Tuesday 25 February 2014

Dead are in paradise

अजर अमर शिवशंकर के बारे में कहा भी जाता है कि ' भगवान शिव की आराधना मात्र से ही सभी के रोग, शोक और दुःख दूर हो जाते हैं और महादेव की नाम लेने से बिगड़े काम भी बन जाते हैं।'

शिव के कई रूप और कई नाम है और कई चमत्कार पर भक्त उन्हें जिस रूप में भी अपनी आस्था और श्रद्धा से उनका ध्यान करता है भगवान भोलेनाथ उस भक्त की हर मनोकामना पूरी करते हैं। ऐसा ही है महाशिवरात्रि का यह अनोखा प्रसंग जिसमें एक निर्दयी भील भी करुणा करके अपने जीवन को तार लेता है।

शिव महापुराण के अनुसार सर्वप्रथम भगवान शिव ज्योतिर्मय रूप में प्रकट हुए थे। वह मार्गशीर्ष मास में आद्ध नक्षत्र से युक्त प्रतिपदा का समय था। सबसे पहले ब्रह्मा और विष्णु ने भगवान शिव के दर्शन किए थे और इसी दिन को महाशिवरात्रि के रूप में तीनों लोक में मनाया जाने लगा। यह दिन बहुत शुभ होता है। इस दिन भक्त रात्रि जागरण कर शिव कृपा पाने के लिए पूजा करते हैं।

महाशिवरात्रि पर कई कथाओं का उल्लेख पुराणों में मिलता है पर गुरुदुरु की कथा सर्वमान्य है वह इसलिए क्योंकि इस कथा के बारे में स्वयं भगवान महाकाल ने शिव महापुराण में देवर्षि नारद जी को बताया था। इस कथा को महाशिवरात्रि पर सुनने और पढ़ने मात्र से बहुत पुण्य मिलता है।

बहुत समय पहले एक आदिवासी भील गुरुदुरु पृथ्वीलोक पर निवास करता था। गुरुदुरु वन में रहकर पशु पक्षियों का शिकार करके अपने कुटुम्ब का पेट भरता था। वह एक हिरणी पर लक्ष्य साधे उसके पीछे-पीछे भाग रहा था। देखते ही देखते हिरणी अदृश्य हो गई। तब गुरुदुरु थकान से बेहाल होकर एक वृक्ष पर चढ़ गया। वह वृक्ष विल्ब वृक्ष था।

इस बिल्व वृक्ष के नीचे एक प्राकृतिक शिवलिंग बना हुआ था। तभी अचानक उसे वह हिरणी दिखाई दी गुरुदुरु हिरणी पर निशाना साधने को ही था कि उसका मन बोला कि 'तू क्यों इस निरीह प्राणी के प्राण हरना चाह रहा है। इसने तेरा क्या बिगाड़ा है।'

इसी समय वह हिरणी बोली कि मेरे पति मेरे बच्चे मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे मैं एक बार मिल आऊं तब तुम मुझे अपना शिकार बना सकते हो। गुरुदुरु धर्मसंकट में फंस गया एक तरफ तो सामने आया हुआ शिकार था जिस पर वह प्रत्यंचा नहीं चढ़ा पा रहा था दूसरी तरफ उसका भूखा परिवार जो उसकी राह देख रहा होगा। आखिर उसने हिरणी को जाने दिया।

अब वह बिल्व वृक्ष के पत्ते तोड़कर नीचे गिराता गया। इसी समय अचानक एक और हिरणी दिखाई दी जैसे ही गुरुदुरु उसे मारने के लिए आतुर हुआ तो वह बोली कि मैं अपनी बहन को ढूंढने आई हूं। एक बार उससे मिलकर मैं आपके पास जरुर आऊंगी। यह सुनकर गुरुदुरु ने उसे जाने दिया।

गुरुदुरु मन में सोच रहा था कि आज उसे ऐसा क्या अचानक हो गया है उसके अंदर दया, ममता, करुणा के भाव जागृत होने लगे हैं। जब यह बात गुरुदुरु सोच रहा था तभी एक हिरण उसे दिखाई दिया उसने भी दोनों हिरणियों की तरह अपने परिवार को एक बार देख आने की गुजारिश की और गुरुदुरु ने भी उसे जाने दिया।

भील ने सोचा की वो दोनों हिरणियां यहां अब नहीं आएंगी। दोनों मुर्ख बनाकर चली गईं। तभी अचानक भील गुरुदुरु ने पेड़ से नीचे उतरा उसने बिल्व पत्र हटाए तो एक शिवलिंग पाया। उसने भगवान से प्रार्थना की कि वह क्या करे? निर्दोष जीवों की हत्या करना उसे अच्छा नहीं लगता है परंतु परिवार का भरण पोषण करने के लिए यह पाप भी करना पड़ता है। अब आप ही बताइए प्रभु मैं क्या करूं । मुझ पापी का कल्याण कीजिए।

इस बीच हिरण परिवार अपने वचन के अनुसार भील के पास आ पहुंचा पर भील बोला मैं तुम्हें नहीं मारुंगा। भील बोला मुझे परिवार का भूख से मरना स्वीकार है तुम निर्दोषों को मारना स्वीकार नहीं है।

इसी दौरान भील गुरुदुरु के समक्ष भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए और तीनों हिरणों को आशीर्वाद देकर भोलेनाथ गुरुदुरु से बोले 'आज से तुम्हें ऐसा काम नहीं करना पड़ेगा। यह काम तुम्हें पाप और आत्मग्लानि के बोझ तले दबाता जा रहा है।' भील शिवशंकर से बोला 'इतनी कृपा मुझ दीन हीन पर क्यों प्रभु ? अजर त्रिकालदर्शी भगवान शिव ने कहा कि आज महाशिवरात्रि है। आज के दिन बिल्व पत्रों से मेरी पूजा करने के फलस्वरूप तुम्हारा यह काया कल्प हुआ है और तीनों हिरणों ने अपना वचन पूरा कर दिखाया। अब ये हमेशा दिव्य रूप में रहेंगे।

भगवन बोले गुरुदुरु तुमने शिव के भक्तों में अपना नाम अमर कर दिया है। जो भक्त तुम्हारी यह कथा महाशिवरात्रि के दिन सुनेगा। उसे वही सुख मिलेगा जो तुम्हें मिला है।

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