हिंदू धार्मिक ग्रंथ रामायण के मुख्य पात्र श्रीराम हैं और सीता उनकी धर्मपत्नी। अक्सर लोगों को यह प्रश्न जिज्ञासा पैदा करता है कि सीता आखिर किसकी पुत्री थीं। ज़ाहिर तौर पर इसका उत्तर आप खोज रहें होंगे। जिसका उत्तर यहां आप को मिल ही जाएगा।
सीता किसकी पुत्री थीं। इसे जानने के लिए पहले हमें यह जानना बेहद जरूरी है कि उस काल में यानी श्रीराम जन्म के पहले का क्या घटित हो रहा था।
उस समय दशानन रावण तीनों लोकों पर न सिर्फ अधिकार प्राप्त करना चाहता था बल्कि अमर भी होना चाहता था। इसके लिए रावण ने कड़ी तपस्या की। रावण के तप से ब्रह्माजी प्रसन्न हुए और रावण को मनोकामनापूर्ति करने वाला वर दिया।
रावण ने ब्रह्माजी से वर मांगा कि- ' हे प्रभु! मुझे ऐसा वर दीजिए ताकि सुर, असुर, पिशाच, नाग, किन्नर या अप्सरा कोई भी मेरा वध न कर सके। इसके अतिरिक्त एक अन्य वर भी मांगता हूं।
जब मैं मोह के वशीभूत होकर अपनी ही कन्या से संसर्ग करने की प्रार्थना करूं और वह उसे अस्वीकार कर दे तभी मेरी मृत्यु हो। रावण को यह वरदान देकर ब्रह्माजी अंतर्धान हो गए।
रावण वरदान पाकर घमंड से चूर हो गया। एक दिन वह घूमते हुए दंडकारण्य पर्वत पर गया। उसने वहां रहने वाले सभी ऋर्षि-मुनियों से कहा कि वह विश्व विजेता है। आप मुझे आशीर्वाद दें। यह कहकर उसने ऋर्षियों के शरीर पर तीर चुभोकर बहुत सारा रक्त निकालकर एक कलश भर लिया।
उन ऋर्षियों में से एक ऋर्षि गत्समद भी थे। वह सौ पुत्रों के पिता थे। उन्हें एक पुत्री की बड़ी ही लालसा थी। उन्होंने भगवान से इच्छा जाहिर की कि उनके यहां लक्ष्मी जी कन्या रूप में आएं। इस तरह उन्होंने दूध को अभिमंत्रित किया और कुश के अग्र भाग से एक कलश में रख दिया। इसके बाद वह वन में तपस्या के लिए चले गए।
संयोग से रावण भी उसी दिन वहां रावण आया और उसी कलश में ऋर्षियों का रक्त भरकर उसे लंका साथ ले गया। राजमहल में पहुंचकर उसने अपनी पत्नी मंदोदरी से कहा कि इस कलश में विषैला रक्त भरा है। अतः तुम इसकी रक्षा करो। मैनें मुनियों पर विजय प्राप्त की है और उनके रक्त को इस कलश में भर दिया है।
इसके बाद रावण ने देवताओं, दानवों, यक्षों और गंधर्वों की स्त्रियों की कन्याओं का अपहरण करके ले आया और उनके साथ पर्वतों पर विचरण करने लगा। मंदोदरी ने जब रावण को अन्य स्त्रियों के साथ रमण करते देख उसे अच्छा नहीं लगा। वह मरने के बारे में सोचने लगी और मंदोदरी ने कलश में रखे ऋर्षि-मुनियों के रक्त को पी लिया।
रक्त को पीते ही मंदोदरी को गर्भ ठहर गया। वह गर्भवती हो चुकी थी। उसने सोचा मेरे पति मेरे पास नहीं है। ऐसे में जब उन्हें इस बात का पता चलेगा। तो वह क्या सोचेंगे की इस बीच मेरा किसी और पुरुष के साथ संसर्ग हो गया है।
ऐसा विचार करते हुए मंदोदरी तीर्थ यात्रा के बहाने कुरुक्षेत्र आ गई। वहां उसने गर्भ को निकालकर भूमि में दफना दिया। इसके बाद उसने सरस्वती नदी में स्नान किया और लंका वापस लौट गई।
कुछ समय बाद राजा जनक कुरुक्षेत्र गए और उन्होंने सोने के हल से उस भूमि को खोदा तो उन्हें एक कन्या मिली। उनके यहां कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने उस कन्या को अपना लिया।
हिंदू शास्त्रों में यह प्राचीन कहानी सीता के संबंध में मिलती है। सवाल फिर भी आज रहस्य बना हुआ है कि सीता आखिर किसकी पुत्री थीं। गत्समद ऋर्षि की, मंदोदरी की या फिर राजा जनक की?
