Wednesday 26 March 2014

You must have faith in the mind for enlightenment

एक बार बालक नचिकेता ने अपने पिता से कहा, आप ब्राह्मणों को कृषि कार्य के लिए अनुपयोगी गाय दान में दे रहे हैं। पिता ने यह नहीं कहा कि हां, यह ठीक नहीं है परंतु वे समझ गए कि यह मेरी निंदा कर रहा है, मेरा अनादर कर रहा है, मेरे कृत्य की भर्त्सना कर रहा है।

नचिकेता ने पिता से कहा- शास्त्र कहते हैं कि अच्छी वस्तु, अच्छी निधि तथा अच्छी संपदा का दान करना चाहिए। अगर आप दान ही कर रहे हैं तो मुझको किसे दान में देंगे ?

पिता मौन हो गए, लेकिन बालक नचिकेता बार- बार टोकने लगा-पिताजी ! आप मुझे किसे दान में देंगे? आपने यह भी विचार किया होगा कि मुझे भी किसी को दान में देंगे। इस पर पिता ने क्रोध में कहा-मैं तुझे यमराज को दान में देता हूं। आज से तू यम की वस्तु हुआ। दान की गई वस्तु कभी ली नहीं जाती और कभी लौटाई भी नहीं जाती। अब तू मेरा नहीं रहा। चूंकि मैं तुझे दान कर चुका हूं इसलिए तू मेरे पास नहीं रहेगा।

बालक नचिकेता को यह बुरा नहीं लगा कि मेरे पिता ने मुझे कुछ कहा है। ऐसी श्रद्धा थी नचिकेता की अपने पिता के प्रति। यही श्रद्धा ज्ञान के लिए कारक बनी और नचिकेता को यमराज के द्वार पर ले गई। यमराज ने देखा कि यह सामान्य बालक नहीं, श्रद्धावान बालक है। जब हमारे पास श्रद्धा आती है तो वह हमें सक्षम बनाती है।

अपने श्रद्धा भाव से हम गुरु के पास जो गुरुत्व है, साधु के पास जो साधुत्व है, संन्यासी के पास जो संन्यास तत्व है, गंगा के पास जो गंगत्व है, देवताओं के पास जो देवत्व है और भगवान के पास जो भगवत्ता है, उसके स्वाभाविक रूप से अधिकारी बन जाते हैं। श्रद्धावान व्यक्ति स्वाभाविक रूप से योग्यता रखता है चूंकि उसके पास तर्क नहीं होते।

नचिकेता संकल्पित मन से यमराज की चौखट पर बैठ गया। यमराज ने कहा-तू तीन दिन से मेरे द्वार पर बैठा है, बड़ा हठी है। मांग क्या मांगना चाहता है? इस पर बालक नचिकेता ने कहा- मैं मृत्यु का भेद जानने आया हूं। जन्म-मृत्यु क्या है, यह भेद मुझे बता दीजिए।

यह सुनकर यमराज हतप्रभ हो गए। उन्होंने बालक नचिकेता के समक्ष ढेरों प्रलोभन रखते हुए कहा-तुम चक्रवर्ती सम्राट बनने, पृथ्वी पर प्रतिष्ठित और पूजित होने अथवा स्वर्ग की संपूर्ण संपदा प्राप्त करने का वर मांग लो। भला तुम्हारे इन प्रश्नों में क्या रखा है? बालक नचिकेता ने कहा-महाराज! मुझे यह सब कुछ नहीं चाहिए।मुझे वही चाहिए जिसके बारे में मैंने आपसे पूछा है।यमराज मजबूर हो गए।

श्रद्धा उसे भी कहते हैं जिसके सामने जगत के सारे आकर्षण गौण हो जाएं। श्रद्धा का एक अर्थ यह भी है कि जगत के सभी आकर्षण गौण हो गए हैं।श्रद्धा का एक अर्थ यह भी है कि जगत के आकर्षण आपके सामने शिथिल हो जाएं। श्रद्धा के बल पर ही बालक नचिकेता ने सब कुछ प्राप्त कर लिया।

अगर हमारे निवेश के लिए श्रद्धा की पूंजी है तो हम संसार की अलभ्य वस्तु भी प्राप्त कर सकते हैं। हमारी श्रद्धा होना चाहिए और मार्ग की सारी मुश्किलें स्वमेव ही समाप्त हो जाती हैं। श्रद्धा के बल पर ही पंगु पर्वत लांघने का साहस कर जाता है। यह हमारी श्रद्धा ही है जो हमें ज्ञानवान बनाती है। 'श्रद्धावान लभते ज्ञानम्'।

जब आप श्रद्धा के साथ कुछ प्राप्ति के लिए जाते हैं तो भले ही किसी में ज्यादा देने का सामर्थ्य न हो तब भी आप कुछ लेकर ही लौटेंगे।

संक्षेप में

ज्ञान की प्राप्ति के लिए मन में श्रद्धा होना बहुत ही जरूरी है। जब हम श्रद्धा के साथ कुछ पाने की कोशिश करते हैं तो भले ही हमें प्राप्त हो लेकिन हम निष्फल नहीं हो सकते हैं। ईश्वर, गुरु और वैद्य के समक्ष श्रद्धा भाव के साथ जाएंगे तो हमेशा कुछ लेकर ही लौटेंगे।

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