Wednesday 22 January 2014

Something like this can give a new meaning to life

भारतीय संस्कृति अत्यंत प्राचीन है। जब दुनिया में अज्ञान का अंधेरा छाया हुआ था तब यहां ज्ञान का दीया जल रहा था। किंतु बदलते समय में हम अतीत से चिपके नहीं रह सकते। हमें अपनी प्रगति के लिए अतीत से मुक्त होना होगा।

आज की नग्न सच्चाई यही है कि हम केवल महानता का राग अलापते हैं और हमारे नैतिक चरित्र में गिरावट आती जा रही है। अतः जरुरी है कि हम पुरानी चीजों को विचारों के नए आलोक में देखें और उन्हें समझने का प्रयास करें जिसे जीवन का नया अर्थ दिया जा सके।

ईश्वर

भारतीय जीवन और संस्कृति ईश्वर-प्रधान है। बिना ईश्वर के जीवन वैसे ही शून्य और निरर्थक है जैसे बिना पानी की नदी। जैसे बीज में वृक्ष छिपा है। वैसे ही इस दृश्य जगत के पीछे अदृश्य ईश्वर का हाथ है। कहते भी हैं कि हम जिस शक्ति से कार्य करते हैं, वह भी उसी की है हमारी नहीं।

मंदिर

मंदिर में व्यक्ति अपने आराध्य के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने जाता है। उसमें प्रवेश करते ही व्यक्ति के भीतर शांति और पवित्रता उतर आती है। मंदिर की घंटी बजते ही जैसे वह बाहरी जीवन से कट जाता है और अपने आराध्य की भक्ति में डूब जाता है। उसके ध्यान में खो जाता है। धर्म प्रधान देश होने के कारण यहां ईश्वर के विभिन्न रूपों के एक से बढ़कर एक भव्य मंदिर बनाए गए हैं और उनमें कई हजारों लोग दर्शनार्थ जाते हैं। सबसे अच्छा तो यह है कि हम अपनी दिनचर्या को एक तीर्थयात्रा बना लें।

देवता

पूरे देश में विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा होती है। उस देश की संस्कृति कितनी महान होनी चाहिए, जो पत्थर में भी प्राण-प्रतिष्ठा करती है। इतना ही नहीं, हमारे यहां तुलसी और पीपल के वृक्ष देवताओं के समान माने गए हैं। देवता का अर्थ है भगवान की विभिन्न शक्तियां जिनके माध्यम से वह अपने विभिन्न कार्य करते हैं। एक-एक देवता किसी अलौकिक शक्ति का प्रतीक होता है। आज का मनुष्य आधा देवता और आधा पशु है।

आत्मा

आत्मा भारतीय जीवन और संस्कृति का सत्य है। हमारे उपनिषद् तो आत्मा -परमात्मा के अनेक महत्वपूर्ण प्रसंगों से भरे हैं। उनके अनुसार आत्मज्ञान द्वारा ईश्वर की उपलब्धि संभव है। कठोपनिषद् का नचिकेता प्रसंग आज भी युवा पीढ़ी के लिए महत्वपूर्ण है। जिसमें वह यम से आत्मज्ञान ही जानने का अनुरोध करता है। वृद्धारण्यक उपनिषद् का याज्ञवल्क्य का जनक प्रसंग भी प्रसिद्ध है।

इसमें याज्ञवल्क्य ने जनक को बताया कि जब सूर्य और चंद्रमा छिप जाते हैं तथा अग्नि भी बुझ जाती है तब आत्मा ही मनुष्य की ज्योति बनती है जिसके प्रकाश में वह अपने सारे कार्य कर सकता है।आज का व्यक्ति आत्मनिर्वासित जीवन जी रहा है और इसी कारण समाज में नित नवीन समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

कामनाएं

कामनाओं के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कामनाएं कभी तृप्त नहीं होतीं। हमें भी यह सोचना चाहिए कि जब जीवन ही क्षणभंगुर है तो इनका अस्तित्व ही कितना है? तभी यह मनुष्य को भटकातीं हैं। उन पर थोड़ा ब्रेक अगर लगा लिया जाए तो वे जीवन का नया अर्थ खोल सकती हैं।

अपनी कामनाओं को जीवन के विकास में सहायक बनाने की मनोविज्ञान की भाषा में मार्गांतरीकरण कहा गया है। जिसमें व्यक्ति एक उच्चतर जीवन जी सकता है।




 

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