Saturday 21 June 2014

Something like this enlightenment of the mind desires

केनोपनिषद को चार खंडो में बांटा गया है। पहले खंड में मन की इच्छाओं, दूसरे खंड में ईश्वर के निराकार रूप, तीसरे खंड में परब्रह्मा की सत्त के बारे में और चौथे खंड में विद्या की देवी सरस्वती द्वारा परब्रह्म की विजय के बारे में बताया है। जिंदगी में आप ईश्वर के अध्यात्मरूपी प्रकाश से प्रकाशवान हो सकते हैं उसके बारे में बड़ी ही सरलता सहजता से बताया गया है।

शांतिपाठ...

ऊँ अप्यायंतु ममांगानि वाक्प्राणचक्षुषः श्रोतमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि सर्वं ब्रह्मोनिषदं माहं ब्रह्मा निराकुर्यां मा मा ब्रह्म निराकरोद निराकरणमस्त्वनिराकरणं मे अपिस्तुतदात्मानि निरते य उपनिषत्षु धर्मास्ते मयि संतु।

यानि मेरे सभी अंग पुष्ट हों और मेरी वाणी, आत्मा, सुनने की शक्ति के साथ पूरी इंद्रियां पुष्ट हों। सभी विद्या ब्रह्मा ने उपनिषदों के रूप में दी है। मैं ब्रह्मा का निराकरण न करूं, ब्रह्मा मेरा निराकरण न करे।

इस प्रकार हमारा परस्पर अनिराकरण हो। उपनिषदों में जो धर्म है, वह आत्मज्ञान में लगे हुए मुझ में निहित हो, वह मेरे अंदर समा जाए, उपनिषदों में जो धर्म है उसका निराकार आत्मज्ञान मुझ में समा जाए और मेरे कई प्रकार के तापों को शांति मिले।

प्रथम खंड

    जिसे कोई नेत्र नहीं देखता, किंतु जिसकी सहायता से नेत्र अपने विषय(लक्ष्य) को देखते हैं, उसी को ब्रह्मा(ईश्वर) समझना चाहिए। जिसे कोई कान नहीं सुनता, परंतु जिसकी सहायता से कान सुनने का कार्य करते हैं, उसी को ब्रह्मा समझो।

    यह मन किसकी इच्छा से प्रेरित होकर अपने विषयों में गिरता है? यह प्राण किसके द्वारा प्रयुक्त होने पर चलता है? यह वाणी किसके द्वारा इच्छा किए जाने पर बोलती है? कौन देव या देवी नेत्रों और कानों को प्रेरित करते हैं? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके जावाब मन की इच्छाओं में छिपे हैं। जिन्हें एक सात्विक मनुष्य के अलावा कोई दूसरा नहीं खोज सकता है।

    जो कानों का भी कान, मन का भी मन और वाणी की भी वाणी है, वहीं प्राणों का भी प्राण और आंखों की भी आंखें हैं। इस विचार को जानकरा धैर्यवान पुरुष मरने के बाद मुक्त होकर अमर हो जाते हैं।

    जिसके विषय में मन, मनन नहीं कर सकता, पर जिसकी सत्ता से मन, मनन करने का सामर्थ्य रखता है, ऐसा कहा जाता है कि उसी को ब्रह्मा समझना चाहिए। जिसे विशेष नामयुक्त ईश्वर की लोग उपासना करते हैं, वह ब्रह्मा नहीं है।

द्वितीय खंड

    यदि तुम यह समझते हो कि तुम ईश्वर को अच्छी तरह जानते हो, तो निश्चित ही तुम ब्रह्म का अल्प रूप ही जानते हो। इसका जो रूप तुम जानते हो और जो रूप देवताओं में जाना जाता है, वह भी कम है। अतः तुम्हारे लिए ईश्वर को विचार करने योग्य है।

    सभी इंद्रियां ब्रह्मा की सत्ता से ही कार्य करते हैं इसलिए प्रत्येक इंद्रिय के विषय से उसका ही ज्ञान होता है, इसी से वह जाना जाता है, यही उसका ज्ञान है। इसी ब्रह्मज्ञान से अमरता प्राप्त होती है।

    यदि इसी जन्म में ब्रह्म को जान लिया जाए तो, तब तो ठीक है। यदि ऐसा न हो पाए तो यह प्राणी के सर्वाधिक हानि की बात है। कहते है ज्ञानी लोग केवल प्राणी में ब्रह्म की सत्ता को देखकर, मृत्यु के पश्चात अमर हो जाते हैं।

तृतीय खंड

कहते हैं ब्रह्म जब यक्ष रूप में आए तो देवता नहीं पहचान सके कि ये कौन हैं? तब देवराज इंद्र बोले की हे अग्निदेव पता लगाओ को यह यक्ष कौन है? अग्नि ने जब यज्ञ से पूछा कि आप कौन हैं तो यक्ष ने कहा हे अग्नि देव आपके नाम के अनुरूप आप में कौन सी शक्ति है? अग्निदेव बोले कि मैं संपूर्ण पृथ्वी को जला सकता हूं तब यक्ष ने एक तिनका दिया और कहां इसे जलाकर दिखाओ तब अग्नि देव उस तिनके को जलाने में असफल रहे।

इसके बाद देवराज इंद्र ने पवन देव को भेजा उन्होंने भी यक्ष से वही प्रश्न किया तब यक्ष बोले कि इस तिनके को उड़ाओ पवनदेव भी ऐसा करने में जब असफल हुए और जब यक्ष के सामने इंद्र गए तो तब यक्ष अंतर्धान( गायब) हो गए। तब इंद्र ने हिमालय की पुत्री उमा( ब्रह्म विद्या) से पूछा कि यह यक्ष कौन है?

उस ब्रह्म विद्या ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह ब्रह्म हैं, इसकी विजय से ही तुम महिमामय हुए हो। ऐसा कहते हैं कि तभी इंद्र ने जाना कि वह ब्रह्मा थे। इंद्र ने सबसे पहले समीप ब्रह्मा का स्पर्श किया इसलिए वह देवों में प्रमुख माने गए और उन्हें स्वर्ग का राजा नियुक्त किया गया।

चतुर्थ खंड

    मन को गतिमान कहा जाता है। यह ब्रह्म इस प्रकार मन से ही बार-बार ब्रह्म का स्मरण होता है, तथा निरंतर संकल्प किया जाता है।

    उपनिषद तप, कर्म, वेद और संपूर्ण वेदांग(व्याकरण, ज्योतिष, छंद आदि) यह सब प्रतिष्ठाहैं तथा सत्य उसका घर है।

    जो निश्चयपूर्वक उपनिषद को इस प्रकार जानता है। वह अपने पापों को नष्ट करके अनंत और महान स्वर्गलोक में चला जाता है।

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