Tuesday 21 January 2014

Why do we lose the peace in anger

एक हिन्दू सन्यासी अपने शिष्यों के साथ गंगा नदी के तट पर नहाने पहुंचे। उन्होंने देखा कि वहां एक ही परिवार के कुछ लोग आपस में बात करते हुए एक दूसरे पर क्रोधित हो हो रहे थे।

सन्यासी यह दृश्य देखकर रहा नहीं गया और उसने तुरंत अपने शिष्यो से पूछा कि क्रोध में लोग एक दूसरे पर चिल्लाते क्यों हैं? शिष्य कुछ देर सोचते रहे, तभी एक शिष्य ने उत्तर दिया कि 'क्योंकि हम क्रोध में शांति खो देते हैं पर जब दूसरा व्यक्ति हमारे सामने ही खड़ा है तो भला उस पर चिल्लाने की क्या ज़रुरत है, जो कहना है वो आप धीमी आवाज़ में भी तो कह सकते हैं।'

सन्यासी ने फिर से प्रश्न किया तब कुछ और शिष्यों ने भी अपने-अपने विवेक से उत्तर देने का प्रयास किया पर इन जवाब से लोग संतुष्ट नहीं हुए।

तब सन्यासी ने समझाया कि 'जब दो लोग आपस में नाराज होते हैं तो उनके दिल एक दूसरे से बहुत दूर हो जाते हैं ऐसी परिस्थिति में वह एक दूसरे पर बिना चिल्लाए बात नहीं सुन सकते उनको क्रोध आएगा और उनके बीच की दूरी उतनी ही अधिक हो जाएगी इसलिए वह तेजी से चीखते चिल्लाते हैं।'

संक्षेप में:

जब दो लोग प्रेम में होते हैं तब वे चिल्लाते नहीं बल्कि धीरे-धीरे बात करते हैं, क्योंकि उनके दिल करीब होते हैं, उनके बीच की दूरी नाम मात्र की रह जाती है और जब वे एक दूसरे को हद से भी अधिक चाहने लगते हैं तो वे बोलते भी नहीं, वे सिर्फ एक दूसरे की तरफ एक टक देखते रहते हैं।

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