Thursday 22 May 2014

How to awaken the kundalini

कुंडलिनी जाग्रत करने का अर्थ है मनुष्य को प्राप्त महानशक्ति को जाग्रत करना। यह शक्ति सभी मनुष्यों में सुप्त (सोई हुई) पड़ी रहती है। कुण्डली शक्ति उस ऊर्जा का नाम है जो हर मनुष्य में जन्मजात पाई जाती है।

यह शक्ति बिना किसी भेदभाव के हर मनुष्य को प्राप्त है। इसे जगाने के लिए प्रयास या साधना करनी पड़ती है। ठीक उसी तरह जिस प्रकार एक बीज में वृक्ष बनने की शक्ति या क्षमता होती है। हर मनुष्य में शक्तिशाली बनने की क्षमता होती है।

कुंडली जाग्रत करने के लिए साधक को शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्तर पर साधना करनी पड़ती है। जप, तप, व्रत-उपवास, पूजा-पाठ, योग आदि के माध्यम से साधक अपनी शारीरिक एवं मानसिक, अशुद्धियों, कमियों और बुराइयों को दूर कर सोई पड़ी शक्तियों को जगाता है।

योग और अध्यात्म की भाषा में इस कुंडलीनी शक्ति का निवास रीढ़ की हड्डी के समानांतर स्थित छ: चक्रों में माना गया है। कोई जीव उन शक्ति केंद्रों तक पहुंच सकता है। इन छ: अवरोधों को आध्यात्मिक भाषा में षट्-चक्र कहते हैं।

ये चक्र क्रमशः मूलधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धाख्य चक्र, आज्ञाचक्र। साधक क्रमश: एक-एक चक्र को जाग्रत करते हुए। अंतिम आज्ञाचक्र तक पहुंचता है। मूलाधार चक्र से प्रारंभ होकर आज्ञाचक्र तक की सफलतम यात्रा ही कुण्डलिनी जाग्रत करना कहलाता है।

    मूलाधार चक्रः यह गुदा और लिंग के बीच चार पंखुड़ी वाला 'आधार चक्र' है । आधार चक्र का ही एक दूसरा नाम मूलाधार चक्र भी है। यहां वीरता और आनन्द भाव का निवास है ।

    स्वाधिष्ठानः यह चक्र इसके बाद स्वाधिष्ठान चक्र लिंग मूल में है । उसकी छ: पंखुड़ी हैं । इसके जाग्रत होने पर क्रूरता,गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है ।

    मणिपूर चक्रः नाभि में दस दल वाला मणिचूर चक्र है । यह प्रसुप्त पड़ा रहे तो तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह, आदि जमा रहते हैं ।

    अनाहत चक्रः हृदय स्थान में अनाहत चक्र है । यह बारह पंखरियों वाला है। यह सोता रहे तो कपट, तोड़ -फोड़, कुतर्क, चिन्ता, मोह, दम्भ, अविवेक अहंकार से भरा रहेगा। जागृत होने पर यह सब दुर्गुण हट जायेंगे ।

    विशुद्धख्य चक्रः कण्ठ में विशुद्धख्य चक्र यह सरस्वती का स्थान है । यह सोलह पंखुड़ी वाला है। यहां सोलह कलाएं विद्यमान हैं।

    आज्ञाचक्रः भू्रमध्य में आज्ञा चक्र है, इस आज्ञा चक्र जाग्रत होने से यह सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं ।

    सहस्रार चक्रः सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है । शरीर संरचना में इस स्थान पर अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथियों से सम्बन्ध रैटिकुलर एक्टिवेटिंग सिस्टम का अस्तित्व है। यहां से जैवीय विद्युत का स्वयंभू प्रवाह उभरता है ।

Why spend consumed

तिलक धारण करने के पहले भस्म लगाने की परंपरा है। क्योंकि भस्म में दुर्गंध नाशक और मन को उत्तेजित करने वाले अनेक रासायनिक घटक होते हैं। इससे शरीर की सुंदरता और तेजस्विता बढ़ जाती है।

भस्म लेपन से शरीर के रंध्र बंद हो जाते है ऐसी गलतफमियां लोगों में काफी प्रचारित हैं। वास्तविकता स्थिति से अलग है।

दरअसल भस्म में शरीर के अंदर स्थित दूषित द्वव्य सोख लेने की क्षमता होती है। इस कारण शरीर के संधि, कपाल, छाती के दोनों हिस्से तथा पीठ आदि पर भस्म लेपन करने से कई तरह के चर्म रोग नहीं होते हैं।

शरीर पर भस्म लगाते समय पारंपरिक विविध मंत्रों का उच्चारण भी किया जाता है। भस्म हाथ पर लेकर थोड़ा गीला करके तर्जनी, मध्यमा और अनामिका अंगुलियों से लगाएं। यो तीनों अगुंलियां पितृ, आत्म और देव तीर्थों के रूप में मानी गई हैं।

Shanidev is the birthday of lord shani jayanti

इस बार शनि जयंती त्रिपर्व संयोग के साथ आ रही है। पहले दिन सोम प्रदोष, दूसरे दिन शिव चतुर्दशी और तीसरे दिन शनि जयंती मिलकर यह संयोग बना रहे हैं। सर्वार्थसिद्धि योग होने से यह दिन और खास बन गया है।

शनि जयंती 28 मई बुधवार को आएगी। अमावस्या मंगलवार रात 11.45 बजे से बुधवार रात 12.09 बजे तक रहेगी। सर्वार्थसिद्धि योग बुधवार सुबह 5.13 बजे से दिवस पर्यंत रहेगा। ज्योतिर्विद्‌ श्यामजी बापू के अनुसार हवन-पूजन और साधना की दृष्टि से सर्वार्थसिद्धि योग खास है।

शनि दशा से पीड़ित जातकों के लिए यह दिन मंगलकारी होगा। वर्तमान में शनि अपनी उच्च राशि तुला में है, जो 02 नवंबर तक रहेगा। इस दिन शाम 5.56 बजे रोहिणी नक्षत्र लगेगा।

न्याय के देवता हैं शनि

ज्योतिर्विद देवेंद्र सिंह कुशवाह के मुताबिक के मुताबिक शास्त्रों में शनि को न्याय का देवता कहा गया है। मान्यता है कि शनि जयंती पर दान-पूजन से जातक शनि दोष से मुक्त होता है। इस दिन तिल-उड़द, काले कपड़े, लोहे की सामग्री दान करने का विधान है।

साढ़े साती के जातकों के लिए महत्वपूर्ण

पं. धर्मेंद्र शास्त्री ने बताया कि शनि जयंती पर बने त्रिपर्व संयोग के चलते तीन दिन शिव और शनि आराधना के लिए खास हैं। 26 मई को सोम प्रदोष, 27 को शिव चतुर्दशी और 28 को शनि जयंती रहेगी।

शनि के अधिष्ठाता देव भगवान शिव हैं। दो दिन शिव पूजन और अंतिम दिन शनि पूजन शुभ फल प्रदान करेगा। शिव पूजन से शनि की प्रसन्नाता प्राप्त होगी। कन्या, तुला और वृश्चिक राशि के जातकों पर साढ़े साती और कर्क व मीन पर शनि का ढैया है। इन जातकों को तीन दिन पूजन करना हितकारी रहेगा।

Monday 19 May 2014

Significant correlation between friday and columbus

कोलम्बस जिसका पूरा नाम था क्रिस्टोफर कोलम्बस। शुक्रवार का दिन कोलम्बस के लिए काफी भाग्यशाली रहा था क्योंकि उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी खोज शुक्रवार के दिन की थी।

अगर माह की किसी भी तारीख का मूलांक निकाला जाए तो वह किसी न किसी के लिए जरूर शुभ होता है। हो सकता है यह अंक किसी खास वार को ही आता हो।

ये वार भी अंकशास्त्र के अनुसार आपके लिए बहुत शुभ हो सकता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण प्रसिद्ध खोजकर्ता कोलम्बस के जीवन काल को देखने पर मिलता है।

कोलम्बस एक समुद्री-नाविक, उपनिवेशवादी, खोजी यात्री था। उसने अटलांटिक महासागर में बहुत सी समुद्री यात्राएं कीं और अमेरिकी महाद्वीप के बारे में बताया। हालांकि अमेरिका पहुंचने वाला वह प्रथम यूरोपीय नहीं था किन्तु कोलम्बस ने यूरोपवासियों और अमेरिका के मूल निवासियों के बीच विस्तृत सम्पर्क को बढ़ावा दिया।

कोलम्बस शुक्रवार के दिन पर बहुत श्रद्धा रखता था। इसका कारण यह था कि उसके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं शुक्रवार को ही हुईं। वह 3 अगस्त 1492 को अपनी लंबी यात्रा के लिए रवाना हुआ। इस दिन शुक्रवार ही था।

कोलम्बस ने शुक्रवार को ही एक द्वीप के आस-पास पक्षियों को देखा उसने अनुमान लगाया कि पास में कोई आबादी है। समुद्री यात्रा करते हुए जब भूमि दिखाई दी तो उसे बड़ा ही सुखद अनुभव हुआ।

70 दिन लगातार चलने के बाद शुक्रवार को वह एक छोटे से अमेरिकन द्वीप पर उतरा। तब शुक्रवार 17 मई को उसने वारसेलोना में विजय प्राप्त की। शुक्रवार 30 नवम्बर को ही उसने पियोरतोसान्तो में क्राॅस की स्थापना की और शुक्रवार 4 जनवरी को ही वह स्पेन के लिए रवाना हुआ। कोलम्बस का जीवन अंकशास्त्र की दृष्टि से देखें तो काफी मिलता-जुलता लगता है।

हालांकि पाश्चात्य मत पहले दिया जा चुका है कि किस तारीख में उत्पन्न व्यक्ति के लिए कौन सा विशेष वार शुभ होगा। भारतीय मतानुसार जिसकी जन्मकुंडली में जो ग्रह बलवान होगा वह लग्नेश और चंद्रराशीश का मित्र होगा। वह शुभ होगा। पर निर्णय के लिए जन्मकुंडली की आवश्यकता होती है।

इस कारण अपने अनुभव के आधार पर निश्चय कर सकते हैं कौन सा वार शुभ और कौन सा अशुभ होगा।

Gautama buddha in tears

महात्मा बुद्ध भ्रमण पर थे। काफी थक गए थे। रास्ते में एक आम का बगीचा दिखाई दिया। वे वहां रुक गए। नीचे गिरे हुए मीठे आम खाए और आराम करने लगे। तभी वहां कुछ युवकों का झुंड आया। युवक पत्थर मारकर पेड़ पर लगे हुए आम गिराने लगे। पेड़ के दूसरी तरफ महात्मा बुद्ध आराम कर रहे थे।

एक युवक ने पत्थर फेंका तो वह आम को न लगकर बुद्ध के माथे पर जा लगा। उनके माथे से खून बहने लगा। यह देखकर युवक भयभीत हो गए और अपराधबोध से ग्रस्त होकर बुद्ध के पास आकर उनसे माफी मांगने लगे।

बुद्ध की आंखों में आंसू आ गए। युवकों ने सोचा कि माथे में पीड़ा की वजह से उनके आंसू आए हैं। वे उनके चरणों पर गिरकर उनसे क्षमा करने का अनुरोध करने लगे। उनमें से एक ने कहा, 'हमसे भारी भूल हो गई है।

