बिहार के गया डोभी के अमारूत गांव मे स्थित है कोल राजा का किला। कहते हैं इस किले के नीचे कोल राजाओं का इतिहास दफन है। ऐसा माना जाता है कि किले के अंदर राजा के साथ राज दरबार के कई महत्वपूर्ण जानकारी आज भी इस गढ़ के नीचे स्थित है।
किले(गढ़) के बारे मे लोग बताते हैं की इस जगह पर कोल राजा का दरबार था। जहां कई कुएं नुमा खजाना घर बनाया गया था। गढ़ राज का महल था। इस गढ़ से निकलने के कई रास्ते बनान गए थे। इसके अलावे दो गुफाएं बनायी गयी थी।
यहां निकलने वाली इस गुफा का एक मुंह कोठवारा का शिव मंदिर को, दूसरा मुंह लीलाजन नदी को खुलता है। इस गुफा के माध्यम से राजा और रानी लीलाजन नदी मे स्नान करने के बाद हरदिन कोठवारा शिवमंदिर मे पूजा अर्चना करते थे। इस प्रमाण को दर्शाता हुआ आज भी गुफा है। जिसका सतह काफी चिकना है।
आज के लोग इस बात से इंकार करते हैं की यह सतह का निर्माण किस सामग्री से किया गया होगा। चूंकि उस वक्त सिमेंट का आविष्कार नही हुआ था। कई बार विशालकाय सांप को देखे जाने के कारण गुफा के मुंह को ग्रामीण के द्वारा मिलजुल कर बंद करवा दिया गया।
राजाओं का साम्राज्य खत्म होने के बाद गढ़ पर वीरानी छा गई। बाद में मुगलशासक और गोरे का भी कब्जा रहा। राजा की संपत्ति लूट कर ले गये। बची हुई संपत्ति और इनसे जुड़े इतिहास आज भी गढ़ के नीचे मिलेंगे। विद्यालय के निर्माण के वक्त कई लोगो को यहां से कई महत्वपूर्ण सामग्री प्राप्त हुए।
लोगों द्वारा दबा लिया गया। सरकारी तंत्र तक नही पहुंच सका जिससे कोई इतिहास की बात अधिकारी कर सके। कई बार लोगों को कलश, चूड़ियां, स्तूप, खंडित मूर्तियां आदी आज तक मिल रहा है। ऐसा बताया जाता है की तथागत का बोधगया पुर्नआगमन के दौरान वे इस जगह पर रात्रि विश्राम भी किये थे।
इस गढ़ से लोग दूर-दूर तक का नजारे को देख सकते हैं। माना जाता है कि आज भी इसकी खुदाई से कई अहम जानकारी मिल सकेगी।
परन्तु यह संभव नही है चूंकि 1963 मे इस पर हाई स्कूल बना दिया गया। फिर भी इसके नीचे एक देश का बड़ा इतिहास का दफन हो गया। जो हमेशा की तरह एक अबुझ पहले बनकर रह जाएगी।
किले(गढ़) के बारे मे लोग बताते हैं की इस जगह पर कोल राजा का दरबार था। जहां कई कुएं नुमा खजाना घर बनाया गया था। गढ़ राज का महल था। इस गढ़ से निकलने के कई रास्ते बनान गए थे। इसके अलावे दो गुफाएं बनायी गयी थी।
यहां निकलने वाली इस गुफा का एक मुंह कोठवारा का शिव मंदिर को, दूसरा मुंह लीलाजन नदी को खुलता है। इस गुफा के माध्यम से राजा और रानी लीलाजन नदी मे स्नान करने के बाद हरदिन कोठवारा शिवमंदिर मे पूजा अर्चना करते थे। इस प्रमाण को दर्शाता हुआ आज भी गुफा है। जिसका सतह काफी चिकना है।
आज के लोग इस बात से इंकार करते हैं की यह सतह का निर्माण किस सामग्री से किया गया होगा। चूंकि उस वक्त सिमेंट का आविष्कार नही हुआ था। कई बार विशालकाय सांप को देखे जाने के कारण गुफा के मुंह को ग्रामीण के द्वारा मिलजुल कर बंद करवा दिया गया।
राजाओं का साम्राज्य खत्म होने के बाद गढ़ पर वीरानी छा गई। बाद में मुगलशासक और गोरे का भी कब्जा रहा। राजा की संपत्ति लूट कर ले गये। बची हुई संपत्ति और इनसे जुड़े इतिहास आज भी गढ़ के नीचे मिलेंगे। विद्यालय के निर्माण के वक्त कई लोगो को यहां से कई महत्वपूर्ण सामग्री प्राप्त हुए।
लोगों द्वारा दबा लिया गया। सरकारी तंत्र तक नही पहुंच सका जिससे कोई इतिहास की बात अधिकारी कर सके। कई बार लोगों को कलश, चूड़ियां, स्तूप, खंडित मूर्तियां आदी आज तक मिल रहा है। ऐसा बताया जाता है की तथागत का बोधगया पुर्नआगमन के दौरान वे इस जगह पर रात्रि विश्राम भी किये थे।
इस गढ़ से लोग दूर-दूर तक का नजारे को देख सकते हैं। माना जाता है कि आज भी इसकी खुदाई से कई अहम जानकारी मिल सकेगी।
परन्तु यह संभव नही है चूंकि 1963 मे इस पर हाई स्कूल बना दिया गया। फिर भी इसके नीचे एक देश का बड़ा इतिहास का दफन हो गया। जो हमेशा की तरह एक अबुझ पहले बनकर रह जाएगी।
Source: Spiritual Hindi Stories & Hindi Rashifal 2014
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