Monday 31 March 2014

Complete destruction of suffering from mother shailaputree

मां दुर्गा को नवारात्री के पहले दिन सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। राजा हिमालय के यहां मां जन्म लेतीं हैं। इसलिए मां का नाम शैलपुत्री रखा गया। इनका वाहन वृषभ है।

देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। उनकी एक करूण कथा है। एक बार जब प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़ा यज्ञ किया तो इसमें उन्होंने सारे देवताओं को आमंत्रित किया।

लेकिन भगवान शिव को नहीं बुलाया और जब देवी सती पिता के घर बिन बुलाए पहुंच गईं तो उन्होंने भगवान शिव के प्रति भले बुरे शब्दों का उपयोग किया। सती अपमान सह नहीं सकीं। उन्होंने यज्ञ की अग्नि में स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया।

इस दुःख से परेशान होकर भगवान शिव ने यज्ञ का विध्वंस कर दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मी और शैलपुत्री कहलाईं। शैलपुत्री भगवान शिव की पत्नी हैं। नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री को पूजा जाता है उनका व्रत किया जाता है। जिससे मां भक्तों पर अपनी कृपा हमेशा बनाए रखतीं हैं।

फल की प्राप्ति

मां दुर्गा के इस स्वरूप की उपासना करने से योगी मन को मूलाधारा चक्र में स्थित करते हैं और योग साधना प्रारंभ करते हैं।

इस दिन इस मंत्र का जाप करें

वंदे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।

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