इसे देवी का अग्नि स्नान कहते हैं।
कहते हैं कि चमत्कारों को समेटे हुए देवी का यह मंदिर महाभारत काल में बनवाया गया था। जिसे स्थानीय राजवाड़े और राजा-महाराजा अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते थे। लेकिन ईंडाणा देवी का यह मंदिर देश भर में मशहूर है।
मंदिर में नहीं पुजारी
मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां कोई पुजारी नहीं है। गांव के लोग खुद मां की पूजा करते हैं। उनकी सेवा करते हैं और देवी की भक्ति कर अपनी मनोकामना को पूर्ण करने का वरदान मांगते हैं।
एक किंवदंती के अनुसार यह स्थान साढ़े चार हजार वर्ष पुराना है। इतिहास गवाह है कि मेवाड़ के राजा समय-समय पर पूजा अर्चना करने यहां आते थे। यहां सारे भक्त अपने हाथों से पूजा करते हैं प्रसाद अर्पित करते हैं।
लोगों का मानना है कि नवरात्र के दौरान की गई प्रार्थना मां पूरी करती है, लेकिन उनकी सबसे ज्यादा कृपा बरसती है बीमार भक्तों पर। कहते हैं यहां जो भी भक्त बीमार आता है देवी उसे ठीक कर के ही भेजती हैं।
राजस्थान के उदयपुर से 100 किलोमीटर दूरी पर बसे बम्बोरा गांव में देवी ईंडाणा का यह मंदिर लोगों की जिज्ञासा और कौतूहल का केंद्र है। मां का यह अग्नि स्नान देखने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु भारत ही नहीं विदेशों से भी यहां पहुंचते हैं। विशेषतौर पर नवरात्र के दौरान मां के दर्शन जरूर करते हैं क्योंकि इन दिनों हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं मां।
मां का सौम्य रूप
देवी अगर आग कीलपटों से घिरी हुई हों तो यह इनका सौम्य रूप माना जाता है। जब ईंडाणा देवी खुश होती है तब उन्हें ये आग की लपटें घेर लेती हैं। भक्त इसे देवी का अग्नि स्नान कहते हैं।
कहते हैं कि चमत्कारों को समेटे हुए देवी का यह मंदिर महाभारत काल में बनवाया गया था। जिसे स्थानीय राजवाड़े और राजा-महाराजा अपनी कुलदेवी के रूप में पूजते थे। लेकिन ईंडाणा देवी का यह मंदिर देश भर में मशहूर है।
मंदिर में नहीं पुजारी
मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां कोई पुजारी नहीं है। गांव के लोग खुद मां की पूजा करते हैं। उनकी सेवा करते हैं और देवी की भक्ति कर अपनी मनोकामना को पूर्ण करने का वरदान मांगते हैं।
एक किंवदंती के अनुसार यह स्थान साढ़े चार हजार वर्ष पुराना है। इतिहास गवाह है कि मेवाड़ के राजा समय-समय पर पूजा अर्चना करने यहां आते थे। यहां सारे भक्त अपने हाथों से पूजा करते हैं प्रसाद अर्पित करते हैं।
लोगों का मानना है कि नवरात्र के दौरान की गई प्रार्थना मां पूरी करती है, लेकिन उनकी सबसे ज्यादा कृपा बरसती है बीमार भक्तों पर। कहते हैं यहां जो भी भक्त बीमार आता है देवी उसे ठीक कर के ही भेजती हैं।
Source: Spiritual News & Rashifal 2014
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