Tuesday 1 April 2014

God is formless of has a form

पूरी दुनिया में विद्वान लोग ईश्वर के प्रति एक खास नजरिया रखते हैं। उनका सोचना है कि ईश्वर निराकार है। हम उसे वैसे नहीं देख सकते हैं, जैसे अपने को आईने में देखते हैं। ईश्वर पूरी तरह से बोध का मामला है। जो उस बोध से गुज़रता है, वही बुद्ध हो जाता है।

सरल लोग, जिनकी दुनिया उनकी रोजी-रोटी के इर्द-गिर्द मंडराती रहती है, वे ईश्वर को निराकार नहीं मानते। उनका खयाल है कि ईश्वर हमारी तरह ही कहीं होगा और वहीं से हमारे ऊपर नज़र रख रहा होगा। यही बात दर्शन और पौराणिक शब्दावली में कही जाए तो ईश्वर सगुण है।

ठीक वैसे ही जैसे हम लोग सगुण हैं। वहीं विद्वानों ने ईश्वर को निर्गुण बना रखा है-निरगुनिया। अब यह दर्शन का बड़ा महत्वपूर्ण द्वंद्व है। इस पर बड़ी बहसें हुई हैं। कई सिद्धांतों का प्रतिदान किया गया है। ईश्वर निराकार भी है और साकार भी। ईश्वर निर्गुण भी है और सगुण भी है। भारतीय धर्मों में इसे बहुत शांत तरीके से बताया गया है।

अगर भगवान साकार हैं, सगुण हैं तो उनके लिए ईश्वर शब्द चुना है। ब्रह्म का केवल बोध किया जा सकता है। यही बोध आध्यात्मिकता की पराकाष्ठा होगा, जिसे हम परमतत्व या अंतिम सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। यहां ईश्वर हमारे बहुत करीब आ जाता है और हम उसे थोड़ा नीचे ले आते हैं।

जब ईश्वर थोड़ा और नीचे आता है तो अवतार के रूप में आ जाता है-कभी राम बनकर, कभी श्याम बनकर। यहां से एक आम आदमी के लिए ईश्वर के साथ तादात्म्य बैठाना और सरल हो जाता है।

पूरी दुनिया में भक्ति की मदद से ईश्वर की निकटता आम आदमी के लिए बिलकुल ठीक-ठीक समझ में आने वाली बात हो जाती है। अवतार की थ्याेरी ईश्वर का सरलीकरण है। ईश्वर और आध्यात्मिकता से संबंधित जितने प्रतीक हैं उन पर भी गाैर करना चाहिए। ईश्वर को अगर वाणी में व्यक्त करें तो वह 'ऊँ' होगा।

अगर आंखों से देखने वाली किसी ऑब्जेक्टिव चीज़ के रूप में व्यक्त करें तो वह प्रकाश होगा। यहां तक तो सब ठीक होगा, लेकिन जो निराकार हो, जिसका कोई आकार ही नहीं है जो दिखता ही नहीं है, फिर उसे कैसे व्यक्त करेंगे? लेकिन भारतीय आध्यात्मिकता ने निराकार को भी व्यक्त करने के कुछ तरीके सोचे होंगे। हमारी आध्यात्मिक परंपरा में 'ध्यान या मेडिटेशन' निराकार को व्यक्त करता है।

इस तरीके को ही हम ध्यान या मेडिटेशन के नाम से जानते हैं। अगर आप भगवान के करीबी शिष्यों में शामिल होना चाहते हैं तो आपको उनके निराकार स्वरूप का बोध करना पड़ेगा, जो आप केवल मेडिटेशन से हासिल कर सकते हैं।

No comments:

Post a Comment