हिमाचल प्रदेश के चंबा जिला में समुद्र तल से साढे सात हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है नयनाभिराम पर्वत। पौराणिक ग्रंथों में जिन चार कैलाश पर्वतों का उल्लेख आया है, उनमें से एक मणिमहेश कैलाश, इसी घाटी के अंतरगत आता है।
मान्यता है कि भगवान शिव यानी नटराज ने भरमौर घाटी में तांडव नृत्य भी किया था। तब भरमौर निवासियों के अनुसार नटराज सात तरह के तांडव नृत्य करते हैं-आनंद तांडव, संध्या (प्रदोष) तांडव, कालिका तांडव, त्रिपुर दाह तांडव, गौरी तांडव, संहार तांडव और उमा तांडव। भारत ही नहीं, बल्कि पाश्चात्य पुरातत्ववेताओं को भी भरमौर ने अपने गौरवपूर्ण अतीत की तरफ आकर्षित किया है।
शिखर शैली में बना मणिमहेश का विशाल मंदिर यहां के निवासियों और शैव मतावलंबियों के लिए आस्था का प्रतीक है।
मंदिर समूह में सबसे बडा और ऊंचा मणिमहेश मंदिर ही है, जिसका शिखर दूर से ही दिखाई देने लग जाता है। विद्वानों ने इस मंदिर का निर्माण काल राजा मेरुवर्मन (780 ई.) के समय का माना है। इस काल में मेरुवर्मन ने भरमौर में अन्य मंदिरों और मूर्तियों की स्थापना की थी।
कहा जाता है कि भरमौर(ब्रह्मपुर) में चौरासी सिद्धोंने धूनी रमाई थी और जहां-जहां वे बैठे थे, उन्हीं जगहों पर राजा साहिल वर्मा ने चौरासी मंदिरों का निर्माण करवाया था। यह मंदिर शिल्प व वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। मणिमहेशमंदिर में प्रवेश करते ही नंदी की भव्य कांस्य प्रतिमा ध्यान आकर्षित करती है।
नृसिंह भगवान का मंदिर शिखर शैली का बना है। इस मंदिर में नृसिंह भगवान की अष्टधातु की मूर्ति ग्यारह इंच ऊंचे तांबे की पीठ पर प्रतिष्ठित है। एक हजार से अधिक वर्ष पुरानी इन प्रतिमाओं पर वक्त की धूल जमी नहीं दिखाई देती, बल्कि इनकी चमक-दमक अभी तक बरकरार है और बडी श्रद्धा से इन्हें पूजा जाता है। भरमौरघाटी का दूसरा प्रसिद्ध शिव मंदिर हडसरमें है।
कुछ लोग इसे हिमाचल का अमरनाथ कहकर भी पुकारते हैं। भारत के उत्तर-पश्चिम में यह सबसे बडा शैव तीर्थ है और इसे भगवान शिव का वास्तविक घर माना गया है। समुद्र तल से 18,564 फुट की ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश के आंचल में करीब दो सौ मीटर परिधि की झील है।
मान्यता है कि भगवान शिव यानी नटराज ने भरमौर घाटी में तांडव नृत्य भी किया था। तब भरमौर निवासियों के अनुसार नटराज सात तरह के तांडव नृत्य करते हैं-आनंद तांडव, संध्या (प्रदोष) तांडव, कालिका तांडव, त्रिपुर दाह तांडव, गौरी तांडव, संहार तांडव और उमा तांडव। भारत ही नहीं, बल्कि पाश्चात्य पुरातत्ववेताओं को भी भरमौर ने अपने गौरवपूर्ण अतीत की तरफ आकर्षित किया है।
शिखर शैली में बना मणिमहेश का विशाल मंदिर यहां के निवासियों और शैव मतावलंबियों के लिए आस्था का प्रतीक है।
मंदिर समूह में सबसे बडा और ऊंचा मणिमहेश मंदिर ही है, जिसका शिखर दूर से ही दिखाई देने लग जाता है। विद्वानों ने इस मंदिर का निर्माण काल राजा मेरुवर्मन (780 ई.) के समय का माना है। इस काल में मेरुवर्मन ने भरमौर में अन्य मंदिरों और मूर्तियों की स्थापना की थी।
कहा जाता है कि भरमौर(ब्रह्मपुर) में चौरासी सिद्धोंने धूनी रमाई थी और जहां-जहां वे बैठे थे, उन्हीं जगहों पर राजा साहिल वर्मा ने चौरासी मंदिरों का निर्माण करवाया था। यह मंदिर शिल्प व वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। मणिमहेशमंदिर में प्रवेश करते ही नंदी की भव्य कांस्य प्रतिमा ध्यान आकर्षित करती है।
नृसिंह भगवान का मंदिर शिखर शैली का बना है। इस मंदिर में नृसिंह भगवान की अष्टधातु की मूर्ति ग्यारह इंच ऊंचे तांबे की पीठ पर प्रतिष्ठित है। एक हजार से अधिक वर्ष पुरानी इन प्रतिमाओं पर वक्त की धूल जमी नहीं दिखाई देती, बल्कि इनकी चमक-दमक अभी तक बरकरार है और बडी श्रद्धा से इन्हें पूजा जाता है। भरमौरघाटी का दूसरा प्रसिद्ध शिव मंदिर हडसरमें है।
कुछ लोग इसे हिमाचल का अमरनाथ कहकर भी पुकारते हैं। भारत के उत्तर-पश्चिम में यह सबसे बडा शैव तीर्थ है और इसे भगवान शिव का वास्तविक घर माना गया है। समुद्र तल से 18,564 फुट की ऊंचाई पर स्थित मणिमहेश के आंचल में करीब दो सौ मीटर परिधि की झील है।
Source: Spiritual News in Hindi & Rashifal in Hindi
No comments:
Post a Comment