Tuesday 1 April 2014

Kanya puja is done

नवरात्र में हवन करने के बाद कन्या पूजन करने का महत्तव है। बड़े पर्वों पर, पुण्य मुहूर्त में और महानवमी के दिन कन्या पूजन का बहुत महत्व माना गया है।

वेदों में कुंआरी कन्याओं को साक्षात् देवी का स्वरूप माना गया है। कन्या पूजन से सम्मान, लक्ष्मी, विद्या और तेज की प्राप्त होता है। कन्याएं विघ्न, भय और शत्रु का नाश करती हैं

शास्त्रों के अनुसार ये हैं कन्याएं

दो वर्ष कन्या की कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्ति, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की बालिका, सात वर्ष की चण्डिका, आठ वर्ष की शाम्भरी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलती हैं।

ग्यारह वर्ष से ऊपर की अवस्था की कन्याओं का पूजन वर्जित माना जाता है। कहा जाता है कि होम, जप, और दान से देवी इतनी प्रसन्न नहीं होती जितनी कि कन्या पूजन से होती हैं।

दुःख, दरिद्रता और शत्रु नाश के लिए कन्या पूजन सर्वोत्तम माना गया है। यह कोई आवश्यक नही कि नौ कन्याओं का ही पूजन किया जाए एक कन्या का पूजन भी उतना फलदायक होता है जितनी नौ कन्याओं का।

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