हमने आपको पत्थर मारकर रुला दिया।' इस पर बुद्ध ने कहा, 'मित्रों, मैं इसलिए दुखी हूं, क्योंकि जब तुमने आम के पेड़ पर पत्थर मारा तो पेड़ ने बदले में तुम्हें मीठे फल दिए, लेकिन जब तुमने मुझे पत्थर मारा, तो मैं तुम्हें कुछ अच्छा देने के बजाय केवल भय और अपराधबोध ही दे सका।'

संक्षेप में

भलाई करना हमारे स्वभाव में होना चाहिए, भले ही हमें वह बुराई के बदले में करनी पड़े।

Marita inl disruption

विवाह के बाद दो अलग-अलग घरों, विचारों, व्यक्तित्व के लोग आपस में मिलकर अपनी गृहस्थी का शुरुआत करते हैं। यदि वधू-वर के घर में पितृदोष के कारण संतानहीनता हो अथवा उत्पन्न संतति अपरिपक्व या अल्पायु हो तो वैवाहिक जीवन में समस्या खड़ी हो जाती है। ऐसी स्थिति में किसी योग्य पंडितजी की सलाह पर नारायण नागबलि विधि करें। इसके साथ ही डॉक्टर की सलाह भी लेनी चाहिए।

अनिष्ट ग्रहों के कारण होने वाली समस्या के निवारण के लिए ग्रहों के जप, होम और दान करें या सत्यपुरुष के चरित्र का वाचन कर सकते हैं। यदि अनजाने कारणों से दंपत्ति में अनबन हो तो विवाह होम एक दो वर्षों के बाद करते रहें।

पति के अविचारी, लोभी या दुष्ट होने पर पत्नियां अगर रोज श्री रुक्मिणी स्वयंवर का पाठ अगर करती है। तो उन्हें इस समस्या से निजात मिल जाएगी।

प्रदोष तिथि के दिन उमा-महेश्वर का पूजन करें। यदि इतना करने के बावजूद पति-पत्नी में में दरार बढ़ती जाए और बात तलाक तक पहुंच जाए तो दोनों में से एक या दोनों 16 सोमवार का व्रत करें मनोकामना जरूर पूरी होगी।

Learn from shriram life management

वास्तव में मैनेजमेंट का मतलब लोगों को मैनेज करना होता है। एक कामयाब मैनेजर में कुछ विशेषताएं होती हैं। जैसे लक्ष्य जिसे पाने का ढंग, मूल्य, रणनीति, विश्वास, प्रोत्साहन, श्रेय, उपलब्धता और पारदर्शिता।

राम का लक्ष्य था सत्य और न्याय का शासन स्थापित करना। इसके लिए उन्होंने जो मूल्य चुने, उनमें पिता की आज्ञा का हृदय से पालन, शबरी और केवट के साथ सामाजिक समानता।

भगवान श्रीराम अपना हर काम लगभग मैनेजमेंट के जरिए ही करते थे और उनका मैनेजमेंट काफी कारगर सिद्ध होता था। राम ने रावण से युद्ध की तैयारियां दो साल तक कीं। चाहते तो एक नजर समुद्र को देखते और पुल बन जाता।

बीस दिन तक युद्ध चला और रावण मारा गया। वह चाहते तो लंका बिना जाए उसे खत्म कर देते। राम कहीं चमत्कार नहीं करते। चमत्कार हनुमान करते हैं। पर्वत उठा लाते हैं। दोनों भाइयों को कंधों पर बैठाकर निकल पडते हैं। अंगद चमत्कार करते हैं। पांव ऐसा जमाते हैं कि कोई उठा नहीं पाता।

राम ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा और न ही प्रवचन दिया। खुद को ईश्वर का अवतार बताकर समाज से बुराइयां मिटाने का अभियान भी नहीं चलाया। उन्होंने अपना जीवन ही ऐसा बनाया कि लोग उनसे सीखें।

राम ने रणनीति के तहत ही समुद्र पर वानरों, भालुओं से पुल बनवाया। इससे जनता को लगा कि उन्होंने खुद कुछ करके राक्षसों का नाश किया। इससे जनता के मन से राक्षसों का भय निकल गया। उनमें गजब का आत्मविश्वास था।

जब भरत अपनी सेना सहित उन्हें वन से वापस लेने आ रहे थे तो लक्ष्मण को लगा कि वह युद्ध करने आ रहे हैं, पर राम निश्चिंत थे। राम मोटीवेटर भी थे। मोटीवेशन न होता तो भालू और बंदर दो साल तक पुल बनाने में नहीं लग पाते। कब के भाग गए होते।

हनुमानजी को उनकी शक्तियां याद दिलाने के लिए तो राम को उन्हें जबरदस्त तरीके से प्रोत्साहित करना पडता था। लंका विजय का श्रेय भी राम ने नहीं लिया। वह जनता के लिए उपलब्ध रहते थे और उनके कार्यों में पारदर्शिता थी।

अगर राम से सफल मैनेजमेंट सीखकर कोई मैनेजर बनता है और अभिभूत होकर अपने इस मैनेजमेंट गुरु के आगे सिर झुकाता है तो ठीक है। हम ऐसा कर पाते हैं तो रामराज जाता नहीं आता है।
 

Tuesday 13 May 2014

Who are the best in between religion and politics

धर्म जीवन को जीने की कला है। जीवन जीने का विज्ञान है। हम जीवन को उसके पूरे अर्थों में कैसे जिएं, धर्म उसकी खोजबीन है। धर्म यदि जीवन-कला की आत्मा है, तो राजनीति जीवन-कला का शरीर है। धर्म अगर प्रकाश है तो राजनीति पृथ्वी है।

भारत में राजनीति और धर्म दोनों जैसे विरोधी रहे हैं। यह एक दूसरे की तरफ पीठ किए हुए हैं। यह आज की ही बात नहीं है, हजारों वर्षों से ऐसा होता आ रहा है और इसका परिणाम हमने भोगा है। एक हजार वर्ष की गुलामी इसका एक बेहद संजीदा उदाहरण है। हिंदुस्तान गुलाम हुआ, क्योंकि हिंदुस्तान के धार्मिक लोगों के मन में ऐसा नहीं लगा कि उन्हें कुछ करना चाहिए।

हजारों वर्षों तक धार्मिक आदमी कहता रहा कि राजनीति से हमें कुछ लेना-देना नहीं है। धर्म से हमें कुछ-लेना देना नहीं है। लेकिन कोई राज नीति धर्म निरपेक्ष कैसे हो सकती है? राजनीति के धर्म निरपेक्ष होने का क्या अर्थ हो सकता है? एक ही अर्थ हो सकता है कि जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है, जो भी श्रेष्ठ है, राजनीति को उससे कोई प्रयोजन नहीं।

दरअसल धर्मनिरपेक्ष होने का अर्थ होता है सत्य से निरपेक्ष होना, प्रेम से निरपेक्ष होना, जीवन के गहनतम ज्ञान से निरपेक्ष होना। कोई भी राजनीति अगर धर्म से निरपेक्ष होगी, तो वह मनुष्य के शरीर से ज्यादा गहरा प्रवेश नहीं कर सकती है और जो समाज केवल शरीर के आस-पास जीने में लगा रहता है, उस समाज के जीवन में उसी तरह की दुर्गंध पैदा हो जाएगी।

अगर हम पुराना इतिहास उठाकर देखें तो पता चलेगा कि हिंदुस्तान के धार्मिक लोगों ने भी राजनीति के साथ इतना ही गलत व्यवहार किया है। वे आज तक कह रहे हैं कि राजनीति से धर्म राजनीति से निरपेक्ष है।

धर्म का राजनीति से कोई संबंध न था और न ही है। स्वाभाविक था कि जब धर्म, राजनीति से इतना निरपेक्ष रहा हो तो धर्म से भी हमें कुछ लेना देना न रहा हो। धर्म एक चुनौती है, ऊपर उठाने के लिए धर्म एक पुकार है इसलिए निरंतर ऊपर उठते रहो धर्म एक आह्वान है ताकि मनुष्य ऊंचे शिखरों पर चढ़ता रहे।

राजनीति धर्म से अलग होकर सिर्फ कूटनीति रह जाती है। वह पॉलिटिक्स नहीं होती, सिर्फ डिप्लोमेसी हो जाती है। वहां झूठ और सच में कोई फर्क नहीं रह जाता। हिटलर ने अपने कमरे के ऊपर लिख रखा था कि सत्य के अतिरिक्त और कोई नियम नहीं और उसने अपने कमरे के बाहर लिख रखा था कि हिटलर से ज्यादा झूठ बोलने वाला आदमी पृथ्वी पर कभी नहीं रहा।

राजनीतिज्ञ सदा चाहता है कि धर्म से दूर रहे, क्योंकि धर्म के सामने उसे आत्मग्लानि होनी शुरू हो जाती है। पर वर्तमान हालात ऐसे नहीं हैं।

God is everywhere just need to find

एक धार्मिक व्यक्ति था। भगवान में उसकी बड़ी श्रद्धा थी। उसने मन ही मन प्रभु की एक तस्वीर बना रखी थी। एक दिन भक्ति से भरकर उसने भगवान से कहा-भगवान मुझसे बात करो, और एक बुलबुल चहकने लगी लेकिन उस आदमी ने नहीं सुना।

इसलिए इस बार वह जोर से चिल्लाया और आकाश में घटाएं उमङ़ने लगी, बादलो की गड़गडाहट होने लगी लेकिन आदमी ने कुछ नहीं सुना। उसने चारो तरफ निहारा, ऊपर- नीचे सब तरफ देखा और बोला, भगवान मेरे सामने तो आओ और बादलो में छिपा सूरज चमकने लगा।

पर उसने नहीं देखा आखिरकार वह आदमी गला फाड़कर चीखने लगा भगवान मुझे कोई चमत्कार दिखाओ तभी एक शिशु का जन्म हुआ और उसका प्रथम रुदन गूंजने लगा किन्तु उस आदमी ने ध्यान नहीं दिया।

अब तो वह व्यक्ति रोने लगा और भगवान से याचना करने लगा 'भगवान मुझे स्पर्श करो मुझे पता तो चले तुम यहां हो,मेरे पास हो,मेरे साथ हो और एक तितिली उड़ते हुए आकर उसके हथेली पर बैठ गई।

लेकिन उसने तितली को उड़ा दिया, और उदास मन से आगे चला गया। भगवान इतने सारे रूपो में उसके सामने आए इतने सारे ढंग से उससे बात की पर उस आदमी ने पहचाना ही नहीं शायद उसके मन में प्रभु की तस्वीर ही नहीं थी।

संक्षेप में

ईश्वर हर जगह है। वह अपने तरीके से आते हैं और हम अपने तरीके से देखते हैं। हर जगह हर पल उन्हें महसूस करना चाहिए।

Moto E launched in India for Rs 6,999: Motorola’s massive challenge to Micromax and Co

Moto E launched in India for Rs 6,999: Motorola’s massive challenge to Micromax and Co
Motorola has finally unveiled the Moto E and India will be the first country to get a taste of the latest budget effort from the one-time mobile giant. The phone is priced at an unbelievable Rs 6,999, which makes it great competition to the Indian low-cost smartphone brigade.

