एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्यास्त तक पानी न पीने का विधान होने के कारण इस एकादशी कहते हैं। वैसे तो एक महीने में दो बार एकादशी आती है। शास्त्रों में एकादशी का व्रत करने का विधान बताया गया है।
स्वास्थ्य, दीर्धायु, सामाजिक सुख तथा मोक्ष फल की प्राप्ति में निर्जला एकादशी का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन आमरस दान करने के कारण इसे आम एकादशी भी कहते हैं।
ऐसे करें व्रत
ज्येष्ठ माह की में आने वाला निर्जला एकादशी व्रत के दिन पानी भी नहीं पीना चाहिए। इसलिए यह व्रत श्रमसाध्य होने के साथ संयम के साथ करना चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए कि वह जल को कलश से भरे। सफेद वस्त्र से उसे ढक दे। ढक्कर पर चीनी और दक्षिणा रख कर ब्राह्मणों को दान करें।
महिलाएं नथ पहनकर, ओढनी ओढ़ कर, मेंहदी लगाकर विधिपूर्वक शीतल जल से भरा मिट्टी का घड़ादान कर अपनी सास या अपने से बड़े लोगों के चरण स्पर्श करें।
एकादशी का व्रत करके अपने सामर्थ्य से अन्न, वस्त्र, आम और अन्य फलों का दान करना चाहिए। इस दिन निर्जल व्रत को बहुत महत्व माना गया है। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर एकादशियों का लाभ प्राप्त होता है।
व्रत की कथा
एक दिन महर्षि व्यास ने पांडवों को एकादशी का व्रत का विधान और फल बताया। इस दिन भोजन करने के दोषों की जब वे चर्चा करने लगे तो भीमसेन ने अपनी आपत्ति प्रकट करते हुए कहा कि इस दिन जब सारे लोग अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगे तो ये व्रत मुझसे नहीं हो पाएगा। मैं तो बिना खाए-पीए नहीं रह सकता है। इसलिए मुझे कओ ऐसा व्रत बताइए जिसको करने के बार मुझे सारी एकादशियों का फल मिल जाए।
महर्षि व्यास जानते थे कि भीमसेन के उदम में वृक नामक अग्नि है। इसलिए अधिक भोजन करने पर भी उसकी भूख शांत नहीं होगी। भीमसेन के इस प्रकार के भावों को समझकर महर्षि व्यास ने आदेश दिया कि- भीम तुम ज्येष्ठ शुक्ल की एकादशी जिसे निर्जला एकादशी का व्रत अगर करो।
इस व्रत में आचमन में पानी पीने से दोष नहीं होता। इस दिन अन्न न खाकर, जितने पानी में एक माशा सोने की मुद्रा डूब जाए उतना ही अन्न ग्रहण करो। तो ऐसे में तुम्हें दोष भी नहीं लगेगा और तुम्हें पूरी एकादशियों का पुण्य मिलेगा। इसलिए निर्जला एकादशी को एक किंवदंती के अनुसार भीमसेनी एकदशी भी कहते हैं।
स्वास्थ्य, दीर्धायु, सामाजिक सुख तथा मोक्ष फल की प्राप्ति में निर्जला एकादशी का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन आमरस दान करने के कारण इसे आम एकादशी भी कहते हैं।
ऐसे करें व्रत
ज्येष्ठ माह की में आने वाला निर्जला एकादशी व्रत के दिन पानी भी नहीं पीना चाहिए। इसलिए यह व्रत श्रमसाध्य होने के साथ संयम के साथ करना चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले को चाहिए कि वह जल को कलश से भरे। सफेद वस्त्र से उसे ढक दे। ढक्कर पर चीनी और दक्षिणा रख कर ब्राह्मणों को दान करें।
महिलाएं नथ पहनकर, ओढनी ओढ़ कर, मेंहदी लगाकर विधिपूर्वक शीतल जल से भरा मिट्टी का घड़ादान कर अपनी सास या अपने से बड़े लोगों के चरण स्पर्श करें।
एकादशी का व्रत करके अपने सामर्थ्य से अन्न, वस्त्र, आम और अन्य फलों का दान करना चाहिए। इस दिन निर्जल व्रत को बहुत महत्व माना गया है। इस दिन विधिपूर्वक जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर एकादशियों का लाभ प्राप्त होता है।
व्रत की कथा
एक दिन महर्षि व्यास ने पांडवों को एकादशी का व्रत का विधान और फल बताया। इस दिन भोजन करने के दोषों की जब वे चर्चा करने लगे तो भीमसेन ने अपनी आपत्ति प्रकट करते हुए कहा कि इस दिन जब सारे लोग अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगे तो ये व्रत मुझसे नहीं हो पाएगा। मैं तो बिना खाए-पीए नहीं रह सकता है। इसलिए मुझे कओ ऐसा व्रत बताइए जिसको करने के बार मुझे सारी एकादशियों का फल मिल जाए।
महर्षि व्यास जानते थे कि भीमसेन के उदम में वृक नामक अग्नि है। इसलिए अधिक भोजन करने पर भी उसकी भूख शांत नहीं होगी। भीमसेन के इस प्रकार के भावों को समझकर महर्षि व्यास ने आदेश दिया कि- भीम तुम ज्येष्ठ शुक्ल की एकादशी जिसे निर्जला एकादशी का व्रत अगर करो।
इस व्रत में आचमन में पानी पीने से दोष नहीं होता। इस दिन अन्न न खाकर, जितने पानी में एक माशा सोने की मुद्रा डूब जाए उतना ही अन्न ग्रहण करो। तो ऐसे में तुम्हें दोष भी नहीं लगेगा और तुम्हें पूरी एकादशियों का पुण्य मिलेगा। इसलिए निर्जला एकादशी को एक किंवदंती के अनुसार भीमसेनी एकदशी भी कहते हैं।
Source: Spiritual Hindi Stories & Aaj Ka Rashifal
Aachmanआचमन meaning
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