Friday, 7 March 2014

Who and why did the baby trinity

धार्मिक मान्यता के अनुसार मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का स्वरूप माना जाता है। दत्तात्रेय में ईश्वर एवं गुरु दोनों रूप समाहित हैं जिस कारण इन्हें श्री गुरुदेवदत्त भी कहा जाता है।

श्रीमद्भगावत ग्रंथ के अनुसार दत्तात्रेय जी ने चौबीस गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी। कहते हैं कि भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ।

भगवान दत्तात्रेय का स्वरूप

दत्तात्रेय के संबंध में कहा जाता हैकि इनके तीन सिर हैं और छ: भुजाएं हैं। इनके भीतर ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का ही संयुक्त रुप से अंश मौजूद है। दत्तात्रेय जयंती के दिन इनका जन्म अवतरण हुआ था इसलिए इस दिन दत्तात्रेय जी के बालरुप की पूजा की जाती है।

पतिव्रत धर्म पर घमंड

एक बार तीनों देवियों पार्वती, लक्ष्मी तथा सावित्री को अपने पतिव्रत धर्म पर बहुत घमण्ड होने लगा। देवऋर्षि नारद को जब उनके घमण्ड के बारे में पता चला तो वह उनका घमण्ड चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास पहुंचे। सबसे पहले नारद जी पार्वती के पास पहुंचे और अत्रि ऋषिकी पत्नी देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे।

देवी ईर्ष्या से भर उठीं और नारद जी के जाने के पश्चात भगवान शंकर से अनुसूया का सतीत्व भंग करने की जिद करने लगीं। इसके बाद नारद देवी लक्ष्मी के पास गए और उनके समक्ष भी देवी अनुसूया के सतीत्व की बात आरम्भ करके उनकी प्रशंसा करने लगे।

लक्ष्मी को भी अनुसूया की प्रशंसा सुनना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा। नारद जी के जाने के बाद वह भी विष्णु से अनुसूया देवी का सतीत्व भंग करने की जिद करने लगीं। विष्णुलोक से नारद सीधे ब्रह्मलोक जा पहुंचे और देवी सरस्वती जी के सामने देवी अनुसूया की प्रशंसा का राग अलापने लगे।

देवी सरस्वती जी को उनकी प्रशंसा सुनना क़तई भी रास नहीं आया। नारद जी के चले जाने के बाद वह भी देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को भंग करने की बात ब्रह्मा जी से करने लगीं।

त्रिदेव का आगमन

ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों को अपनी पत्नियों के सामने हार माननी पडी़ और वह तीनों ही पृथ्वी पर देवी अनुसूया की कुटिया के सामने एक साथ भिखारी के वेश में जाकर खडे़ हो गए। तीनों का एक ही मकसद होने से अनुसूया के द्वार पर एक साथ ही समागम हुआ।

जब देवी अनुसूया इन्हें भिक्षा देने लगीं, तब इन्होंने भिक्षा लेने से मना कर दिया और भोजन करने की इच्छा प्रकट की। देवी अनुसूया ने अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए उनकी बात मान ली और उन्हें स्नान करने के लिए बोलकर स्वयं भोजन की तैयारी में लग गईं।

तीनों देव जब नहाकर आए, तब अनुसूया श्रद्धा तथा प्रेम भाव से भोजन की थाली परोस लाईं। लेकिन तीनों देवों ने भोजन करने से इन्कार करते हुए कहा कि जब तक आप हमें अपनी गोद में बिठाकर भोजन नहीं करायेंगी, तब तक हम भोजन नहीं करेंगे। देवी अनुसूया यह सुनते ही पहले तो स्तब्ध रह गईं और गुस्से से भर उठीं, लेकिन अपने पतिव्रत धर्म के बल पर उन्होंने तीनों की मंशा जान ली।

देवी अनुसूया ने ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया। जल छिड़कते ही तीनों ने बालरुप धारण कर लिया। बालरुप में तीनों को भरपेट भोजन कराया। देवी अनुसूया उन्हें पालने में लिटाकर अपने प्रेम तथा वात्सल्य से उन्हें पालने लगीं।

चिंता में देवियां

जब काफ़ी दिन बीतने पर भी ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश नहीं लौटे, तब तीनों देवियों को अपने पतियों की चिन्ता सताने लगी। एक दिन उन तीनों को नारद से पता चला कि वह तीनों देव माता अनुसूया के घर की ओर गए थे। यह सुनते ही तीनों देवियाँ अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुँची और माता अनुसूया से अपने-अपने पति के विषय में पूछने लगीं।

अनुसूया माता ने पालने की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह रहे तुम्हारे पति! अपने-अपने पतियों को पहचानकर उन्हें अपने साथ ले जाओ। देवी लक्ष्मी ने चतुरता दिखाते हुए विष्णु को पहचानकर उठाया, लेकिन वह भगवान शंकर निकले।

भगवान दत्तात्रेय का जन्म

तीनों देवियों को अपनी भूल पर पछतावा होने लगा। तीनों ही माता अनुसूया से क्षमा मांगने लगीं। तीनों ने उनके पतिव्रत धर्म के समक्ष अपना सिर झुकाया। देवी अनुसूया ने भी अपने पतिव्रत से तीनों देवों को पूर्वरूप में कर दिया।

इस प्रकार प्रसन्न होकर तीनों देवों ने अनुसूया से वर मांगने को कहा तो देवी बोलीं- 'आप तीनों देव मुझे पुत्र रूप में प्राप्त हों।' तथास्तु कहकर तीनों देव और देवियां अपने-अपने लोक को चले गए।

इसके बाद ये तीनों देव अनुसूया के गर्भ से प्रकट हुए। ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शिव के अंश से दुर्वासा तथा विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ, जो विष्णु भगवान के ही अवतार हैं।

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