Monday 12 May 2014

Maitreya budhdha will be next avtar

वैशाली की नगर-वधू आम्रपालि को धर्म की दीक्षा देकर भगवान बुद्ध आम्रवन से चलकर बेलवा गांव में आए और वहीं वर्षावास करते समय बुद्ध को मृत्यु तुल्य कष्ट होने लगा तथापि अपने आत्मबल से उन्होंने शारीरिक व्याधि पर नियंत्रण कियाा। उस समय बुद्ध अस्सी वर्ष के हो चुके थे तब उन्होंने अपने शिष्यों को स्पष्टत: कहा कि तथागत बुद्ध अब देहत्याग कर परिनिर्वाण प्राप्त करेंगे।

भगवान बुद्ध की इस अकस्मात घोषणा से सभी शिष्य दुखी हो गए। बुद्ध के शिष्य आनंद एकान्त में खड़े होकर रोने लगे, अश्रुपूर्ण नेत्रों से आनंद ने बुद्ध से पूछा, 'भदन्त! आपके जाने के बाद हमें कौन शिक्षा देगा? कौन हमारे दुखों को दूर करेगा?" इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान बुद्ध ने कहा कि- 'आनंद! मैं

पृथ्वी पर अवतीर्ण होने वाला पहला और अंतिम बुद्ध नहीं हूं। मुझसे पहले अनेक बुद्ध अवतार लेकर इस भूतल पर आए और मेरे बाद अनेक बुद्ध भविष्य में भी अवतीर्ण होंगे जो मानवों को त्रिविध दुखों से मुक्त कर उनका कल्याण करेंगे। मेरे महापरिनिर्वाण के चार हजार वर्ष पश्चात मेरे द्वारा प्रवर्तित यह बौद्ध धर्म लुप्त हो जाएगा। इस लोक में अनैतिकता-अनाचार इतना बढ़ जाएगा कि मानव जीवन असुरक्षित होता रहेगा, सुरक्षा के लिए लोग इधर-उधर भटकेंगे। सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच जाएगी, मानव जीवन संघर्षमय बनता रहेगा। ऐसे आपातकाल में प्राणियों की सुरक्षा के लिए 'बोधिसत्व मैत्रेय" इस भूतल पर भविष्य बुद्ध के रूप में अवतार लेंगे। वे पुन: बौद्ध धर्म की संस्थापना करेंगे और सभी मानवों को सुख, शांति एवं समृद्धि प्रदान करेंगे।"

भगवान बुद्ध की इस भविष्यवाणी से शिष्यों और भिक्षुओं की भविष्य बुद्ध मैत्रेय के प्रति आस्था स्थापित हो गई और वे मैत्रेय को गौतम बुद्ध के समान मानने लगे और कालान्तर में मैत्रेय बौद्धों की उपासना के पात्र बन गए। ईसा की पहली शताब्दी में बुद्ध धर्म की हीनयान और महायान इन दोनों शाखाओं के शिष्य मैत्रेय को बुद्धावतार के रूप में समुचित आदर देने लगे। बौद्ध धर्म ग्रंथों में वर्णन है कि इस समय मैत्रेय 'तुषित" नामक स्वर्ग में विराजमान हैं, वे अवतार लेने के उचित अवसर की प्रतीक्षा में हैं। आगे यह भी वर्णन है कि तुषित स्वर्ग में मैत्रेय बुद्ध अनेक चमचमाती मणियों से युक्त हार पहने, स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान हैं। शीतल, सुगंधित पवन से तुषित स्वर्ग में रम्य वातावरण है, मैत्रेय के चारों ओर इंद्र यम आदि देवता स्तुतिगान कर रहे हैं, यक्ष, किन्नार, गन्धर्व आदि उनके द्वारपाल हैं, अप्सराएं एवं नृत्यांगनाएं मधुर संगीत की संगत के साथ नृत्य कर रही हैं। ऐसे दिव्य तुषित स्वर्ग पर बुद्ध मैत्रेय शासनारूढ़ हैं।

जब बौद्ध उपासकों में यह धारणा सुदृढ़ हो गई मैत्रेय भूतल पर अवतीर्ण होकर प्राणिमात्र का पूर्ण रूप से कल्याण करेंगे, इस आस्था से मैत्रेय की उपासना में विस्तार होने लगा। इसी तारतम्य में बौद्ध शिल्पियों ने मैत्रेय के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए मैत्रेय की भिन्ना-भिन्ना आकार-प्रकार की अनेक मूर्तियों का निर्माण किया। इनकी अधिकतर मूर्तियां गांधार शैली की हैं जिनमें मैत्रेय अपने बाएं हाथ में कलश तथा दाएं हाथ में चम्पक पुष्प लिए हुए उत्कीर्ण हैं। शीर्ष पर मुकुट है तथा कमर में दुपट्टा बांधे हैं। वे कुरुकुल्ला एवं भृकुटि इन दो देवियों के साथ उद्धृत हैं।