After facing a tough time in the Indian market ever since smartphones broke out on the scene, Motorola has been on the sidelines and nearly folded its Indian operations. With very limited resources, the company kept its India business alive and ticking, but if you had asked us this time last year if Motorola will be a force to reckon with, we would have laughed you off.

Cut to the present and three phones later, Motorola has well and truly made a comeback. It started with the Moto G earlier this year, which now is the most successful launch in the company’s history.

The exclusive deal with Flipkart helped in creating a big hype and that sumptuous price tag helped win buyers. But the Moto G did better than we expected. It looks more polished than phones in this price range and had very good specs too. This was how you did budget phones...


From firstpost News

BlackBerry unwraps the $190 midrange Z3 Jakarta Edition

2014-05-13 10.32.37 amBlackBerry has unveiled its a low-cost all-touch device, the Z3.  The handset, which will be released exclusively in Indonesia, marks its best effort yet to win back its once-loyal fanbase in the country.

The five-inch smartphone will go on sale from 15 May for 2,199,000 Indonesian rupea ($190) via local partners including Erafone and Indosat.

It's one of the first smartphones to be launched under current CEO John Chen and an early product of BlackBerry's manufacturing partnership with Foxconn, announced late last year.

At under $200, the new device fills a significant gap in the company's smartphone lineup in Indonesia, where BlackBerry has historically enjoyed a loyal following that were not catered to by the higher-priced Z10, Q10, and Q5 devices.

"Priced affordably, the BlackBerry Z3, Jakarta Edition will extend the full capabilities of the BlackBerry 10 Operating System version 10.2.1 experience for a new generation of customers in Indonesia," Chen said...


From zdnet News

Is the pdf near its end?

You download it often to read academic paper, research note, even a profile of your favourite candidate on your smart phone or tablet.

But according to a World Bank study, most of pdfs are left buried unread on the servers.

Of the 1,611 pdf reports the study looked at, only 25 were downloaded more than 1,000 times in the five-year period between 2008 and 2012.

Over 31 percent of the reports the group looked at - 517 separate research papers - were not downloaded a single time.

The reason for this is because "pdfs often give up machine readability in favour of human readability".

"The basic format does not include any requirement that text be selectable or searchable," said a Guardian report.

Data presented as charts and tables is often impossible to export in any useable way...


From business-standard News

Priced under Rs 8,000, Lava Iris X1 running Android KitKat coming soon

Priced under Rs 8,000, Lava Iris X1 running Android KitKat coming soonLava is all set to bring a new budget smartphone running Android KitKat in the Indian market. The company has announced the Iris X1 that will be priced ‘under Rs 8,000′.

The device is designed to offer all features that ensure easy multitasking and high quality media output with an 8MP rear camera, it added. It sports a 4.5-inch display and runs on Android 4.4.2. Apart from the price teaser, the company hasn’t revealed any specific details of the smartphone.

“To add to it, Lava is going to price it aggressively under Rs 8k. Riding on the success of its Iris Pro series, Lava is really upbeat about this offering,” the statement said.

Though no specific date of launch was disclosed, the statement said Lava “plans to launch the phone in the next few days” with a pan-India 360-degree marketing campaign...

Source: Technology News in Hindi

From firstpost News

Monday 12 May 2014

Unsolved mysteries of the mahabharata

महाभारत को पांचवां वेद कहा गया है। यह भारत की गाथा है। इस ग्रंथ में तत्कालीन भारत (आर्यावर्त) का समग्र इतिहास वर्णित है। अपने आदर्श पात्राें के सहारे यह हमारे देश के जन-जीवन को प्रभावित करता रहा है। इसमें सैकड़ों पात्रों, स्थानों, घटनाओं तथा विचित्रताओं व विडंबनाओं का वर्णन है।

महाभारत में कई घटना, संबंध और ज्ञान-विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं। महाभारत का हर पात्र जीवंत है, चाहे वह कौरव, पांडव, कर्ण और कृष्ण हो या धृष्टद्युम्न, शल्य, शिखंडी और कृपाचार्य हो। महाभारत सिर्फ योद्धाओं की गाथाओं तक सीमित नहीं है। महाभारत से जुड़े शाप, वचन और आशीर्वाद में भी रहस्य छिपे हैं।

उस समय मौजूद थे परमाणु अस्त्र

मोहनजोदड़ो में कुछ ऐसे कंकाल मिले थे जिसमें रेडिएशन का असर था। महाभारत में सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिए गए हैं। हिंदू इतिहास के जानकारों के मुताबिक 3 नवंबर 5561 ईसापूर्व छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र परमाणु बम ही था?

18 का अंक का जादू

कहते हैं कि महाभारत युद्ध में 18 संख्‍या का बहुत महत्व है। महाभारत की पुस्तक में 18 अध्याय हैं। कृष्ण ने कुल 18 दिन तक अर्जुन को ज्ञान दिया। गीता में भी 18 अध्याय हैं।18 दिन तक ही युद्ध चला। कौरवों और पांडवों की सेना भी कुल 18 अक्षोहिणी सेना थी जिनमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षोहिणी सेना थी। इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 थे। इस युद्ध में कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। सवाल यह उठता है कि सब कुछ 18 की संख्‍या में ही क्यों होता गया?

कौरवों का जन्म एक रहस्य

कौरवों को कौन नहीं जानता। धृतराष्ट्र और गांधारी के 99 पुत्र और एक पुत्री थीं जिन्हें कौरव कहा जाता था। कुरु वंश के होने के कारण ये कौरव कहलाए। सभी कौरवों में दुर्योधन सबसे बड़ा था। गांधारी जब गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र ने एक दासी के साथ सहवास किया था जिसके चलते युयुत्सु नामक पुत्र का जन्म हुआ। इस तरह कौरव सौ हो गए।

गांधारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर लिया। गर्भ धारण के पश्चात भी दो वर्ष व्यतीत हो गए, किंतु गांधारी काे कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई। इस पर क्रोधवश गांधारी ने अपने पेट पर जोर से मुक्के का प्रहार किया जिससे उसका गर्भ गिर गया।

वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल ही जान लिया। वे गांधारी के पास आकर बोले- 'गांधारी! तूने बहुत गलत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र ही सौ कुंड तैयार करवाओ और उनमें घृत (घी) भरवा दो।'वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमंत्रित जल छिड़का जिससे उस पिण्ड के अंगूठे के पोरुए के बराबर सौ टुकड़े हो गए।

वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गांधारी के बनवाए हुए सौ कुंडों में रखवा दिया और उन कुंडों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश देकर अपने आश्रम चले गए। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुंड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। फिर उन कुंडों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं दु:शला नामक एक कन्या का जन्म हुआ।

महान योद्धा बर्बरीक

बर्बरीक महान पांडव भीम के पुत्र घटोत्कच और नागकन्या अहिलवती के पुत्र थे। कहीं-कहीं पर मुर दैत्य की पुत्री 'कामकंटकटा' के उदर से भी इनके जन्म होने की बात कही गई है। महाभारत का युद्ध जब तय हो गया तो बर्बरीक ने भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा व्यक्त की और मां को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। बर्बरीक अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरुक्षेत्र की रणभूमि की ओर अग्रसर हुए।

बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरव और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। यह जानकर भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण के वेश में उनके सामने उपस्थित होकर उनसे दान में छलपूर्वक उनका शीश मांग लिया।

बर्बरीक ने कृष्ण से प्रार्थना की कि वे अंत तक युद्ध देखना चाहते हैं, तब कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन मास की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया। भगवान ने उस शीश को अमृत से सींचकर सबसे ऊंची जगह पर रख दिया ताकि वे महाभारत युद्ध देख सकें। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर रख दिया गया, जहां से बर्बरीक संपूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे।

राशियां नहीं थीं ज्योतिष का आधार

महाभारत के दौर में राशियां नहीं हुआ करती थीं। ज्योतिष 27 नक्षत्रों पर आधारित था, न कि 12 राशियों पर। नक्षत्रों में पहले स्थान पर रोहिणी था, न कि अश्विनी। जैसे-जैसे समय गुजरा, विभिन्न सभ्यताओं ने ज्योतिष में प्रयोग किए और चंद्रमा और सूर्य के आधार पर राशियां बनाईं और लोगों का भविष्य बताना शुरू किया, जबकि वेद और महाभारत में इस तरह की विद्या का कोई उल्लेख नहीं मिलता जिससे कि यह पता चले कि ग्रह नक्षत्र व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं।

विदेशी भी शामिल हुए थे लड़ाई में

महाभारत के युद्ध में विदेशी भी शामिल हुए थे। इस आधार पर यह माना जाता है कि महाभारत प्रथम विश्व युद्ध था।

28वें वेदव्यास ने लिखी महाभारत

ज्यादातर लोग यह जानते हैं कि महाभारत को वेदव्यास ने लिखा है लेकिन यह अधूरा सच है। वेदव्यास कोई नाम नहीं, बल्कि एक उपाधि थी, जो वेदों का ज्ञान रखने वालाें काे दी जाती थी। कृष्णद्वैपायन से पहले 27 वेदव्यास हो चुके थे, जबकि वे खुद 28वें वेदव्यास थे। उनका नाम कृष्णद्वैपायन इसलिए रखा गया, क्योंकि उनका रंग सांवला (कृष्ण) था और वे एक द्वीप पर जन्मे थे।

तीन चरणों में लिखी महाभारत

वेदव्यास की महाभारत तीन चरणों में लिखी गई। पहले चरण में 8,800 श्लोक, दूसरे चरण में 24 हजार और तीसरे चरण में एक लाख श्लोक लिखे गए। वेदव्यास की महाभारत के अलावा भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणे की संस्कृत महाभारत सबसे प्रामाणिक मानी जाती है।

अंग्रेजी में संपूर्ण महाभारत दो बार अनुदित की गई थी। पहला अनुवाद 1883-1896 के बीच किसारी मोहन गांगुली ने किया था और दूसरा मनमंथनाथ दत्त ने 1895 से 1905 के बीच। 100 साल बाद डॉ. देबरॉय तीसरी बार संपूर्ण महाभारत का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे हैं।

Maitreya budhdha will be next avtar

वैशाली की नगर-वधू आम्रपालि को धर्म की दीक्षा देकर भगवान बुद्ध आम्रवन से चलकर बेलवा गांव में आए और वहीं वर्षावास करते समय बुद्ध को मृत्यु तुल्य कष्ट होने लगा तथापि अपने आत्मबल से उन्होंने शारीरिक व्याधि पर नियंत्रण कियाा। उस समय बुद्ध अस्सी वर्ष के हो चुके थे तब उन्होंने अपने शिष्यों को स्पष्टत: कहा कि तथागत बुद्ध अब देहत्याग कर परिनिर्वाण प्राप्त करेंगे।

भगवान बुद्ध की इस अकस्मात घोषणा से सभी शिष्य दुखी हो गए। बुद्ध के शिष्य आनंद एकान्त में खड़े होकर रोने लगे, अश्रुपूर्ण नेत्रों से आनंद ने बुद्ध से पूछा, 'भदन्त! आपके जाने के बाद हमें कौन शिक्षा देगा? कौन हमारे दुखों को दूर करेगा?" इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान बुद्ध ने कहा कि- 'आनंद! मैं

