Friday 14 March 2014

Lord shiva gives pashupat to businessman

भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है नागेश्वर ज्योतिर्लिंग। यह गुजरात राज्य के बाहरी क्षेत्र में द्वारिकापुरी से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के बारे में शास्त्रों में अद्वभुत महिमा बताई गई है।

धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव को नागों के देवता के रूप में जाना जाता है। नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है। भगवान शिव का एक अन्य नाम नागेश्वर भी है। इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन की पुराणों में बड़ी महिमा बताई गई है।कहा जाता है कि जाे श्रद्धालु इस मंदिर में बैठकर ज्याेर्तिलिंग के महात्म्य की कथा सुनते हैं वे भवसागर पार उतर जाते हैं।

पौराणिक कथा

अन्य ज्योतिर्लिंग की तरह नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के संम्बन्ध में एक कथा प्रसिद्ध है। कथा के अनुसार 'सुप्रिय' नाम का एक व्यापारी भगवान शिव का अनन्य भक्त था। ऐसा माना जाता था कि वह बहुत ही ज्यादा धर्मात्मा, सदाचारी था।

उसकी इस भक्ति और सदाचारिता से एक बार दारुक नाम का राक्षस नाराज हो गया। राक्षस प्रवृ्ति का होने के कारण उसे भगवान शिव जरा भी अच्छे नहीं लगते थे, इसलिए वह ऐसे अवसरों की तलाश करता था जिससे वह सुप्रिय को नुकसान पहुंचा सके।

एक दिन जब सुप्रिय नौका (नाव) पर सवार होकर समुद्र के जलमार्ग से कहीं जा रहा था, उस समय दारुक ने उस पर आक्रमण कर दिया। राक्षस दारुक ने नाव पर सवार सभी लोगों सहित सुप्रिय का अपहरण कर लिया और अपनी पुरी में ले जाकर उसे बंदी बना लिया। जैसा कि सुप्रिय शिवजी का अनन्य भक्त था, इसलिए वह हमेशा शिवजी की आराधना में तन्मय रहता था ऐसे में कारागार में भी उसकी आराधना बंद नहीं हुई और उसने अपने अन्य साथियों को भी शंकरजी की आराधना के प्रति जागरुक कर दिया। वे सभी शिवभक्त बन गए। कारागार में शिवभक्ति का ही बोलबाला हो गया।

जब इसकी सूचना राक्षस दारुक को मिली तो वह क्रोधित हो गया। वह व्यापारी के पास कारागार में पहुंचा। व्यापारी उस समय पूजा और ध्यान में मग्न था। राक्षस ने उसी ध्यानमुद्रा में उस पर गुस्सा करना प्रारम्भ कर दिया लेकिन इसका असर सुप्रिय पर नहीं पड़ा।

तंग आकर राक्षस ने अपने अनुचरों से कहा कि वे व्यापारी को मार डालें। यह आदेश भी व्यापारी को विचलित न कर सका। इस पर भी व्यापारी अपनी और अपने साथियों की मुक्ति के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करने लगा। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव उसी कारागार में एक ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए। भगवान शिव ने व्यापारी को पाशुपत-अस्त्र दिया ताकि वह अपनी रक्षा कर सके।

इस अस्त्र से सुप्रिय ने राक्षस दारुक तथा उसके अनुचरों का वध कर दिया। उसी समय से भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर प्रसिद्ध हुआ।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त नागेश्वर नाम से दो अन्य शिवलिंगों की भी चर्चा ग्रन्थों में प्राप्त होती है लेकिन ज्योतिर्लिंग के रूप में द्वारिकापुरी का नागेश्वर ज्योतिर्लिंग विश्वभर में प्रसिद्ध है।

द्वारिकापुरी के नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के परिसर में भगवान शिव की ध्यान मुद्रा में एक बड़ी ही मनमोहक अति विशाल प्रतिमा है जिसकी वजह से मंदिर तीन किलोमीटर की दूर से ही दिखाई देने लगता है।

यह मूर्ति 125 फीट ऊंची तथा 25 फीट चौड़ी है। मुख्य द्वार साधारण लेकिन सुन्दर है। मंदिर में पहले एक सभागृह है, जहां पूजन सामग्री की छोटी-छोटी दुकानें लगी हुई हैं।

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