बौद्ध तंत्र में मैत्रेय तीन मुखवाले, त्रिनेत्र एवं चतुर्भुज रूप में अंकित हैं, ये पर्यंक आसन तथा वरमुद्रा में आसीन हैं। नाना अलंकारों से विभूषित मैत्रेय की ऐसी आकर्षक प्रतिमाएं बनाकर बौद्ध शिल्पियों ने इन्हें सर्वत्र भविष्य बुद्ध के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। जब बौद्ध धर्म हिमालय की चोटियों को पार कर चीन और तिब्बत में प्रचलित हुआ तब चीन के बौद्धों ने मैत्रेय को भी भारतीय बौद्धों की तरह अपनी उपासना में सम्मिलित कर लिया और मैत्रेय चीन देश में शीघ्र ही लोकप्रिय हो गए। चीनी बौद्धों ने मैत्रेय को चीनी भाषा में 'मि लो फो" नाम से सम्बोधित किया। इन बौद्धों की मान्यता है कि हर बुद्ध का एक मनोनीत वृक्ष होता है जिसके नीचे वे तपस्या में लीन होकर बुद्धत्व प्राप्त करते हैं। जिस प्रकार गौतम बुद्ध ने बोधिवृक्ष के नीचे सम्बोधि प्राप्त की वैसे ही बोधिसत्व मैत्रेय चम्पक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ होकर बुद्धत्व प्राप्त करेंगे।

इस मान्यता से चीन देश के ची क्याड.प्रान्त में मैत्रेय की चालीस से सत्तर फुट ऊंची अनके मूर्तियां बनाई गईं। मैत्रेय की इतनी लोकप्रियता देखकर छठी शताब्दी के तांग-वंश के शासन काल में एक मैत्रेय-समाज की स्थापना हुई और इस समाज के सदस्य वे ही होते थे जो भविष्य बुद्ध मैत्रेय के उपासक थे।

चीन की तरह तिब्बत के लामाओं ने भी मैत्रेय को भविष्य बुद्ध के रूप में माना। तिब्बती भाषा में इन्हें 'धम-पा" कहा गया है। ये लामा मानते हैं कि बुद्धावतार के रूप में मैत्रेय पांचवें बुद्ध होंगे जो अलौकिक ज्ञान से पूर्ण, लोगों के कल्याण के लिए अवतरित होंगे। लामाओं के पवित्र ग्रंथ 'तंजुर" में मैत्रेय की महिमा का विशद वर्णन है। आठवीं शताब्दी में मैत्रेय जापान पहुंच गए। जापानी बौद्धों ने इन्हें करुणा का सागर माना और इसी रूप में जापानी भाषा में उन्हें 'मि रो कु" नाम दिया। जापानी, मैत्रेय से अपने कष्ट निवारण के लिए प्रार्थना करते हैं और उनसे शीघ्र भूतल पर अवतीर्ण होने का आग्रह करते हैं।

भारत के निकटवर्ती देश श्रीलंका में मैत्रेय को 'मेत्तेय" कहा। पांचवीं शताब्दी के राजा धातुसेन ने लंका में एक विशाल मंदिर बनाया और उसमें मैत्रेय को ससम्मान विराजित किया। कालक्रम से लंका में मैत्रेय जन-जन के देवता हो गए। इन्हीं देशों की तरह मैत्रेय बर्मा, जावा और स्याम देशों में भी उपास्य हैं।

इस प्रकार बौद्ध जगत में भविष्य बुद्ध मैत्रेय अति आदरणीय हो गए। पुराण-गाथाओं में जिस प्रकार भगवान विष्णु के दशावतार की गणना में भगवान गौतम बुद्ध नवें अवतार हैं और भविष्य में अवतार कल्कि होंगे उसी प्रकार बौद्ध-गाथाओं में जो बुद्ध के अवतारों का वर्णन हैं उनमें गौतम बुद्ध सातवें बुद्ध हैं और मैत्रेय भविष्य बुद्ध होंगे।

जब इस भूतल पर धर्म लुप्त हो जाएगा, सर्वत्र लोग अनाचार-अत्याचार से त्रस्त हो चुके होंगे, जीवन जीना दूभर हो जाएगा ऐसे घोर संकट से मानवों को मुक्त करने के लिए बोधिसत्व मैत्रय अवतीर्ण होकर पुन: सदधर्म की स्थापना करेंगे।

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