पृथ्वी पर अवतीर्ण होने वाला पहला और अंतिम बुद्ध नहीं हूं। मुझसे पहले अनेक बुद्ध अवतार लेकर इस भूतल पर आए और मेरे बाद अनेक बुद्ध भविष्य में भी अवतीर्ण होंगे जो मानवों को त्रिविध दुखों से मुक्त कर उनका कल्याण करेंगे। मेरे महापरिनिर्वाण के चार हजार वर्ष पश्चात मेरे द्वारा प्रवर्तित यह बौद्ध धर्म लुप्त हो जाएगा। इस लोक में अनैतिकता-अनाचार इतना बढ़ जाएगा कि मानव जीवन असुरक्षित होता रहेगा, सुरक्षा के लिए लोग इधर-उधर भटकेंगे। सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच जाएगी, मानव जीवन संघर्षमय बनता रहेगा। ऐसे आपातकाल में प्राणियों की सुरक्षा के लिए 'बोधिसत्व मैत्रेय" इस भूतल पर भविष्य बुद्ध के रूप में अवतार लेंगे। वे पुन: बौद्ध धर्म की संस्थापना करेंगे और सभी मानवों को सुख, शांति एवं समृद्धि प्रदान करेंगे।"

भगवान बुद्ध की इस भविष्यवाणी से शिष्यों और भिक्षुओं की भविष्य बुद्ध मैत्रेय के प्रति आस्था स्थापित हो गई और वे मैत्रेय को गौतम बुद्ध के समान मानने लगे और कालान्तर में मैत्रेय बौद्धों की उपासना के पात्र बन गए। ईसा की पहली शताब्दी में बुद्ध धर्म की हीनयान और महायान इन दोनों शाखाओं के शिष्य मैत्रेय को बुद्धावतार के रूप में समुचित आदर देने लगे। बौद्ध धर्म ग्रंथों में वर्णन है कि इस समय मैत्रेय 'तुषित" नामक स्वर्ग में विराजमान हैं, वे अवतार लेने के उचित अवसर की प्रतीक्षा में हैं। आगे यह भी वर्णन है कि तुषित स्वर्ग में मैत्रेय बुद्ध अनेक चमचमाती मणियों से युक्त हार पहने, स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान हैं। शीतल, सुगंधित पवन से तुषित स्वर्ग में रम्य वातावरण है, मैत्रेय के चारों ओर इंद्र यम आदि देवता स्तुतिगान कर रहे हैं, यक्ष, किन्नार, गन्धर्व आदि उनके द्वारपाल हैं, अप्सराएं एवं नृत्यांगनाएं मधुर संगीत की संगत के साथ नृत्य कर रही हैं। ऐसे दिव्य तुषित स्वर्ग पर बुद्ध मैत्रेय शासनारूढ़ हैं।

जब बौद्ध उपासकों में यह धारणा सुदृढ़ हो गई मैत्रेय भूतल पर अवतीर्ण होकर प्राणिमात्र का पूर्ण रूप से कल्याण करेंगे, इस आस्था से मैत्रेय की उपासना में विस्तार होने लगा। इसी तारतम्य में बौद्ध शिल्पियों ने मैत्रेय के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए मैत्रेय की भिन्ना-भिन्ना आकार-प्रकार की अनेक मूर्तियों का निर्माण किया। इनकी अधिकतर मूर्तियां गांधार शैली की हैं जिनमें मैत्रेय अपने बाएं हाथ में कलश तथा दाएं हाथ में चम्पक पुष्प लिए हुए उत्कीर्ण हैं। शीर्ष पर मुकुट है तथा कमर में दुपट्टा बांधे हैं। वे कुरुकुल्ला एवं भृकुटि इन दो देवियों के साथ उद्धृत हैं।

बौद्ध तंत्र में मैत्रेय तीन मुखवाले, त्रिनेत्र एवं चतुर्भुज रूप में अंकित हैं, ये पर्यंक आसन तथा वरमुद्रा में आसीन हैं। नाना अलंकारों से विभूषित मैत्रेय की ऐसी आकर्षक प्रतिमाएं बनाकर बौद्ध शिल्पियों ने इन्हें सर्वत्र भविष्य बुद्ध के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। जब बौद्ध धर्म हिमालय की चोटियों को पार कर चीन और तिब्बत में प्रचलित हुआ तब चीन के बौद्धों ने मैत्रेय को भी भारतीय बौद्धों की तरह अपनी उपासना में सम्मिलित कर लिया और मैत्रेय चीन देश में शीघ्र ही लोकप्रिय हो गए। चीनी बौद्धों ने मैत्रेय को चीनी भाषा में 'मि लो फो" नाम से सम्बोधित किया। इन बौद्धों की मान्यता है कि हर बुद्ध का एक मनोनीत वृक्ष होता है जिसके नीचे वे तपस्या में लीन होकर बुद्धत्व प्राप्त करते हैं। जिस प्रकार गौतम बुद्ध ने बोधिवृक्ष के नीचे सम्बोधि प्राप्त की वैसे ही बोधिसत्व मैत्रेय चम्पक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ होकर बुद्धत्व प्राप्त करेंगे।

इस मान्यता से चीन देश के ची क्याड.प्रान्त में मैत्रेय की चालीस से सत्तर फुट ऊंची अनके मूर्तियां बनाई गईं। मैत्रेय की इतनी लोकप्रियता देखकर छठी शताब्दी के तांग-वंश के शासन काल में एक मैत्रेय-समाज की स्थापना हुई और इस समाज के सदस्य वे ही होते थे जो भविष्य बुद्ध मैत्रेय के उपासक थे।

चीन की तरह तिब्बत के लामाओं ने भी मैत्रेय को भविष्य बुद्ध के रूप में माना। तिब्बती भाषा में इन्हें 'धम-पा" कहा गया है। ये लामा मानते हैं कि बुद्धावतार के रूप में मैत्रेय पांचवें बुद्ध होंगे जो अलौकिक ज्ञान से पूर्ण, लोगों के कल्याण के लिए अवतरित होंगे। लामाओं के पवित्र ग्रंथ 'तंजुर" में मैत्रेय की महिमा का विशद वर्णन है। आठवीं शताब्दी में मैत्रेय जापान पहुंच गए। जापानी बौद्धों ने इन्हें करुणा का सागर माना और इसी रूप में जापानी भाषा में उन्हें 'मि रो कु" नाम दिया। जापानी, मैत्रेय से अपने कष्ट निवारण के लिए प्रार्थना करते हैं और उनसे शीघ्र भूतल पर अवतीर्ण होने का आग्रह करते हैं।

भारत के निकटवर्ती देश श्रीलंका में मैत्रेय को 'मेत्तेय" कहा। पांचवीं शताब्दी के राजा धातुसेन ने लंका में एक विशाल मंदिर बनाया और उसमें मैत्रेय को ससम्मान विराजित किया। कालक्रम से लंका में मैत्रेय जन-जन के देवता हो गए। इन्हीं देशों की तरह मैत्रेय बर्मा, जावा और स्याम देशों में भी उपास्य हैं।

इस प्रकार बौद्ध जगत में भविष्य बुद्ध मैत्रेय अति आदरणीय हो गए। पुराण-गाथाओं में जिस प्रकार भगवान विष्णु के दशावतार की गणना में भगवान गौतम बुद्ध नवें अवतार हैं और भविष्य में अवतार कल्कि होंगे उसी प्रकार बौद्ध-गाथाओं में जो बुद्ध के अवतारों का वर्णन हैं उनमें गौतम बुद्ध सातवें बुद्ध हैं और मैत्रेय भविष्य बुद्ध होंगे।

जब इस भूतल पर धर्म लुप्त हो जाएगा, सर्वत्र लोग अनाचार-अत्याचार से त्रस्त हो चुके होंगे, जीवन जीना दूभर हो जाएगा ऐसे घोर संकट से मानवों को मुक्त करने के लिए बोधिसत्व मैत्रय अवतीर्ण होकर पुन: सदधर्म की स्थापना करेंगे।

Love yourself

जब आप खुद से प्रेम करने लगते हैं तो चीजें एकाएक सुंदर और अर्थवान दिखाई देने लगती हैं। प्रसन्नता,

उत्कृष्टता और प्रेरणा के लिए अपने आप से प्रेम करना बहुत जरूरी है। अपने प्रति अच्छा भाव आपको अपने अन्य कामों में भी बेहतर प्रदर्शन का मौका देता है।

अपने प्रति अच्छा महसूस करने पर हम शांति और सकारात्मकता के साथ अपने कामों को पूरा कर पाते हैं। बहुत छोटी-छोटी चीजों के सहारे हम यह देख सकते हैं कि हम खुद को बेहतर नजर के साथ देख पा रहे हैं या नहीं।

अक्सर हम दूसरों के साथ व्यवहार में इतने ज्यादा व्यस्त होते हैं कि अपने प्रति ईमानदारी से एकाग्र नहीं हो पाते हैं लेकिन जब हम खुद के लिए समय निकालते हैं तो दुनिया पहले से ज्यादा बेहतर बन सकती है।

हमारी समस्याओं, तनावों और चिंताओं का हल तभी निकल सकता है जबकि हम खुद से प्यार करें। तभी हम अपने को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। अपने को समझे बिना और अपनी खूबियों के एहसास के बिना कोई भी व्यक्ति आनंद की अवस्था में नहीं पहुंचता है। जब आप अपनी जरूरतों को जान लेते हैं तो ज्यादा बेहतर काम कर पाते हैं। यह अपने सहारे संसार को बदलने का प्रयास भी है।

कैसे जांचें स्वयं से प्रेम है

अपने सपनों को आप प्राथमिकता देते हैं और वे ही चीजें करते हैं जो आपको प्रेरित करती हैं और अच्छा महसूस करने में मदद करती हैं।

जिन चीजों से आप सहमत नहीं होते या जो आपकी योजना में ठीक नहीं बैठती उनके लिए स्पष्ट रूप से ना"कहते हैं।

आप उन लोगों के साथ समय बिताते हैं जो आपका समर्थन करते हैं, आपको प्रेरित करते हैं और आपकी अच्छी चीजों को बढ़ावा देते हैं।

आप अपने विचारों के साथ जाना पसंद करते हैं और दूसरों को प्रसन्ना करने के लिए कोई काम नहीं करना चाहते।

आप अपने आप से बात करते हुए शांति के साथ रह पाते हैं और खुद से आपको चिढ़ नहीं होती।

आप उन नई चीजों के साथ प्रयोग का साहस कर पाते हैं जिनका अनुभव आप हमेशा से लेना चाहते थे।

आप अपने भोजन, व्यायाम और एकांत के लिए समय निकाल पाते हैं।

अपने सत्य के पक्ष में खड़े रह पाते हैं। पैसा उन चीजों में खर्च करते हैं जो आपको आश्चर्य महसूस करने में मदद करती हैं।

अच्छी चीजों को देखना और उन चीजों से दूरी रखना जो आपको नीचे ले जाती हैं।

खुद से रिश्ता बदले दुनिया

जब आप अपने से प्यार करने लगते हैं तो आप शंका और चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं। हम अपनी भावनाओं और निर्णयों पर विश्वास करते हैं। यह हमें ज्यादा साहसी और प्रामाणिक बनाता है।

