Sunday 23 February 2014

it is given in a court of devotees gods punishment

देवी और देवताओं की जन्मस्थली भारत में सदियों से कई प्रथाएं और परंपराए रही हैं। अपनी हर समस्या के निदान के लिए धर्म के प्रति आस्था रखने वाले लोग देवताओं के मंदिरों में नतमस्तक होनेआते हैं।

मान्यता है कि बस्तर के लोग जनअपेक्षाओं की कसौटी पर खरे नहीं उतरने वाले देवताओं को दंडित करने का जज्बा रखते हैं। यह दंड आर्थिक जुर्माने, अस्थायी निलंबन या फिर हमेशा के लिए देवलोकसे देवी-देवताओं की विदाई के रूप में होता है और फैसला लेती है 'जनता की अदालत'।

छत्तीसगढ़ के स्तर जिले के केशकाल कस्बे में हर साल भादों जात्रा उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यहां की भंगाराम देवी 9 परगना के 55 राजस्व ग्रामों में रहने वाले लोगों और देवी-देवता का दर्जा प्राप्त मानवों की आराध्य देवी हैं।

इस वर्ष भादो जात्रा माह उत्सव 31 अगस्त को केशकाल में आयोजित हुआ था। भादो जात्रा में सांप्रदायिकता की मिसाल भी मिलती है। भंगाराम देवी के मंदिर के समीप डॉक्टर खान को देवता का दर्जा प्राप्त है। उन पर पूरे 9 परगना के लोगों को बीमारियों से बचाए रखने की जिम्मेदारी है।

कहते हैं कि वर्षो पहले क्षेत्र में कोई डाक्टर खान थे, जो बीमारों का इलाज पूरे सेवाभाव और नि:स्वार्थ रूप से किया करते थे। उनके न रहने पर उनकी सेवा भावना के कारण उन्हें यहां की जनता ने देव रूप में स्वीकार कर लिया और उनकी पूजा की जाने लगी।

जहां अन्य देवताओं को भेंट स्वरूप बलि दी जाती है, वहीं डाक्टर खान देव को अंडा और नींबू अर्पित किया जाता है। बस्तर का आदिवासी समाज जागरूक है। वह आंख मूंदकर अपने पूजित देवी-देवताओं पर विश्वास करने के बजाय ठोंक बजाकर उन्हें जांचता-परखता है।

अकर्मण्य और गैरजिम्मेदार देवी-देवताओं को सफाई पेश करने का मौका देकर जनअदालत में उन्हें सजा भी सुनाता है। सजा देने वाले होते हैं भगवान के भक्त। यह स्थिति तब निर्मित होती है, जब इलाके का जनमानस किसी भी वजह से दुखी और पीड़ित होता है।

भक्तों की जन अदालत में देवताओं के खिलाफ लिए गए फैसलों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। पूजित देवताओं के प्रति समर्पित भक्त का यदि अहित हो तो यह भक्त का अधिकार है कि वह अपने आराध्य को कटघरे में खड़ा करे।

शास्त्रों के अनुसार, भगवान भक्त के अधीन होते हैं। इसी के अनुरूप आदिम प्रजाति में इस परंपरा का प्रादुर्भाव हुआ होगा।

बाहरी दुनिया की सभ्य संस्कृति के लोग भले ही ऐसा न कर सकें, लेकिन बस्तर के जनजातीय समुदाय के लोग जैसे पूरे देश में विरले ही होंगे, जो भगवान को भी जनअदालत के कटघरे में खड़ा कर उन्हें सजा भी सुनाते हों।

भादो के आखिरी शनिवार को हर साल केशकाल में लगने वाली जनअदालत में जिन देवी-देवताओं को सजा सुनाई जाती है, उनकी वापसी का भी प्रावधान है, लेकिन उनके चरण तभी पखारे जा सकते हैं।

जब वे अपनी गलतियों को सुधारते हुए भविष्य में लोककल्याण के कार्यों को प्राथमिकता से करने का वचन देते हैं।

सजा पाए देवी-देवता संबंधित पुजारी को स्वप्न में वचन देते हैं। कि वह उनके सभी कार्यों को पूरा कर देंगे।

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