Wednesday 22 January 2014

Why Indra seeks bons of maharishi dadhichi

 
पुराणों में कथा है कि प्राचीन काल में वृत्तासुर नाम का एक दैत्य था। वह हमेशा ही देवताओं और ऋषियों की तपस्या, पूजा, अर्चना आदि में बाधाएं डालता रहता था। दैत्य से परेशान होकर ऋर्षियों ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की।

भगवान विष्णु ने उन्हें इसका उपाय बताते हुए कहा कि नैमिष क्षेत्र में निवास करने वाले महर्षि दधीचि की अस्थियों से बने अस्त्र से ही वृत्तासुर की मृत्यु संभव है। आप लोग जाएं और विश्वकल्याण के लिए महर्षि से अस्थियों के दान की याचना करें।

मांग ली अस्थियां

भगवान के सुझाव पर देवताओं और ऋर्षियों ने महर्षि दधीचि से अस्थिदान के लिए आग्रह किया। महर्षि दधीचि ने उनका आग्रह स्वीकार करते हुए कहा कि मैं अपनी अस्थियां तभी दूंगा, जब सारे तीर्थों का स्नान कर लूंगा।

चूंकि समय कम था, अतः देवताओं ने नैमिष में ही समस्त तीर्थों का आह्वान कर उन्हें 84 कोस की परिधि में स्थापित कर दिया।

तीर्थों के राजा प्रयागराज के न आने पर ललिता देवी के निकट ही पंचप्रयाग की स्थापना कर दी गई। इसके बाद ऋर्षि ने स्नान किया और अपना शरीर दान कर दिया। उनकी अस्थियों से वज्र का निर्माण किया गया, जिससे वृत्तासुर दैत्य का वध इंद्र ने किया।

इस तरह नैमिषारण्य केवल एक तीर्थ नहीं बल्कि 84 तीर्थों की धरती है। ऐसी धरती, जिसकी रज में स्वयं भगवान ने अपने चरणों की छाप छोड़ी थी।


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