हम दिल से जीने लगते हैं और जिंदगी को ज्यादा उदार तरीके से देखने लगते हैं। हम अपने लिए तय की गईं सीमाओं से बाहर देखने लगते हैं और ज्यादा बड़े सपनों में विश्वास करने लगते हैं।

हम नकारात्मक पक्षों पर ध्यान देना बंद देते हैं और अपनी संभावनाओं पर ध्यान देकर अपने लिए आगे की राह खोज पाते हैं। हम यह देखते हैं कि हमारा जीवन कितने नई चीजों से भरा हुआ है।

हम सकारात्मकता, शांति, आत्मविश्वास और प्रसन्नता के साथ अपने काम में आगे बढ़ने लगते हैं। हमारे व्यवहार में एक खास तरह की तन्मयता झलकने लगती है।

Get special grace of lord shani

यमराज यदि मृत्यु के देवता हैं, तो शनि कर्म के दंडाधिकारी हैं। गलती जाने में हुई हो या अनजाने में, दण्ड तो भोगना ही पड़ेगा।

कहते हैं जिस व्यक्ति पर शनि की ढैया या साढ़ेसाती हो या फिर जाे कुंडली में शनि के अशुभ प्रभाव के कारण किसी रोग से पीड़ित है अगर वे इन उपायों को आजमाते हैं तो उसे शनिदेव की विशेष कृपा की प्राप्ति होती है और सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

1. दोनों समय भोजन में काला नमक और काली मिर्च का प्रयोग करें।

2. शनिवार के दिन बंदरों को भुने हुए चने खिलाएं और मीठी रोटी पर तेल लगाकर काले कुत्ते को खाने को दें।

3. यदि शनि की अशुभ दशा चल रही हो तो मांस-मदिरा का सेवन न करें।

4. प्रतिदिन पूजा करते समय महामृत्युंजय मंत्र ऊं नमः शिवाय का जाप करें शनि के दुष्प्रभावों से मुक्ति मिलती है।

5. घर के किसी अंधेरे भाग में किसी लोहे की कटोरी में सरसों का तेल भरकर उसमें तांबे का सिक्का डालकर रखें।

6. शनि ढैया के शमन के लिए शुक्रवार की रात्रि में 8 सौ ग्राम काले तिल पानी में भिगो दें और शनिवार को प्रातः उन्हें पीसकर एवं गुड़ में मिलाकर 8 लड्डू बनाएं और किसी काले घोड़े को खिला दें। आठ शनिवार तक यह प्रयोग करें।

7. शनि के दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए शनिवार के दिन काली गाय की सेवा करें। पहली रोटी उसे खिलाएं, सिंदूर का तिलक लगाएं, सींग में मौली (कलावा या रक्षासूत्र) बांधे और फिर मोतीचूर के लड्डू खिलाकर उसके चरण स्पर्श करें।

8. प्रत्येक शनिवार को वट और पीपल वृक्ष के नीचे सूर्योदय से पूर्व कड़वे तेल का दीपक जलाकर शुद्ध कच्चा दूध एवं धूप अर्पित करें।

9. शनिवार को ही अपने हाथ के नाप का 29 हाथ लंबा काला धागा लेकर उसको मांझकर(बंटकर) माला कि तरह गले में पहनें।

10 यदि शनि की साढ़ेसाती से ग्रस्त हैं तो शनिवार को अंधेरा होने के बाद पीपल पर मीठा जल अर्पित कर सरसों के तेल का दीपक और अगरबत्ती लगाएं और वहीं बैठकर क्रमशः हनुमान, भैरव और शनि चालीसा का पाठ करें और पीपल की सात परिक्रमा करें।

Monday 5 May 2014

Where this temple women can get the children to bed

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला की लड़भडोल तहसील। यहां के सिमसा गांव में सिमसा देवी का एक ऐसा मंदिर है जहां पर निः संतान महिलाएं अगर मंदिर के फर्श पर सो जाएं तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो सकती है।

आधुनिक विज्ञान ये भले ही न मानें पर आस्था के बल पर ये संभव है। नवरात्रि के समय इस मंदिर हिमाचल पर्देश के पडोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ ऐसी सैकड़ों महिलाएं इस मंदिर आती हैं, जिनकी संतान नहीं होती है।

माता सिमसा या देवी सिमसा को संतान-दात्री के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रों में होने वाले इस विशेष उत्सव को स्थानीय भाषा में सलिन्दरा कहा जाता है। सलिन्दरा का अर्थ है 'स्वप्न आना' होता है।

माना जाता है कि जो महिलाएं माता सिमसा के प्रति मन में श्रद्धा लेकर से मंदिर में आती है माता सिमसा उन्हें स्वप्न में मानव रूप में या प्रतीक रूप में दर्शन देकर संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं।

कहते हैं कि कोई महिला स्वप्न में कोई कंद-मूल या फल प्राप्त करती है तो उस महिला को संतान का आशीर्वाद मिल जाता है। देवी सिमसा आने वाली संतान के लिंग-निर्धारण का भी संकेत देती है।

जैसे कि किसी महिला को अमरुद का फल मिलता है तो समझा जाता है पुत्र प्राप्त होगा। अगर किसी को स्वप्न में भिन्डी प्राप्त होती है तो समझा जाता है कि संतान के रूप में कन्या की प्राप्ति होगी। और यदि किसी को धातु, लकड़ी या पत्थर की बनी कोई वस्तु प्राप्त हो तो समझा जाता है कि उसको संतान नहीं होगी।

यह मंदिर बैजनाथ से 25 किलोमीटर और जोगिन्दर नगर से लगभग 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।

Who is aghori

अघोरियों का जीवन जितना कठिन है, उतना ही रहस्यमयी भी। इनकी साधना विधि सबसे ज्यादा रहस्यमयी होती है जिसकी अपनी शैली, अपना विधान है, अपनी अलग विधियां हैं।

अघोरी का मतलब होता है घोर नहीं यानी वह बहुत सरल और सहज होते हैं। जिसके मन में कोई भेदभाव नहीं हो। अघोरी हर चीज को समान भाव से देखते हैं। वे सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खा सकते हैं, जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जा सकता है।

कहते हैं कि अघोरियों की दुनिया निराली है। वे जिस पर प्रसन्न हो जाएं, उसे सब कुछ दे देते हैं। उनकी कई ऐसी बातें हैं, जिसे सुनकर आप हैरान हो सकते हैं।

1. अघोरी किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर नहीं छोड़ते। गुस्सा हो जाएं तो किसी भी हद तक जा सकते हैं। अधिकांश अघोरियों की आंखें लाल होती हैं, जैसे वो गुस्से में हों, लेकिन उनका मन उतना ही शांत भी होता है। काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी गले में धातु की बनी नरमुंड की माला पहनते हैं।

2. वे अमूमन श्मशान में ही अपनी कुटिया बनाते हैं। वहां एक धूनी जलती रहती है। जानवरों में वो सिर्फ कुत्ता पालना पसंद करते हैं। उनके साथ उनके शिष्य रहते हैं। अघोरी अपनी बात के बहुत पक्के होते हैं। वे अगर किसी से कोई बात कह दें तो उसे जरूर पूरा करते हैं।

3. अघोरी तीन तरह की साधना करते हैं। शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना। शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है। बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पैरहै। ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है।

4. शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना। इसमें आम परिवार के लोग भी शामिल हो सकते हैं। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है। यहां प्रसाद के रूप में मांस-मंदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।

5. अघोरी गाय का मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजें खाते हैं। अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है, इसलिए वे श्मशान में रहना ही ज्यादा पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र फलदायक होता है। यहां आमतौर पर लोग जाते नहीं, इसीलिए साधना में विघ्न पड़ने का कोई प्रश्न नहीं उठता। उनके मन से अच्छे-बुरे का भाव निकल जाता है।

6. कम ही लोग जानते हैं कि अघोरियों की साधना में इतना बल होता है कि वो मुर्दे से भी बात कर सकते हैं। ये बातें पढ़ने-सुनने में भले ही अजीब लगें, लेकिन इन्हें पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता। उनकी साधना को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती।

Saturday 3 May 2014

It still sits under the feet of lord hanuman lnkini

महाकाल की नगरी उज्जैन। यहां के अखंड ज्योति मंदिर में बजरंगबली की मूर्ति से लेकर पूजन की बात ही निराली है। जहां एक तरफ बजरंगबली की सिंदूरी प्रतिमा भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती है, तो वहीं पांव के नीचे दबी लंकिनी राक्षसी उनके पराक्रम की कहानी सुनाती है।

कहते हैं लक्ष्मण को बचाने के लिए जब हनुमान संजीवनी लेकर आ रहे थे तो लंकिनी नाम की राक्षसी ने उनका रास्ता रोक कर उन्हें जाने से रोका, जिसके बाद हनुमान, लंकिनी को अपने पैरों के नीचे दबाकर आगे बढ़ गए थे। इस मंदिर में महावीर के उसी रूप के दर्शन होते हैं जहां आज भी हनुमान के पैरों तले लंकिनी विराजमान है।

पूरे साज श्रृंगार के साथ बाल ब्रह्मचारी का ये रूप बड़ा ही मनमोहक है। दक्षिणामुखी हनुमान की इस प्रतिमा में उनके एक हाथ में संजीवनी तो कंधे पर गदा सुशोभित होती है। हाथों में बाजूबंद, पांव में पाजेब और कलाई में कड़े पहने हुए महावीर के दिव्य रूप के दर्शन मात्र से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

मंदिर के नाम के अनुरूप ही यहां जलता अखंड दिया भक्तों को बजरंबली के चमत्कार की कहानी सुनाता है। वैसे तो देखने में ये मंदिर हनुमान के अन्य मंदिरों की तरह ही है लेकिन मंदिर में सालों से जल रहे अखंड दीये में बजरंगबली की चमत्कारी शक्तियां समाहित हैं।

कहते हैं साढ़ेसाती से परेशान भक्त अगर इस मंदिर में आकर इस अखंड दीये के दर्शन कर लें और मंदिर में आटे का एक दीया जला दें तो शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलते देर नहीं लगती।

भक्त हनुमान जी को यहां कई तरह के प्रसाद चढ़ाते हैं. कहते हैं भक्त यहां अपनी मनोकामना प्रसाद के माध्यम से लेकर आते हैं। अगर किसी को झगड़े, मकदमों से छुटकारा चाहिए तो एक नारियल के अर्पण मात्र से उसके तमाम कष्टों का निवारण हो जाता है। ठीक उसी तरह जिन भक्तों को संतान की कामना है वो अपनी शक्ति और भक्ति के अनुसार 1, 2 या 5 किलो तेल अखंड ज्योति में चढ़ाने का संकल्प लेते हैं।

चना-चिरौंजी से प्रसन्न होने वाले हनुमान को यहां विशेषतौर से अखरोट के प्रसाद का भोग लगाया जाता है. कहते हैं जिन भक्तों की मन्नत पूरी होती है वो यहां आकर आटे में गुड़ मिलाकर रोट का प्रसाद तैयार करते हैं और बजरंगबली को भोग लगाते हैं।

