Wednesday 16 April 2014

The reasons why saint take mausoleum

ध्यान की वह अवस्था जब व्यक्ति ईश्वर या अपने आराध्य में एकाकार हो जाता है समाधि कहलाती है। इस अवस्था में व्यक्ति को स्पर्श, रस, गंध, रूप एवं शब्द इन 5 विषयों की इच्छा नहीं रहती तथा उसे भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी आदि का आभास भी नहीं होता। ऐसा व्यक्ति शक्ति संपन्न बनकर अमरत्व को प्राप्त कर लेता है। उसके जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है।

यही है कैवल्य ज्ञान

जैन धर्म में समाधि को कैवल्य ज्ञान और बौद्ध धर्म में निर्वाण कहा गया है। योग में इसे समाधि कहते हैं। इसके कई स्तर होते हैं।

योग का अंतिम पड़ाव

समाधि योग का सबसे अंतिम पड़ाव है। यह तभी प्राप्त हो सकता है जब व्यक्ति सभी योग साधनाओं को करने के बाद मन को बाहरी वस्तुओं से हटाकर निरंतर ध्यान करते हुए उसी में लीन होने लगता है।

संयम करना ही समाधि

पूर्ण रूप से सांस पर नियंत्रण और मन स्थिर व सन्तुलित हो जाता है, तब समाधि की स्थिति कहलाती है। प्राणवायु को 5 सेकंड तक रोककर रखना 'धारणा' है, 60 सेकंड तक मन को किसी विषय पर केंद्रित करना 'ध्यान' है और 12 दिनों तक प्राणों का निरंतर संयम करना ही समाधि है।

समाधि के प्रकार

भगवान श्री कृष्ण ने भी भागवत गीता में समाधि के बारे में विस्तार से बताया है। योग में समाधि के दो प्रकार बताए गए हैं- सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात। सम्प्रज्ञात समाधि वितर्क, विचार, आनंद और अस्मितानुगत होती है। असम्प्रज्ञात में सात्विक, राजस और तामस सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है।

भक्ति सागर में समाधि के 3 प्रकार बताए गए है- 1.भक्ति समाधि, 2.योग समाधि, 3.ज्ञान समाधि।

पुराणों में समाधि के 6 प्रकार बताए गए हैं जिन्हें छह मुक्ति कहा गया है- 1. साष्ट्रि, (ऐश्वर्य), 2. सालोक्य (लोक की प्राप्ति), 3. सारूप (ब्रह्मस्वरूप), 4. सामीप्य, (ब्रह्म के पास), 5. साम्य (ब्रह्म जैसी समानता) 6. लीनता या सायुज्य (ब्रह्म में लीन होकर ब्रह्म हो जाना)।

ऐसे शुरू की जाती है समाधि

जब व्यक्ति प्राणायाम, प्रत्याहार को साधते हुए धारणा व ध्यान का अभ्यास पूर्ण कर लेता है तब वह समाधि के योग्य बन जाता है। समाधि के लिए व्यक्ति के मन में किसी भी प्रकार के बाहरी विचार नहीं होते।

व्यक्ति का मन पूर्ण स्थिर रहकर आंतरिक आत्मा में लीन हो जाता है तब समाधि घटित होती है। इसलिए समाधि से पहले ध्यान के अभ्यास को बताया गया है। ध्यान से ही चित्त (मन) विचार शून्य हो जाने की अवस्था में समाधि घटित होती है।

समाधि प्राप्त व्यक्ति का व्यवहार सामान्य व्यक्ति से अलग हो जाता है, वह सभी में ईश्वर को ही देखता है और उसकी दृष्टि में ईश्वर ही सत्य होता है। समाधि में लीन होने वाले योगी को अनेक प्रकार के दिव्य ज्योति और आलौकिक शक्ति का ज्ञान प्राप्त स्वत: ही होता है।

क्यों जरूरी है मोक्ष

शरीर के जन्म और मरण के चक्र से बाहर निकलकर स्वयं को कहीं भी किसी भी रूप में अभिव्यक्त करने की ताकत और सच मानो तो इस ब्रह्मांड से अलग रहने की ताकत। ब्रह्मांड से अलग वही रह सकता है, जो ब्रह्म स्वरूप शुद्ध चैतन्य है।

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