सीता किसकी पुत्री थीं। इसे जानने के लिए पहले हमें यह जानना बेहद जरूरी है कि उस काल में यानी श्रीराम जन्म के पहले का क्या घटित हो रहा था।
उस समय दशानन रावण तीनों लोकों पर न सिर्फ अधिकार प्राप्त करना चाहता था बल्कि अमर भी होना चाहता था। इसके लिए रावण ने कड़ी तपस्या की। रावण के तप से ब्रह्माजी प्रसन्न हुए और रावण को मनोकामनापूर्ति करने वाला वर दिया।
रावण ने ब्रह्माजी से वर मांगा कि- ' हे प्रभु! मुझे ऐसा वर दीजिए ताकि सुर, असुर, पिशाच, नाग, किन्नर या अप्सरा कोई भी मेरा वध न कर सके। इसके अतिरिक्त एक अन्य वर भी मांगता हूं।
जब मैं मोह के वशीभूत होकर अपनी ही कन्या से संसर्ग करने की प्रार्थना करूं और वह उसे अस्वीकार कर दे तभी मेरी मृत्यु हो। रावण को यह वरदान देकर ब्रह्माजी अंतर्धान हो गए।
रावण वरदान पाकर घमंड से चूर हो गया। एक दिन वह घूमते हुए दंडकारण्य पर्वत पर गया। उसने वहां रहने वाले सभी ऋर्षि-मुनियों से कहा कि वह विश्व विजेता है। आप मुझे आशीर्वाद दें। यह कहकर उसने ऋर्षियों के शरीर पर तीर चुभोकर बहुत सारा रक्त निकालकर एक कलश भर लिया।
उन ऋर्षियों में से एक ऋर्षि गत्समद भी थे। वह सौ पुत्रों के पिता थे। उन्हें एक पुत्री की बड़ी ही लालसा थी। उन्होंने भगवान से इच्छा जाहिर की कि उनके यहां लक्ष्मी जी कन्या रूप में आएं। इस तरह उन्होंने दूध को अभिमंत्रित किया और कुश के अग्र भाग से एक कलश में रख दिया। इसके बाद वह वन में तपस्या के लिए चले गए।
संयोग से रावण भी उसी दिन वहां रावण आया और उसी कलश में ऋर्षियों का रक्त भरकर उसे लंका साथ ले गया। राजमहल में पहुंचकर उसने अपनी पत्नी मंदोदरी से कहा कि इस कलश में विषैला रक्त भरा है। अतः तुम इसकी रक्षा करो। मैनें मुनियों पर विजय प्राप्त की है और उनके रक्त को इस कलश में भर दिया है।
इसके बाद रावण ने देवताओं, दानवों, यक्षों और गंधर्वों की स्त्रियों की कन्याओं का अपहरण करके ले आया और उनके साथ पर्वतों पर विचरण करने लगा। मंदोदरी ने जब रावण को अन्य स्त्रियों के साथ रमण करते देख उसे अच्छा नहीं लगा। वह मरने के बारे में सोचने लगी और मंदोदरी ने कलश में रखे ऋर्षि-मुनियों के रक्त को पी लिया।
रक्त को पीते ही मंदोदरी को गर्भ ठहर गया। वह गर्भवती हो चुकी थी। उसने सोचा मेरे पति मेरे पास नहीं है। ऐसे में जब उन्हें इस बात का पता चलेगा। तो वह क्या सोचेंगे की इस बीच मेरा किसी और पुरुष के साथ संसर्ग हो गया है।
ऐसा विचार करते हुए मंदोदरी तीर्थ यात्रा के बहाने कुरुक्षेत्र आ गई। वहां उसने गर्भ को निकालकर भूमि में दफना दिया। इसके बाद उसने सरस्वती नदी में स्नान किया और लंका वापस लौट गई।
कुछ समय बाद राजा जनक कुरुक्षेत्र गए और उन्होंने सोने के हल से उस भूमि को खोदा तो उन्हें एक कन्या मिली। उनके यहां कोई संतान नहीं थी इसलिए उन्होंने उस कन्या को अपना लिया।
हिंदू शास्त्रों में यह प्राचीन कहानी सीता के संबंध में मिलती है। सवाल फिर भी आज रहस्य बना हुआ है कि सीता आखिर किसकी पुत्री थीं। गत्समद ऋर्षि की, मंदोदरी की या फिर राजा जनक की?
Source: Spiritual Hindi News & Rashifal in Hindi
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