मंदिर में प्रतिदिन होने वाली आरती का गवाह बनने के लिए बड़ी संख्या में भक्तों सैलाब उमड़ता है। कहते हैं बल, विद्या और बुद्धि का वरदान पाने के लिए यहां हनुमान के संग उनकी दायीं ओर रखी हुई चंदन की गदा के दर्शन करना भी जरूरी है। मंगलवार और शनिवार को यहां पूजा करने का विशेष महत्व है।

Would be untimely death

इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में होती दुर्घटनाओं को टाला जा सकता है। ताकि लोग अचानक मृत्यु के शिकार न हो। हालांकि जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु है।

जिस व्यक्ति ने इस पृथ्वी पर जन्म लिया है उसे एक ना एक दिन जरूर मरना पड़ेगा। श्रीमदभागवत गीता में श्रीकृष्ण ने भी यही संदेश दिया है कि आत्मा अमर है और यह देह नश्वर है।

शिव पुराण के अनुसार असमय या अचानक होने वाली मृत्यु से बचने के लिए शनि आराधना सर्वश्रेष्ठ उपाय है। शनि देव असमय मृत्यु से बचाने में सक्षम हैं। शनि देव को प्रसन्न करने के लिए सर्वश्रेष्ठ दिन है शनिवार।

इस दिन भगवान शनि के निमित्त पूजन करने वाले व्यक्ति को असमय मृत्यु का भय नहीं रहता है। इसके साथ ही ज्योतिष संबंधी कुंडली के कई दोष भी इनकी आराधना से शांत हो जाते हैं।

भगवान शिव के मंत्र 'ऊँ नमः शिवाय' का जाप अगर आप करते हैं तो भी असमय मृत्यु से बचा जा सकता है। सबसे क्रूर माने जाने वाले शनि से कृपा प्राप्त करने के लिए शनिवार के दिन विशेष पूजन करें।

शनि के निमित्त शनि की वस्तुओं का दान करें। इसके अतिरिक्त भगवान शिव को जल में तिल डालकर अर्पित करें। शिवजी के साथ ही शनिदेव की आराधना से व्यक्ति अकाल मृत्यु से बच सकते हैं।

प्रत्येक शनिवार को यह उपाय करने से अकाल मृत्यु का खतरा टल जाता है और व्यक्ति को लंबी आयु प्राप्त होती है। यह उपाय शिव पुराण में दिया गया है अत: इसमें शंका और संदेह न करें अन्यथा इस उपाय का उचित पुण्य प्राप्त नहीं हो सकेगा।

Saturday worship the shani dev

ज्योतिष के अनुसार शनि देव को न्यायाधीश का पद प्राप्त है। यानी सभी लोगों के अच्छे-बुरे कर्मों का फल शनिदेव ही देते हैं। यही वजह है कि से इन्हें क्रूर देवता माना जाता है।

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि अशुभ स्थिति में हो तो उसे जीवनभर संघर्ष करना पड़ता है। शनि के बुरे प्रभावों को दूर करने या कम करने के शास्त्रों में कई उपाय बताए गए हैं।

माह के हर शनिवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में नीले रंग के वस्त्र धारण करें। इसके बाद पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर विशेष दीपक, तेल, रुई की बत्ती आदि पूजन सामग्री से पूजा करें और शनि देव का ध्यान करें और अशुभ प्रभावों को दूर करने की प्रार्थना करें।

ऐसे तैयार करें विशेष दीपक?

दीपक चार मुख (जिस दीपक को एक साथ चार जगह से जलाया जा सके) का होना चाहिए। इस प्रकार दीपक में दो रुई की लंबी बत्तियां लगाएं और दोनों बत्तियों के चार मुंह दीपक से बाहर निकालें। अब चारों ओर से दीपक को जलाएं। यह दीपक पीपल के वृक्ष के नीचे रखें और शनिदेव से प्रार्थना करें। इसके बाद पीपल के वृक्ष की सात परिक्रमा लगाएं।

घर लौटकर एक कटोरी में तेल लें, उसमें अपना चेहरा देखें और इस तेल का दान करें। इस प्रकार यह उपाय अपनाने से शनि दोषों का प्रभाव अवश्य कम हो जाएगा।

Uncontrolled just fired two dead 25 injured

मझगवां थाना क्षेत्र में जबलपुर जा रही एक बस अनियंत्रित होकर पलट गई, जिसमें सवार एक यात्री की घटना स्थल पर ही मौत हो गई। वहीं दूसरे यात्री की मौत विक्टोरिया अस्पताल जबलपुर में हो गई है। जानकारी के अनुसार झिन्ना पिपरिया से जबलपुर की ओर जा रही यात्री बस क्रमांक एमपी 20 ई 0963 कुम्ही सतधारा की पुलिया पर अनियंत्रित होकर पलट गई।

बस में करीब 70 सवारी थीं। यात्रियों के अनुसार बस जब पुलिया की टेक चढ़ रही थी उसी दौरान बस के ब्रेक फेल हो गए, जिससे बस अनियंत्रित होकर पीछे की ओर चलने लगी और पुलिया के नीचे जा गिरी। घटना के बाद ड्राइवर फरार बताया जा रहा है।

इस घटना में एक यात्री की घटना स्थल पर ही मौत हो गई वहीं दूसरे की मौत जबलपुर की विक्टोरिया अस्पताल में इलाज के दौरान हो गई। मृतकों की शिनाख्त नहीं हो पाई है। घटना स्थल पर पहुंचे नायब तहसीलदार श्याम नंदन चंदेले ने बताया कि घटना का कारण अभी पता नहीं चल पाया है। घायलों व मृतक को मदद के लिए प्रयास किए जाएंगे।

Blowing away in chhindwara 40 houses burnt dead in the accident many cattle burns

छिंदवाड़ा में शुक्रवार की रात को तेज आंधी चलने से काफी नुकसान हुआ है। जिला मुख्यालय से सटे देवरधा गांव में आंधी के कारण 40 मकानों में आग लग गई जिससे करीब दो दर्जन मवेशी जलकर मर गए और एक हजार क्विंटल अनाज भी नष्ट हो गया। वहीं सात मंजिला बिल्डिंग की लिफ्ट कार पर गिर गई जिसमें एक घायल हो गया और एक ट्रेक्टर ने बाइक सवार को टक्कर मार दी जिसमें उसमें युवक की मौत हो गई।

बताया जाता है कि छिंदवाड़ा में शुक्रवार की रात करीब साढ़े ग्यारह बजे से तेज आंधी चली जो दो घंटे तक चलती रही। इससे जिले में कई कच्चे मकानों की छत उखड़ गई तो होडिर्ग्स गिर गए। बड़े-बड़े पेड़ भी गिर गए। आंधी के कारण धूल भरी हवाओं ने लोगों को परेशान कर दिया। आंधी के थम जाने के बाद लोग डरे-सहमे रहे।

जिला मुख्यालय से करीब 18 किलोमीटर दूर देवरधा काराघाट में आग भी लग गई। कुछ लोगों का कहना है कि आग बिजली का तार एक कच्चे मकान में गिरने से लगी। आग आंधी के कारण तेजी से फैली और उसने अपनी चपेट में 40 मकानों को ले लिया। अग्निकांड में दो दर्जन से ज्यादा मकान तो पूरी तरह से जलकर नष्ट हो गए और कुछ आंशिक रूप से जल गए। वहीं अग्निकांड में दो दर्जन मवेशियों की जान भी चली गई और वे जिंदा ही जलकर मर गईं। जिला प्रशासन के अफसर रात से मौके पर पहुंचे हुए हैं और लोगों के नुकसान का आकलन कर रहे हैं।

ट्रेक्टर ने बाइक सवार को रौंदा

आंधी के कारण सड़क पर वाहन चलाने में लोगों को परेशानी हुई। एक ट्रेक्टर चालक को आंधी के कारण बाइक दिखाई नहीं दी और ट्रेक्टर उसमें घुस गया। इससे बाइक सवार राकेश कुमार की मौत हो गई।

लिफ्ट कार पर गिरी

आंधी में शहर के बालाजी टॉवर की कांच लिफ्ट बेसमेंट पर गिर गई। बेसमेंट पर एक कार खड़ी थी जिस पर लिफ्ट गिरी। कार लिफ्ट के वजन से पिचक गई और उसमें सवार व्यापारी अमित जैन को चोटें आईं हैं।

Invites the commission to 8 thousand 204 crore from the power company

छत्तीसगढ़ विद्युत कंपनी ने छत्तीसगढ़ नियामक आयोग से 8 हजार 204 करोड़ के राजस्व की जरूरत बताते हुए बिजली की दरों में करीब 20 फीसदी वृद्धि का प्रस्ताव दिया है। कंपनी के प्रस्ताव का मूल्यांकन करने के बाद आयोग जनसुनवाई करेगा और इसके बाद बिजली की नई दरें घोषित की जाएंगी।

बिजली की नई दरें निर्धारित करने के लिए छत्तीसगढ़ विद्युत नियामक आयोग ने छत्तीसगढ़ विद्युत कंपनी से आय-व्यय के साथ नई दरों का पूरा ब्योरा मांगा था। लेकिन कंपनी ने महज आय- व्यय का ब्योरा पेश किया। इसमें कंपनी ने 2014-15 के लिए 8 हजार 204 करोड़ के राजस्व की आवश्यकता बताई है। वहीं 1806 करोड़ का अनुमानित घाटा भी दर्शाया है। इस हानि की भरपाई करने के लिए बिजली की दरों में 4 रुपए 85 पैसे प्रति यूनिट औसत वृद्धि की मांग की गई है। फिलहाल कंपनी की इस मांग और आय-व्यय के ब्योरे के मूल्यांकन में आयोग जुटा है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक आयोग ने उत्पादन कंपनी , पारेषण कंपनी और वितरण कंपनी का तकनीकी मूल्यांकन कर लिया है। आयोग अब जल्द ही बिजली की नई दरें निर्धारित करने के लिए जनसुनवाई करेगा। प्रदेश के सभी संभागों के उपभोक्ताओं और संगठनों से सुझाव मांगे जाएंगे। इन सुझावों के आधार पर आयोग बिजली की दरें निर्धारित करेगा।

पिछले साल नहीं बढ़ी थी बिजली की दर

राज्य सरकार ने बीते वर्ष छत्तीसगढ़ पावर कंपनी को 492 करोड़ की सब्सिडी दी थी। इसके अलावा आयोग की जांच में यह पता चला कि कंपनी का पिछले कई वर्षों का लाभ शेष है। आयोग ने सब्सिडी और लाभ को समायोजित करते हुए पिछले वर्ष बिजली की दरों में कोई वृद्धि नहीं की थी। लेकिन इस बार करीब 20 फीसदी बढ़ोतरी की संभावना जताई जा रही है। दरअसल सरकार ने इस बार कोई सब्सिडी अभी तक नहीं दी है और कोयले के दाम में हुई वृद्धि की वजह से बिजली की दरों में इस वर्ष बढ़ोतरी की जा सकती है। बिजली की नई दर जून-जुलाई में घोषित होनी है।

घरेलू बिजली की वर्तमान दरें (राशि रूपए में)

यूनिट दर

0 से 100 2.10

101 से 200 2.40

201 से 600 3.40

601 से अधिक 5.85


Dhamtari line will braudgauge coaching terminal in naya raipur

मंदिरहसौद से नया रायपुर होते हुए केन्द्री तक बीस किलोमीटर की स्वीकृत रेललाइन परियोजना पर काम शुरू होगा। वहीं केन्द्री से धमतरी तक नेरोगेज को ब्रॉडगेज में बदलने का काम भी जल्द शुरू किया जाएगा।

