Friday 25 April 2014

Most amazing thing that you do not know god pdmapani

पद्मपाणि की जो सबसे अद्भुत बात है वह उनके स्वरूप की शोभा है। हालांकि वे एक पुरुष हैं लेकिन उनकी भाव भंगिमा को आज हम एक स्त्रियोचित भंगिमा ही कहेंगे। यह श्रृंगारित छवि अधिकांशत: किसी नृतक की तरह चिह्नित की गई है जो इच्छा को ही पीड़ा के मूल में बता रही है।

नहीं, यह लेख राजनीतिक पार्टियों के विषय में नहीं है जो कि कमल या हाथ को अपने प्रतीक चिह्न के तौर पर बताती हैं। यह कथा तो पद्मपाणि के बारे में हैं जो कमल धारण करते हैं, महाराष्ट्र की अजंता गुफाओं में बना बुद्धकाल का भित्ति चित्र जो भारत के सबसे प्राचीन कला प्रमाणों में से माना जाता है।

यह चित्र करीब 1600 वर्षों पहले उकेरा गया और भारतीय इतिहास के सर्वाधिक प्राचीन भित्ति-चित्रों में गिना जाता है। इसे बुद्ध भिक्षुओं ने एक अंधेरी गुफा में उकेरा और किसी को भी आश्चर्य हो सकता है कि मठ के भिक्षु द्वारा ऐसा सौंदर्यपूर्ण चित्र क्यों और कैसे रचा गया होगा जो देखने वाले की कल्पना से भी परे है। संभवत: इस तरह के भित्तिचित्र सार्वजनिक स्थलों पर भी बनाए गए होंगे लेकिन वे इतिहास में शेष नहीं बचे।

हमारे पास जो शेष है वह पद्मपाणि की तरह के चित्र ही हैं जो हमें गुजरे समय की स्मृति देते हैं और वे विचार देते हैं जो आज भी हमारे लिए प्रासंगिक हैं। पद्मपाणि की जो सबसे अद्भुत बात है वह उनके रूप की शोभा है। हालांकि वे एक पुरुष हैं लेकिन उनकी भाव भंगिमा को आज हम एक स्त्रियोचित भंगिमा ही कहेंगे। इसे त्रि-भंगा कहेंगे या ऐसा शरीर जो तीन जगहों पर मुड़ा है- गर्दन, पीठ और नितंब।

उन्होंने एक हाथ में कमल पुष्प धारण कर रखा है। यह कला संसार में बहुधा मिलने वाले किसी आक्रामक लड़ाके की भंगिमा या किसी साधू की शांतिपूर्ण मुद्रा से बिलकुल अलग है। यह श्रृंगारित छवि अधिकांशत: किसी नृतक की तरह चिह्नित की गई है जो इच्छा को ही पीड़ा के मूल में बता रही है। लेकिन पद्मपाणि बुद्ध के बारे में नहीं है, वह बोधिसत्व के विषय में है।

शाक्यमुनि बुद्ध के करीब 500 वर्षों बाद संस्कृत लिपि जिसे कि लोटस सूत्र के रूप में जाना जाता है वह सामने आई और उसने यह दावा किया कि उसमें बुद्ध द्वारा बताए गए प्रज्ञावान विचार थे लेकिन उन्हें नागाओं (भूमिगत सपेरों) के राज्य में बंद करके रखा गया था जब तक कि मानवता उनके लिए तैयार नहीं हो जाती। इस पुस्तक में, बुद्ध कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए और इस संसार में कोई एक बुद्ध है भी नहीं। इस दुनिया में कई अनश्वर प्रज्ञा के मनुष्य हैं। इन्हीं के बीच बोद्धिसत्व हैं जिन्होंने अपना प्रबोधन टाल दिया है तब तक के लिए जब तक कि सारी मानवता सभी तरह की दरिद्रता से मुक्त नहीं हो जाती।

अवलोकितेश्वर (वे जो स्वर्ग से नीचे मुख करके मानवता की पीड़ा को देख रहे हैं) उनमें से एक हैं। पद्मपाणि अवलोकितेश्वर का एक रूप है। यह लोट्स सूत्र चीन में लोकप्रिय हुआ और अवलोकितेश्वर को एक करूणामय स्त्री ग्वानयिन के रूप में देखा गया। इसे पद्मपाणि के उभयलिंगी स्वभाव के रूप में भी देखा जा सकता है।

कथा इस तरह है कि एक दिन, अपने प्रवचन के पश्चात बुद्ध को श्रोताओं के बीच में बैठा एक श्रोता किंचित दुविधा में दिखा और स्पष्टता चाहता था। और तब बुद्ध ने एक कमल उठाया और उस बहुत साधारण भाव से उन सभी को प्रज्ञा प्राप्त हुई जो इस ओर ध्यान दे रहा था। यह प्रतीकात्मक संवाद किसी भी शाब्दिक संवाद की तुलना में बहुत प्रभावशाली था। बुद्ध का यह स्वरूप बाद में पद्मपाणि से जुड़ गया। कमल एक प्राचीन भारतीय प्रतीक है, ऐसा प्रतीक जिसके कई अर्थ हैं और कई बड़े झूठे या असत्य अर्थ भी हैं।

कमल भौतिकता से भी जुड़ा है (मधुमक्खियों के लिए शहद का स्रोत)। यह आध्यात्मिकता से भी जुड़ा है (सुंदरता के साथ कीचड़ में खिलता है)। यह यौन इच्छाओं का संकेतक भी है (तब खिलता है जब सूर्य उदित होता है)। यह निर्लिप्तता को भी दर्शाता है (जो जल में रहकर भी जल से अप्रभावित रहता है)। आज भी पद्मपाणि की भाव-भंगिमा पहले से दुविधा में पड़े विद्यार्थी को और अधिक संशय में नहीं डालती है बल्कि इसने तो शायद उसे वह उत्तर देखने में मदद की है जिसे वह खोज रहा है।

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