नागों का उल्लेख बौद्ध धर्मग्रंथो में भी बहुत अधिक मिलता है। बौद्ध धर्म में नागों को महात्मा बुद्ध का उपासक बताया गया है।
प्रयाग संग्रहालय में एक ऐसी मूर्ति, जिसमें वट वृक्ष के नीचे एक फन वाले नाग को बुद्ध की पादुकाओं की रक्षा करते हुए दिखाया गया है। बौद्ध ग्रंथों में दिशाओं के रक्षक के रूप में छायापति, कान्हागौतमाक्षी, विरूपाक्षी एवं ऐराव नामक इन चारों नागों को प्रतिष्ठित किया गया है।
कहते हैं कि महात्मा बुद्ध, एक बार जब उस समय के प्रसिद्ध पंडित उरुवेला कश्यप के आश्रम में गए और उसे अपना उपदेश देना चाहा, तो उसने इसलिए सुनने से इनकार कर दिया कि उसने एक बड़े भयानक नाग को काबू में कर रखा था, जिस पर बुद्ध का भी कोई वश नहीं चल सकता था।
इस पर महात्मा बुद्ध और नाग के बीच पूजा स्थल पर ही बल परीक्षण हुआ और महात्मा बुद्ध ने उस नाग को अपनी शक्ति से पराजित कर कमंडल में बंदी कर लिया।
उरुवेला कश्यप महात्मा बुद्ध की दिव्य शक्ति से बहुत प्रभावित हुआ और उनका अनुयायी बन गया। इस कथा का उल्लेख सांची, अमरावती और गंधर्व कला में कलात्मक रूप में आज भी देखा जा सकता है।
यह भी पढ़ेंः गरुड़ और नाग की शत्रुता की यह थी मुख्य वजह
सांची में महात्मा बुद्ध की उपस्थिति वैद्यशाला में पाषाण का आसन रखकर दर्शायी गई है। आसन पर पांच फणों वाला नाग दिखाया गया है। परंतु अमरावती पट्टी पर इस कथा में बुद्ध की उपस्थिति अग्निशाला के दो पदचिन्हों द्वारा दिखाई गई है। गंधर्व मूर्तिकला में बुद्ध को कश्यप बंधुओं के मध्य दिखाया गया है।
Source: Spiritual Hindi Stories & Rashifal 2014
No comments:
Post a Comment