मुख्य सचिव विवेक ढांड ने आज यहां नया रायपुर स्थित मंत्रालय में रेलवे और राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की संयुक्त बैठक में छत्तीसगढ़ की प्रमुख रेल परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा की। टिटलागढ़-रायपुर डबल लाइन निर्माण प्रोजेक्ट के बारे में विचार-विमर्श किया।

बैठक में राज्य सरकार के गृह और परिवहन विभाग के अपर मुख्य सचिव एनके असवाल, नया रायपुर विकास प्राधिकरण (एनआरडीए) के अध्यक्ष और आवास एवं पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव एन.बैजेन्द्र कुमार, लोक निर्माण और नगरीय प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव आरपी मंडल, अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक मुदित कुमार सिंह, राजस्व विभाग के सचिव केआर पिस्दा, सचिव नगरीय प्रशासन संजय शुक्ला, छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम के प्रबंध संचालक सुनील मिा और रेलवे के अनेक वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।

बिलासपुर रेल जोन के महाप्रबंधक नवीन टंडन ने बताया कि राज्य शासन के प्रस्ताव पर तीनों परियोजनाओं को रेलवे बोर्ड और रेल मंत्रालय का अनुमोदन पहले ही मिल हो चुका है। श्री टंडन ने कहा कि राज्य शासन द्वारा मंदिरहसौद से नया रायपुर और केन्द्री तक बीस किलोमीटर रेललाइन बिछाने के लिए एनआरडीए की तरफ से निःशुल्क भूमि देने और नया रायपुर में रेलवे स्टेशन भवन बनवाकर देने का वादा किया है।

रेलवे अब इस लाइन के निर्माण की तैयारी तेजी से कर रही है। रेल कॉरिडोर परियोजना के तहत गेवरा रोड से पेंड्रारोड तक 132 किलोमीटर की पूर्व- पश्चिम कॉरिडोर और भूपदेवपुर-खरसिया होकर धरमजयगढ़ तक कॉरिडोर निर्माण के लिए चल रही तैयारी की भी बैठक में समीक्षा की गई।

नया रायपुर में बनेगा कोचिंग टर्मिनल

नया रायपुर में रेलवे द्वारा एक कोचिंग टर्मिनल बनाने का प्रस्ताव है। छत्तीसगढ़ में वर्तमान में रेलवे कोचिंग टर्मिनल दुर्ग और बिलासपुर में हैं। उसी तर्ज पर नया रायपुर में भी कोचिंग टर्मिनल बनाने का प्रस्ताव है। मुख्य सचिव ने रेल कॉरिडोर परियोजना के कार्यों को जल्द से जल्द आगे बढ़ाने और इसमें आ रही तकनीकी दिक्कतों को जल्द से जल्द हल करने की जरूरत पर बल दिया।

नया रायपुर जमीन देने का प्रस्ताव

रायपुर शहर में रेलवे की छोटी लाइन की अनुपयोगी जमीन के बदले नया रायपुर में जमीन देने का प्रस्ताव रेलवे अफसरों के सामने रखा। उन्होंने कहा कि यहां की जमीन मिलेगी तो सड़कों का निर्माण किया जा सकता है। वहीं रेलवे द्वारा अगर सहकारी समिति बनाकर नया रायपुर में अपनी रेलवे कॉलोनी के लिए जमीन की मांग की जाए तो नया रायपुर विकास प्राधिकरण (एनआरडीए) उन्हें जमीन मुहैया करा देगा।

रेलवे अफसरों की भी ली बैठक

बिलासपुर जोन के महाप्रबंधक नवीन टंडन ने रायपुर मंडल के अफसरों की भी बैठक ली। बैठक में दक्षिण-पूर्व-मध्य रेलवे का लक्ष्य मिशन 160 प्लस मिलियन टन लदान सहित कई योजनाओं पर चर्चा हुई। बैठक में रेलवे मंडल प्रबंधक राजीव सक्सेना, मुख्य कारखाना प्रबंधक रविकुमार, अपर मंडल प्रबंधक विवेक खरे सहित अन्य अफसर मौजूद थे।

Friday 2 May 2014

Searching in enjoy work

एक गांव में कुछ मजदूर पत्थर के खंभे बना रहे थे। उधर से एक संत गुजरे। उन्होंने एक मजदूर से पूछा- यहां क्या बन रहा है? उसने कहा- देखते नहीं पत्थर काट रहा हूं? संत ने कहा- हां, देख तो रहा हूं। लेकिन यहां बनेगा क्या? मजदूर झुंझला कर बोला- मालूम नहीं।

यहां पत्थर तोड़ते-तोड़ते जान निकल रही है और इनको यह चिंता है कि यहां क्या बनेगा। साधु आगे बढ़े। एक दूसरा मजदूर मिला। संत ने पूछा- यहां क्या बनेगा? मजदूर बोला- देखिए साधु बाबा, यहां कुछ भी बने।

चाहे मंदिर बने या जेल, मुझे क्या। मुझे तो दिन भर की मजदूरी के रूप में 100 रुपए मिलते हैं। बस शाम को रुपए मिलें और मेरा काम बने। मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि यहां क्या बन रहा है। साधु आगे बढ़े तो तीसरा मजदूर मिला। साधु ने उससे पूछा- यहां क्या बनेगा? मजदूर ने कहा- मंदिर।

इस गांव में कोई बड़ा मंदिर नहीं था। इस गांव के लोगों को दूसरे गांव में उत्सव मनाने जाना पड़ता था। मैं भी इसी गांव का हूं। ये सारे मजदूर इसी गांव के हैं। मैं एक- एक छेनी चला कर जब पत्थरों को गढ़ता हूं तो छेनी की आवाज में मुझे मधुर संगीत सुनाई पड़ता है। मैं आनंद में हूं।

कुछ दिनों बाद यह मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा और यहां धूमधाम से पूजा होगी। मेला लगेगा। कीर्तन होगा। मैं यही सोच कर मस्त रहता हूं। मेरे लिए यह काम, काम नहीं है। मैं हमेशा एक मस्ती में रहता हूं। मंदिर बनाने की मस्ती में। मैं रात को सोता हूं तो मंदिर की कल्पना के साथ और सुबह जगता हूं तो मंदिर के खंभों को तराशने के लिए चल पड़ता हूं।

बीच-बीच में जब ज्यादा मस्ती आती है तो भजन गाने लगता हूं। जीवन में इससे ज्यादा काम करने का आनंद कभी नहीं आया। साधु ने कहा- यही जीवन का रहस्य है मेरे भाई। बस नजरिया का फर्क है।

संक्षेप में

आप जो भी काम करें उसमें आनंद ढूंढ लें। काम स्वतः ही आनंदमय हो जाएगा। गीता में भी कहा गया है कि कर्म करो फल की इच्छा मत करो, अगर कर्म अच्छे हैं तो फल स्वतः ही मिल जाएगें।

Importance of lord vishnu among the four

भगवान विष्णु की चार भुजाएं होती हैं। यह जग विख्यात है। कहा जाता है कि चार का अंक ऐसा अंक है, जिससे इस सृष्टि का निर्माण हुआ है।

चार भुजाधारी भगवान विष्णु के भीतर जब सृष्टि रचना की इच्छा हुई तो उनकी नाभि से चतुर्भुज ब्रह्माजी का जन्म हुआ। ब्रम्हा के हाथों में चार वेद क्रमशः 'ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्वेद' थे।

ब्रह्माजी ने विष्णु जी की आज्ञानुसार विश्व के प्राणियों को चार वर्गों 'अण्डज, जरायुज, स्वेदज एवं उदभिज' में बांटा और उन प्राणियों की जीवन व्यवस्था को भी चार अवस्थाओं में बांट दिया। जिनमें 'जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति एवं तुरीय में की।'

इसके बाद उन्होंने काल को चार युगों 'सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग में बांट दिया।' विष्णु जी ने सृष्टि की रचना अपने चार मानस पुत्रों 'सनक, सनंदन, सनत्कुमार तथा सनातन' से प्रारंभ की, लेकिन वे चारों मानस पुत्र भगवान के चार धामों 'बदरीनाथ धाम, रामेश्वरधाम, द्वारकाधाम और जगन्नाथ धाम' में भगवान विष्णु की भक्ति करने चले गए।

जब इन चारों मानस पुत्रों से सृष्टि रचना का कार्य पूर्ण नहीं हुआ तो ब्रह्माजी ने चार वर्ण 'ब्रह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बन' जिनसे चार आश्रमों 'ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास' का निर्माण हुआ, इस तरह सृष्टि का कार्य सुचारू रूप से चलने लगा।

भगवान विष्णु के चतुर्भुजरूप धारण कर भक्तों को चार पदार्थ 'धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष' देने पड़े। इस लिए भगवान विष्णु को चतुर्भुजरूप धारण करना पड़ा। यही कारण है कि उनकी चार भुजाएं होती हैं।

There is giu village of old saint mysterious mummy

हिमाचल का गीयू गांव। यहां है 550 साल पुरानी एक संत कि प्राकृतिक ममी। जिसके बाल और नाखून अभी भी बड़ते हैं। जिसे लोग देखकर हैरान हैं। गोवा के बीम जीसस चर्च के संत फ्रांसिस जेवियर की मौत के बाद उनके शव को केमिकल्स से संरक्षित करके ममी बनाई गई थी।

यह ममी हिमाचल प्रदेश के लाहुल स्पीति जिले के गीयू गांव में रखी हुई है। यह ममी लगभग 550 साल पुरानी है। इस ममी के बाल और नाखून आज भी बढ रहे हैं।

तिब्बत से 2 किमी दूर

ये ममी बैठी हुई अवस्था में है जबकि दुनिया में पाई गईं बाकी ममी लेटी हुई अवस्था में मिलती हैं। गीयू गांव हर साल में 6 से 8 हीने बर्फ की वजह से बाकी दुनिया से कटा रहता है। क्योकि यह गांव काफी ऊंचाई पर स्थित है और ये तिब्बत से मात्र 2 किलोमीटर दूर है ।

गांव वालो की मानें तो ये ममी पहले गांव में ही रखी हुई थी और एक स्तूप में स्थापित थी, पर 1974 में भूकम्प आया तो ये कहीं पर दब गई । उसके बाद सन 1995 में आईटीबीपी के जवानो को सडक बनाते समय ये ममी मिली और उन्होंने इसे सुरक्षित स्थान पर रख दिया गया।

ममी के सिर से निकला खून

कहा जाता है कि उस समय कुदाल सिर में लगी इस ममी के और कुदाल लगने के बाद ममी के सिर से खून भी निकला। जिसका निशान आज भी मौजूद है। इसके बाद सन 2009 तक ये ममी आईटीबीपी के कैम्पस में ही रखी रही। इसके बाद गांव वालो ने इस ममी को गांव में लाकर स्थापित कर दिया।

ममी को रखने के लिए शीशे का एक कैबिन बनाया गया है। इस ममी की देखभाल गांव में रहने वाले परिवार करते हैं। यहां आने वाले पर्यटकों को वे ममी के बारे में जानकारी देते है। यहां पर देश विदेश के हजारों पर्यटक इस मृत देह को देखने आते हैं।

