Saturday 29 March 2014

Lord vishnu in liquid form

भीम कुण्ड विश्व प्रसिद्ध खजुराहो से लगभग 128 कि.मी. दूर स्थित है भीम कुण्ड। यह धार्मिक क्षेत्र आदिकाल से ऋषियों, मुनियों, तपस्वियों एवं साधकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है।

वर्तमान समय में यह धार्मिक-पर्यटन एवं वैज्ञानिक शोध का केन्द्र भी बना हुआ है। अनेक शोधकर्ता और जलकुण्ड में कई बार गोताखोर उतार चुके हैं किन्तु इस जलकुण्ड की थाह आज तक कोई भी नहीं पा सका है।

पौराणिक ग्रंथों में भीम कुण्ड का नारद कुण्ड तथा नील कुण्ड के नाम से भी उल्लेख मिलता है। भीम कुण्ड के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं। जिनमें से प्रमुख हैं देवर्षि नारद द्वारा साम गान का गायन।

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवर्षि नारद आकाश मार्ग से विचरण कर रहे थे। रास्ते में उन्हें अनेक विकलांग स्त्री-पुरुष दिखाई पड़े. वे स्त्री-पुरुष न केवल विकलांग थे अपितु घायल भी थे तथा कराह रहे थे। यह दृश्य देख कर देवर्षि नारद दुखी हो गए।

वे उन स्त्री-पुरुषों के पास पहुंचे और उन्होंने उनसे उनका परिचय पूछा। उन स्त्री-पुरुषों ने बताया कि वे संगीत की राग-रागिनियां हैं। यह सुन कर देवर्षि नारद को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने राग-रागिनियों से पूछा कि तुम लोगों की ये दशा कैसे हुई और तुम्हारे दुख-कष्ट को दूर करने के लिए मैं क्या कर सकता हूं।

देवर्षि नारद के पूछने पर राग-रागिनियों ने बताया कि पृथ्वी पर स्थित अनाड़ी गायक-गायिकाओं द्वारा दोषपूर्ण गायन के कारण हमारे अस्तित्व को क्षति पहुंची है। अब तो हमारा उद्धार तभी हो सकता है जब संगीत विद्या में निपुण कोई कुशल गायक साम गान का गायन करें।

देवर्षि नारद साम गान के ज्ञाता थे। राग-रागिनियों की बात सुन कर वे स्वयं को रोक नहीं सके और उन्होंने साम गान का गायन प्रारम्भ कर दिया। देवर्षि नारद का स्वर तीनों लोकों में व्याप्त होने लगा। देवता साम गान के स्वरों में मग्न होने लगे। भगवान शिव नर्तन कर उठे तथा भगवान ब्रह्मा ताल देने लगे।

साम गान के स्वरों सुन कर भगवान विष्णु इतने भावविभोर हो उठे कि वे द्रवीभूत हो कर उसी स्थान पर जा पहुंचे जहां पीडि़त राग-रागिनियां रहती थीं। विष्णु का स्पर्श पा कर राग-रागिनियां स्वस्थ हो गईं।

उन्होंने भगवान विष्णु से निवेदन किया कि वे द्रव रूप में सदा के लिए इसी स्थान में रुक जाएं जिससे अन्य पीडि़तों का भी उद्धार हो सके। भगवान विष्णु ने राग-रागिनियों की प्रार्थना स्वीकार कर ली और नील-जल के रूप में वहीं एक कुण्ड में ठहर गए. यही कुण्ड नारद कुण्ड, नील कुण्ड तथा भीम कुण्ड के नामों से पुकारा जाता है।

निष्क्रिय ज्वालामुखी

कहते हैं भीम कुण्ड को निष्क्रिय ज्वालामुखी की तरह है क्यों कि यह पर्वतीय स्थल में गुफा के भीतर कठोर चट्टानों के बीच जल कुण्ड के रूप में स्थित है।

अब तक कई भू-वैज्ञानिकों ने गोताखोरों द्वारा इसकी गहराई का पता लगाने का प्रयास किया है किन्तु उन्हें कुण्ड का तल नहीं मिला। कुण्ड के तल के बदले लगभग अस्सी फिट की गहराई में तेज जलधाराएं प्रवाहमान मिलीं जो संभवतः इसे समुद्र से जोड़ती हैं।

इसकी गहराई भू वैज्ञानिकों के लिए आज रहस्य बनी हुई है। यह भी उल्लेखनीय है कि इस जल कुण्ड का जल-स्तर कभी कम नहीं होता है। यह जल-कुण्ड एक गुफा में स्थित है। कहा जाता है कि इस कुण्ड में डूबने वाले का मृत शरीर कभी ऊपर नहीं आता है।

भीम कुण्ड एक ऐसा विशिष्ट तीर्थ स्थल है जहां ईश्वर और प्रकृति एकाकार रूप में विद्यमान हैं। जहां पहुंच कर प्रकृतिक विशेषताओं के रूप में ईश्वर की सत्ता पर स्वतः विश्वास होने लगता है।

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