Monday 19 May 2014

Learn from shriram life management

वास्तव में मैनेजमेंट का मतलब लोगों को मैनेज करना होता है। एक कामयाब मैनेजर में कुछ विशेषताएं होती हैं। जैसे लक्ष्य जिसे पाने का ढंग, मूल्य, रणनीति, विश्वास, प्रोत्साहन, श्रेय, उपलब्धता और पारदर्शिता।

राम का लक्ष्य था सत्य और न्याय का शासन स्थापित करना। इसके लिए उन्होंने जो मूल्य चुने, उनमें पिता की आज्ञा का हृदय से पालन, शबरी और केवट के साथ सामाजिक समानता।

भगवान श्रीराम अपना हर काम लगभग मैनेजमेंट के जरिए ही करते थे और उनका मैनेजमेंट काफी कारगर सिद्ध होता था। राम ने रावण से युद्ध की तैयारियां दो साल तक कीं। चाहते तो एक नजर समुद्र को देखते और पुल बन जाता।

बीस दिन तक युद्ध चला और रावण मारा गया। वह चाहते तो लंका बिना जाए उसे खत्म कर देते। राम कहीं चमत्कार नहीं करते। चमत्कार हनुमान करते हैं। पर्वत उठा लाते हैं। दोनों भाइयों को कंधों पर बैठाकर निकल पडते हैं। अंगद चमत्कार करते हैं। पांव ऐसा जमाते हैं कि कोई उठा नहीं पाता।

राम ने कोई ग्रंथ नहीं लिखा और न ही प्रवचन दिया। खुद को ईश्वर का अवतार बताकर समाज से बुराइयां मिटाने का अभियान भी नहीं चलाया। उन्होंने अपना जीवन ही ऐसा बनाया कि लोग उनसे सीखें।

राम ने रणनीति के तहत ही समुद्र पर वानरों, भालुओं से पुल बनवाया। इससे जनता को लगा कि उन्होंने खुद कुछ करके राक्षसों का नाश किया। इससे जनता के मन से राक्षसों का भय निकल गया। उनमें गजब का आत्मविश्वास था।

जब भरत अपनी सेना सहित उन्हें वन से वापस लेने आ रहे थे तो लक्ष्मण को लगा कि वह युद्ध करने आ रहे हैं, पर राम निश्चिंत थे। राम मोटीवेटर भी थे। मोटीवेशन न होता तो भालू और बंदर दो साल तक पुल बनाने में नहीं लग पाते। कब के भाग गए होते।

हनुमानजी को उनकी शक्तियां याद दिलाने के लिए तो राम को उन्हें जबरदस्त तरीके से प्रोत्साहित करना पडता था। लंका विजय का श्रेय भी राम ने नहीं लिया। वह जनता के लिए उपलब्ध रहते थे और उनके कार्यों में पारदर्शिता थी।

अगर राम से सफल मैनेजमेंट सीखकर कोई मैनेजर बनता है और अभिभूत होकर अपने इस मैनेजमेंट गुरु के आगे सिर झुकाता है तो ठीक है। हम ऐसा कर पाते हैं तो रामराज जाता नहीं आता है।
 

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