Tuesday 1 April 2014

Here is why our great new year

भारतवर्ष में नया साल गुडी पडवा यानी संवत्सरी पडवा से ही माना जाता है। नए साल के इस पहले दिन को महाराष्ट्र व मध्यभारत् में गुडी पडवा, कर्नाटक व आंध्रप्रदेश में उगाडी, तमिलनाड़ू में पुथांडू, असम में बीहू, पंजाब में बैसाखी, उडीसा में पाना संक्रांत् व पश्चिम बंगाल में नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।

भारतीय संस्कृति में सृष्टि का आरंभ और नए साल का प्रारंभ क् जनवरी से नहीं, बल्कि चैत्र शुल प्रत्पिदा यानी गुडी पडवा पर्व से होना माना गया है। तर्क संगत बात ये है कि नए साल का शुभारंभ इसी दिन से माने जाने के पीछे कई पौराणिक व वैज्ञानिक त्थ्य हैं।

समूचे सौरमण्डल एवं धरामण्डल की इसी सच्चाई कव् कारण पाश्चात्य जगत् को भी अपने कैलेण्डर वर्ष् (१ जनवरी से ३१ दिसंबर) में बाद में संसोधन करना पडा और वित्तीय वर्ष (अप्रैल से मार्च के बीच) माना गया। यह वित्तीय वर्ष भारतीय चैत्री वर्ष लगभग समरूप ही है।

पृथ्वी प्राकृतिक फसल चक्र की ही नहीं बल्कि सपूर्ण सौरमण्डल में भी आज (चैत्र शुल प्रत्पिदा) से ही कालचक्र कव् परिवर्त्न और नए वर्ष का प्रारंभ का संकव्त् मिलता है। यही कारण है कि हमारे सूक्ष्मदर्शी खगोल एवं दर्शन शास्त्री वैज्ञानिक दृष्टि सपन्न ऋषियों ने सृष्टि संवत्, द्वापर श्रीकृष्ण संवत्, कलियुग संवत्, शक संवत्, विक्रम संवत् आदि इसी दिन से प्रारंभ होना माना है।

यहां ये समझना जरूरी है कि जब हमारा वार्ष्कि कैलेंडर इत्ना शास्त्रसम्मत, तर्कसंगत और प्रकृति सम्मत है तो फिर हमारे देश में पाश्चात्य कैलेंडर का इत्ना प्रभुत्व कैसे हो गया? इसका जवाब अंग्रेजों के शासन में मिलता है। दरअसल, अंग्रेजों ने भारत् सहित् तमाम औपनिवेशिक देशों में अपने शासन काल के दौरान अंग्रेजी पद्धति के गेगेरियन कैलेण्डर को अपनी साथ व चतुराई के बल पर लागू कर दिया। भारत् में तो इसे अंग्रेजी शासन के कई सालों के दौरान जबरन थोपा गया।

धीरे-धीरे कालगणना का यह चक्र हम भारतीयों की आदत में समावीष्ट हो गया और हम जनवरी से दिसंबर की अवधि को ही वर्ष मानने लगे।

सवाल यह है कि अपनी कालगणना में ही शामिल हो गए गुलामी कव् इस चिह्न को हम कब तक स्वाभिमान शून्य रहकर ढ़ोते रहेंगे? विज्ञानसम भारतीय काल गणना को अपने स्वदेशी गौरव के लिये हमें इस गुलामी के चिह्न को हटाना और अपनी स्वदेशी समृद्ध सर्वेष्ठ काल गणना (भारतीय पंचांग) का प्रयोग प्रचलन में लाना नितांत आवश्यक है। साथ ही हमें नए साल के प्रारंभ के रूप में गुडी पडवा पर्व को उत्सव के रूप में मनाने में भी गौरव का अनुभव करना चाहिये।

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