Sunday 16 February 2014

jyotirlinga where tridev resides

महाराष्ट्र के प्रमुख शहर नासिक से महज 28 किलोमीटर की दूरी पर त्रयंबकेश्वर (तीन नेत्र वाले ईश्वर) ज्योतिर्लिंग मंदिर स्थित है। इस मंदिर को लेकर ऐसा माना जाता है कि यहां त्रिदेव विराजमान हैं।

यह एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां केवल भगवान शिव नहीं बल्कि भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा भी हैं। इसी मंदिर के नजदीक ब्रह्मगिरि नामक पर्वत है जहां से गोदावरी नदी का उद्गम माना जाता है।

इस सुंदर मंदिर की छटा दूर से ही देखते बनती है। इसे देखकर ऐसा लगता है कि मानों इसने कई सालों का इतिहास अपने अंदर दबाकर रखा हुआ है।

पौराणिक कथा

त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठापना के बारे में उल्लेख है कि कभी यहां महर्षि गौतम निवास करते थे। एक बार उनके आश्रम में ब्राह्मणों और ऋषियों के छल से उन पर गो-हत्या का अपराध लग गया।

गो-हत्यारे महर्षि गौतम की भारी भर्त्सना की जाने लगी। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दु:खी थे।

उनके ऊपर सभी ब्राह्मणों का आश्रम छोड़ने का दबाव था। विवश होकर ऋषि गौतम ब्रह्मगिरी पर्वत पर चले गए और वहां भगवान शंकर का घोर तप किया। भगवान शंकर उनसे प्रभावित हुए और प्रकट होकर उनसे वर मांगने को कहा।

महर्षि गौतम ने उनसे कहा भगवान मैं यही चाहता हूं कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें। भगवान शिव ने कहा - गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो। गो-हत्या का अपराध तुम पर छलपूर्वक लगाया गया था। इसलिए तुम पहले से पाप मुक्त हो। गौतम मुनि की प्रार्थना पर भगवान शंकर ब्रह्मगिरी की तलहटी में त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हो गए।


जीर्णोद्धार

इस प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण तीसरे पेशवा बालाजी अर्थात नाना साहब पेशवा ने करवाया था। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 1755 में शुरू हुआ था और 31 साल के लंबे समय के बाद 1786 में जाकर पूरा

हुआ। कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर के निर्माण में करीब 16 लाख रुपए खर्च किए गए थे, जो उस समय काफी बड़ी रकम मानी जाती थी।


संरचना

गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्रयंबकेश्वर मंदिर काले पत्थरों से बना है। मंदिर का स्थापत्य अद्भुत है। इस भव्य मंदिर में पूर्व की ओर सबसे बड़ा चौकोर मंडप है। इसके चारो ओर दरवाजे हैं। पश्चिमी

द्वार को छोड़कर बाकी तीनों से इसमें प्रवेश कर सकते हैं। इसका पश्चिमी द्वार श्रद्धालुओं के लिए महत्वपूर्व अवसरों पर खोला जाता है। सभी द्वारों पर द्वार-मंडप हैं। गर्भगृह अंदर से चौकोर और बाहर से

बहुकोणीय तारे जैसा है। गर्भगृह के ऊपर शिखर है, जिसके अंत में स्वर्ण कलश लगा है।

अन्य स्थल

त्रयंबकेश्वर मंदिर ब्रह्मगिरि नामक पहाड़ी की तलहटी में स्थित है, जो अपने आप दर्शनीय स्थल है। ब्रह्मगिरि की बायीं ओर नीलगिरि की पहाड़ी है। इस पर नीलांबिका, नीलकंठेश्वर और भगवान दत्तात्रेय के मंदिर हैं। त्रयंबकेश्वर मंदिर के दर्शन के लिए आने वाले भक्तजन इन मंदिरों का भी दर्शन जरूर करते हैं।

इस तरह पहुंचें

नासिक से 28 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद त्रयंबकेश्वर मंदिर यातायात से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। यदि आप बस से पहुंचना चाहते हैं तो नासिक से सुबह पांच से लेकर रात नौ बजे तक हर 15

मिनट में सरकारी बसें चलाई जाती हैं। मंदिर तक पहुंचने के लिए कई निजी लग्जरी बसें भी उपलब्ध हैं। त्रयंबकेश्वर मंदिर का नजदीकी रेलवे स्टेशन नासिक ही है जो पूरे देश से रेल के जरिए जुड़ा हुआ है।

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