Monday 24 March 2014

Jaswant singh slams bjp to contest from barmer

जोधपुर। पार्टी टिकट नहीं मिलने से नाराज वरिष्ठ भाजपा नेता जसवंत बागी हो चले हैं। आज उन्होंने बाड़मेर से निदर्लीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा भर दिया।

भाजपा छोड़ने के बारे में अभी कोई फैसला नहीं किया है। इस मुद्दे पर उन्होंने सुबह कहा था, मैं जोधपुर जा रहा हूं। वहां समर्थकों से चर्चा के बाद इस बारे में फैसला किया जाएगा। उन्होंने कहा, जोधपुर के लोग अपमानित महसूस कर रहे हैं।

पार्टी ने नहीं किया संपर्क

भाजपा से इस्तीफा देने के लिए 48 घंटे की समयसीमा के बारे में पूछे जाने पर जसवंत ने कहा- मैं बाड़मेर में अपने सहयोगियों तथा अन्य लोगों से सलाह कर इस बारे में बाद में बात करूंगा। पार्टी से किसी ने भी मुझसे संपर्क करने की कोशिश नहीं की।

तो किसके लिए भावुक होऊं

सिंह ने कहा- यदि मैं अपने घर और पार्टी को लेकर भावुक न होऊं तो किसके लिए होऊं? यदि पार्टी मुझसे बात करना चाहती है तो उन्हें मेरा नंबर मालूम है। उन्हें पता है कि मुझ तक कैसे पहुंचा जा सकता है।

मैं फर्नीचर का टुकड़ा नहीं

पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह की इस टिप्पणी पर कि उनकी सेवा का उचित इस्तेमाल किया जाएगा, सिंह ने कहा- मैं कोई फर्नीचर का टुकड़ा नहीं हूं। "एडजस्ट" जैसे शब्द का इस्‍तेमाल व्‍यक्ति की मानसिकता को दर्शाता है। आप सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं कर सकते, यह अपमानित करने वाली बात है।अपने समर्थकों द्वारा राजस्थान में नरेंद्र मोदी का पोस्टर फाड़े जाने पर जसवंत सिंह ने कहा- यदि पोस्टर फाड़े गए हैं तो मैं समझता हूं कि पार्टी को यह बताना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है?

बेटे ने पार्टी से मांगी एक महीने की छुट्टी

इस बीच, जसवंत सिंह के पुत्र भाजपा विधायक मानवेंद्र सिंह ने खराब स्वास्थ्य के आधार पर पार्टी से एक महीने की छुट्टी मांगी है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अशोक परनामी ने कहा कि मानवेंद्र बीमार हैं और उन्हें बेड रेस्ट की जरूरत है। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने लोकसभा चुनाव की रणनीति तय करने के लिए बाड़मेर तथा जैसलमेर के विधायकों की एक बैठक बुलाई है, लेकिन मानवेंद्र संभवतः उसमें भी हिस्सा नहीं लेंगे। मानवेंद्र बाड़मेर जिले के शिव विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं।

जेटली की नसीहत : नेता "ना" स्वीकारना सीखें

वहीं, वरिष्ठ भाजपा नेता अरुण जेटली ने जसवंत सिंह मामले को लेकर नसीहत दी है कि कभी-कभी नेताओं को "ना" भी स्वीकार करना चाहिए और यही पार्टी के प्रति उनकी वफादारी की परीक्षा है। उन्होंने कहा- किसी राजनीतिक पार्टी की सदस्यता एक विशेषाधिकार है। यह एक प्रकार से आत्म उत्पीड़न भी है, जब निजी विचार और महत्वाकांक्षा पार्टी के सामूहिक विवेक के अधीन होता है। ऐसे में कभी-कभी निजी आकांक्षा को लेकर "ना" भी स्वीकारना चाहिए। टिकट नहीं दिए जाने के फैसले को "मुस्कुराकर" स्वीकार करना चाहिए। संयम और चुप रहना हमेशा बेहतर विकल्प होता है।

बिहार में भी बगावत

दूसरी ओर, बिहार भाजपा में भी टिकट को लेकर बगावत हो गई है। चार बार सांसद चुने गए लालमुनि चौबे भी पार्टी टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं। उन्होंने पार्टी छोड़ने की इच्छा जाहिर करते हुए कहा कि वह बक्सर सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं। उन्होंने रविवार को कहा- मैं सोमवार को अपने फैसले का एलान करूंगा। वाजपेयीजी, आडवाणीजी और जसवंतजी जैसे वरिष्ठ नेताओं की पार्टी में अनदेखी से मैं आहत हूं। मालूम हो कि पार्टी ने इस बार बक्सर सीट से चौबे का टिकट काटकर बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी कुमार को टिकट दिया है।

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