इस ममी के बाल भी हैं। ममी की जांच भी की गई थी जिसमें वैज्ञानिको ने बताया था कि ये 545 वर्ष पुरानी है । पर इतने साल तक बिना किसी लेप के और जमीन में दबी रहने के बावजूद ये ममी कैसे इस अवस्था में है ये आश्चर्य का विषय है ।

गांव में बिच्छुओं का प्रकोप

कहते हैं कि करीब 550 वर्ष पूर्व गीयू गांव में एक संत थे। गीयू गांव में इस दौरान बिच्छुओं का बहुत प्रकोप हो गया। इस प्रकोप से गांव को बचाने के लिए संत फ्रांसिस जेवियर ने ध्यान लगाने के लिए लोगों से उसे जमीन में दफन करने के लिए कहा।

जब संत फ्रांसिस जेवियर को जमीन में दफन किया गया तो उनके प्राण निकलते ही गांव में इंद्रधनुष निकला और गांव बिच्छुओं से मुक्त हो गया।

बौद्ध भिक्षु सांगला तेनजिंग

जबकि कुछ लोगो का कहना है कि ये ममी बौद्ध भिक्षु सांगला तेनजिंग की है जो तिब्बत से भारत आए और यहां पर जो एक बार योगमुद्रा में बैठे तो फिर उठे ही नहीं।

ऐसा माना जाता है कि ममी के बाल और नाखुन बढ़ते हैं लेकिन गीयू गांव के लोगों की मानें तो अब ममी के बाल और नाखुन बढऩे कम हो गए हैं। बाल कम होने के कारण ममी का सिर गंजा होने लगा है।

Take something like this to shanidev

ज्योतिष के मुताबिक शनिवार का दिन बहुत ही खास माना गया है। क्योंकि इस दिन जो शनिभक्त शनिदेव को प्रसन्न कर लेता है उसके जीवन से धन और परिवार की समस्त समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। शनिदेव(सूर्यपुत्र) को मनाने के लिए कई उपाय हैं।

यदि शनि के बुरे प्रभावों से मुक्ति पाना चाहते हैं तो शनिवार के दिन से प्रतिदिन किसी भी हनुमान मंदिर में जाएं। हनुमानजी(पवनपुत्र) के सामने तेल का दीपक लगाएं और दीपक में 5 दाने काले उड़द के डालें।

यदि आप प्रतिदिन नहीं कर सकते हैं तो कम से कम हर शनिवार को अवश्य करें। इससे बहुत ही जल्दी आपकी कई समस्याओं का विनाश हो जाएगा। हनुमानजी की पूजा करने वाले भक्तों को किसी भी प्रकार के अधार्मिक कृत्यों से बचना चाहिए।

ज्योतिष के अनुसार शनि को सबसे निर्दयी और क्रूर देवता माना गया है। इन्हें न्यायाधीश का पद प्राप्त है। इसी वजह से इस ग्रह का स्वभाव क्रूर है कि यह व्यक्ति के अच्छे और बुरे कर्मों का वैसा ही फल प्रदान करता है।

किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि अशुभ स्थिति में हो तो उसे कई प्रकार के बुरे प्रभाव झेलना पड़ते हैं और जीवन में छोटी-छोटी सफलताओं के लिए भी कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।

शनि देव के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए ज्योतिष में कई तरह के उपाय बताए गए हैं। इन्हें अपनाने से शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। शनि के प्रकोप से बचने के लिए हनुमानजी की भक्ति भी काफी अचूक उपाय है।

हनुमानजी के भक्तों को शनिदेव से किसी भी तरह का कोई भय नहीं रहता है।

Microsoft rescues under-threat Windows XP users with fix for IE flaw

Microsoft rescues under-threat Windows XP users with fix for IE flaw
Microsoft is helping the estimated hundreds of millions of customers still running Windows XP, which it stopped supporting earlier this month, by providing an emergency update to fix a critical bug in its Internet Explorer browser.

Microsoft rushed to create the fix after learning of the bug in the operating system over the weekend when cybersecurity firm FireEye warned that a sophisticated group of hackers had exploited the bug to launch attacks in a campaign dubbed “Operation Clandestine Fox.”

It was the first high-profile threat to emerge after Microsoft stopped providing support to its 13-year-old XP operating software on April 8.

Microsoft on Wednesday initially said it would not provide the remedy to Windows XP users because it had stopped supporting the product. But on Thursday, as Microsoft started releasing the fix for the bug through its automated Windows Update system, a company spokeswoman said the remedy also would be pushed out to XP customers....


From firstpost News

Airtel launches 4G data services on mobile

Bharti Airtel Limited has launched its 4G services on mobile in three cities of India, Chandigarh, Mohali and Panchkula. Until now, Airtel customers of these cities were experiencing mobile internet on 2G speeds. Customers of these cities can experience high speed of internet browsing experience anytime, anywhere.

Customers using Apple iPhone 5s or 5c have to just upgrade their existing SIM to a 4G SIM and select from any 4G plan or pack to start enjoying mobile internet browsing at unbeatable speeds. Customers can walk into any of Airtel’s company operated stores in Chandigarh, Mohali and Panchkulato experience LIVE demos and get started on 4G.

“Tricity witnessed the advent of 4G last year and today we are proud to announce the launch of the much awaited 4G on mobile, empowering residents in the region to upgrade to the 4G – the fastest ever mobile broadband, matching their mobile internet experience with the rest of the world. As a brand we are committed to enriching the lives of millions and invite our data savvy customers in the city to enjoy this world class data experience which we are offering at unbeatable prices”, said Manu Sood, Hub CEO –Upper North, Bharti Airtel – India.

Customers will experience capabilities like high definition video streaming with zero buffering, downloading10 movies in less than 30 minutes, uploading full holiday albums in less than 5 minutes by uploading 2 high quality photos per second and also connecting multiple devices without any experience constraint...


From TT News

Thursday 1 May 2014

Kedarnath temple old mystery

आस्था के प्रतीक केदारनाथ मंदिर के कुछ महत्वपूर्ण राज पहली बार उजागर हो पाए हैं। हालही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को मंदिर के 11-12वीं सदी के प्रमाण मिले हैं।

केदारनाथ मंदिर की दीवारों पर गोदे गए अक्षरों (पुरालेखों) के अध्ययन के बाद विभाग इस निष्कर्ष पर पहुंचा है। मंदिर की दीवारों पर प्रारंभिक नागरी व नागरी में लिखे अक्षर मिले, जो 11-12वीं सदी में ही लिखे जाते थे।

जून 2013 की आपदा में केदारनाथ मंदिर के भीतर जमकर मलबा भर गया था। एएसआइ को मलबे की सफाई के दौरान मंदिर की दीवारों पर जगह-जगह अक्षर (पुरालेख) गुदे हुए मिले, जिनके अध्ययन के लिए मैसूर से विभाग की इफिग्राफी ब्रांच के विशेषज्ञ बुलाए गए थे।

इफिग्राफी ब्रांच के निदेशक डॉ. रविशंकर की ओर से अध्ययन रिपोर्ट पूरी कर विभाग के महानिदेशक व क्षेत्रीय कार्यालय, देहरादून को भेजी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरालेख प्रारंभिक नागरी व नागरी में दर्ज हैं, जिससे माना जा सकता है कि मंदिर 11-12वीं सदी में अस्तित्व में आया।

विशेषज्ञों ने चिंता भी जाहिर की कि पुरालेखों में किसी तारीख का उल्लेख नहीं मिला। न ही किसी राजवंश का नाम दीवारों में दर्ज पाया गया। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी पता चला कि पुरालेख मंदिर में आने श्रद्धालुओं या आमजन के थे। इनकी लिखावट आड़ी-तिरछी पाई गई, क्योंकि किसी राजा या खास पुरालेख में बनावट आदि का विशेष ख्याल रखा जाता था। पुरालेखों में दान देने, भगवान को नमन करने व मंदिर तक सकुशल पहुंचने आदि का जिक्र मिला।

मंदिर की दीवारों पर गोदे गए अक्षरों के अध्ययन के बाद इपिग्राफी (पुरालेख) विशेषज्ञों ने निकाला निष्कर्ष निकाला कि प्रारंभिक नागरी व नागरी ये अक्षर (पुरालेख) टंकित किए गए हैं।

बेहद खराब हो चुके हैं पुरालेख रिपोर्ट में इपिग्राफी विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की कि पुरालेखों की दशा रखरखाव के अभाव व मौसम की विषम परिस्थितियों के चलते बेहद खराब स्थिति में पहुंच गई है।

नियंत्रण के अभाव में दीवारों पर कुछ जगह पुरालेख एक दूसरे के ऊपर भी दर्ज हैं। जिससे ऐसे अक्षरों को पढ़ पाना संभव नहीं हो पाया।

अब तक मंदिर निर्माण की मान्यताएं-एक मान्यता के अनुसार केदारनाथ मंदिर को आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने बनाया। जबकि राहुल सांकृत्यायन लिखित अभिलेखों में मंदिर को 12-13वीं शताब्दी का बताया गया।

वहीं, ग्वालियर में मिली एक राज भोज स्तुति में मंदिर को 1076-99 काल का माना गया। पांडव या उनके वंशज जन्मेजय के समय भी मंदिर निर्माण की बात सामने आती है।

It is the abode of lord shiva dham

हिमालय की 'केदार' नामक चोटी पर स्थित है देश के बारह ज्योतिर्लिगों में सर्वोच्च केदारनाथ धाम। कहते हैं समुद्रतल से 11746 फीट की ऊंचाई पर केदारेश्वर ज्योतिर्लिग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। आने वाली 4 मई को केदारनाथ के धाम खोले जाएंगे।

पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात् भैंसे का पिछला अंग (भाग) है। मंदिर की ऊंचाई 80 फीट है, जो एक विशाल चबूतरे पर खड़ा है। मंदिर के निर्माण में भूरे पत्थरों का उपयोग हुआ है।

'स्कंद पुराण' में भगवान शंकर जी माता पार्वती से कहते हैं, 'हे प्राणोश्वरी! यह क्षेत्र उतना ही प्राचीन है, जितना कि मैं हूं। मैंने इसी स्थान पर सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्म के रूप में परब्रह्मत्व को प्राप्त किया, तभी से यह स्थान मेरा चिर-परिचित आवास है। यह केदारखंड मेरा चिरनिवास होने के कारण भू-स्वर्ग के समान है।'

केदारखंड में उल्लेख है, 'अकृत्वा दर्शनम् वैश्वय केदारस्याघनाशिन:, यो गच्छेद् बदरीं तस्य यात्र निष्फलताम् व्रजेत्'।

मौसम

गर्मियों में धूप खिलने पर मौसम मनोरम और रात को ठंड। बारिश होने पर पारा गर्मियों में भी शून्य से नीचे आ जाता है। जून से सितंबर तक बरसात रहती है, पहाड़ों से चट्टानें टूटकर गिरने का खतरा। अक्टूबर से कड़ाके की ठंड शुरू। दिसंबर से मार्च तक पारा शून्य से 10 डिग्री नीचे तक लुढ़क जाता है।

वेशभूषा

मई से अगस्त तक हल्के ऊनी कपड़े सितंबर से नवंबर तक भारी ऊनी कपड़े।