राम-कथा में माता सीता का चरित्र अत्यंत प्रभावशाली है। उनका चरित्र संयमी, साहसी और आत्मविश्वासी बनने के लिए प्रेरित करता है। जिससे हर नारी को नैतिकता की शिक्षा मिलती है।
राम की शक्ति सीता जी नारी सशक्तीकरण का उदाहरण हैं। अपूर्व साहस, बल, धैर्य, मातृत्व, पति का सहयोग आदि गुण हमें आज के युग में भी प्रेरणा प्रदान करते हैं।
राम-कथा के अनुसार, मिथिलानगरी में सीरजध्वज जनक नाम के राजा को सीता भूमि को जोतते समय मिली थीं, जिन्हें उन्होंने अपनी पुत्री स्वीकार किया। सीता में अपूर्व बल और साहस था।
कथा के अनुसार, उन्होंने शिव-जी का धनुष अपने हाथों से उठा लिया था, जिसे देखकर राजा जनक बहुत आश्चर्यचकित हुए और उन्होंने घोषणा करवा दी कि जो भी शिव जी का धनुष तोड़ेगा, उससे ही सीता का विवाह किया जाएगा। जिस धनुष को सीता ने उठा लिया था, उसे बड़े-बड़े योद्धा नहीं उठा सके। श्रीराम ने उस धनुष को तोड़कर सीता से विवाह किया।
जब श्रीराम को राज्याभिषेक के बदले चौदह वर्र्षो का वनवास दिया गया, तो सीता जी ने उनके साथ जाने का तत्काल निर्णय लिया। उन्होंने अपने पति को विपत्तियों में नहीं छोड़ा। श्रीराम द्वारा अयोध्या में ही रहने के आग्रह के बाद भी सीता जी ने सभी सुखों को छोड़कर श्रीराम के साथ वन में जाना ही उचित समझा।
यह एक पत्नी का कर्तव्य भी है कि वह पति के सुख-दुख में सहभागी बनें। सीता ने वही किया। आज की कामकाजी महिलाएं घर की आर्थिक स्थिति सुधारने और सशक्त बनने के लिए घर से बाहर निकलती हैं और काम करके पति का सहयोग करती है। सीता जी ने भी महल में रहने का मोह नहीं किया और वे पति के साथ कंकड़ भरे मार्ग पर निकल पड़ीं।
जब रावण ने अपनी माया से उनका हरण कर लिया, तब भी वे हताश-निराश नहीं हुईं। वे मानसिक रूप से इतनी सबल थीं कि तमाम धमकाने और माया का प्रभाव डालने पर भी उनका आत्मविश्वास नहीं डिगा और उन्होंने गलत प्रस्ताव के आगे समर्पण नहीं किया। वे सत्य के साथ ही रहीं। उनका आत्मविश्वास और धैर्य ही था कि अंतत: सत्य की जीत हुई।
सीता जब अपने पुत्रों लव-कुश के संग वाल्मीकि आश्रम में रहीं, वहां उन्होंने बच्चों लव-कुश को अच्छी शिक्षा और संस्कार दिए। सीताजी का चरित्र हमें धैर्यवान, साहसी, आत्मविश्वासी और सहयोगी बनने की प्रेरणा प्रदान करता है।
राम की शक्ति सीता जी नारी सशक्तीकरण का उदाहरण हैं। अपूर्व साहस, बल, धैर्य, मातृत्व, पति का सहयोग आदि गुण हमें आज के युग में भी प्रेरणा प्रदान करते हैं।
राम-कथा के अनुसार, मिथिलानगरी में सीरजध्वज जनक नाम के राजा को सीता भूमि को जोतते समय मिली थीं, जिन्हें उन्होंने अपनी पुत्री स्वीकार किया। सीता में अपूर्व बल और साहस था।
कथा के अनुसार, उन्होंने शिव-जी का धनुष अपने हाथों से उठा लिया था, जिसे देखकर राजा जनक बहुत आश्चर्यचकित हुए और उन्होंने घोषणा करवा दी कि जो भी शिव जी का धनुष तोड़ेगा, उससे ही सीता का विवाह किया जाएगा। जिस धनुष को सीता ने उठा लिया था, उसे बड़े-बड़े योद्धा नहीं उठा सके। श्रीराम ने उस धनुष को तोड़कर सीता से विवाह किया।
जब श्रीराम को राज्याभिषेक के बदले चौदह वर्र्षो का वनवास दिया गया, तो सीता जी ने उनके साथ जाने का तत्काल निर्णय लिया। उन्होंने अपने पति को विपत्तियों में नहीं छोड़ा। श्रीराम द्वारा अयोध्या में ही रहने के आग्रह के बाद भी सीता जी ने सभी सुखों को छोड़कर श्रीराम के साथ वन में जाना ही उचित समझा।
यह एक पत्नी का कर्तव्य भी है कि वह पति के सुख-दुख में सहभागी बनें। सीता ने वही किया। आज की कामकाजी महिलाएं घर की आर्थिक स्थिति सुधारने और सशक्त बनने के लिए घर से बाहर निकलती हैं और काम करके पति का सहयोग करती है। सीता जी ने भी महल में रहने का मोह नहीं किया और वे पति के साथ कंकड़ भरे मार्ग पर निकल पड़ीं।
जब रावण ने अपनी माया से उनका हरण कर लिया, तब भी वे हताश-निराश नहीं हुईं। वे मानसिक रूप से इतनी सबल थीं कि तमाम धमकाने और माया का प्रभाव डालने पर भी उनका आत्मविश्वास नहीं डिगा और उन्होंने गलत प्रस्ताव के आगे समर्पण नहीं किया। वे सत्य के साथ ही रहीं। उनका आत्मविश्वास और धैर्य ही था कि अंतत: सत्य की जीत हुई।
सीता जब अपने पुत्रों लव-कुश के संग वाल्मीकि आश्रम में रहीं, वहां उन्होंने बच्चों लव-कुश को अच्छी शिक्षा और संस्कार दिए। सीताजी का चरित्र हमें धैर्यवान, साहसी, आत्मविश्वासी और सहयोगी बनने की प्रेरणा प्रदान करता है।
Source: Spiritual News & Hindi Rashifal 2014
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