Wednesday, 24 September 2014

After the encounter fir mandatory must surrender weapons

देश में बढती जा रही मुठभेड़ की घटनाओं के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नए दिशा निर्देश जारी किये हैं। नए आदेशों के तहत अब मुठभेड़ में किसी की मौत होने के तत्काल बाद पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करनी होगी और मुठभेड़ में इस्तेमाल किये गए हथियारों को तत्काल सरेंडर करने के साथ- साथ एफआईआर की प्रति नजदीकी कोर्ट में जमा करानी होगी ।

मुठभेड़ में अगर किसी की मौत होती है तो मजिस्ट्रेटियल इन्क्वायरी अनिवार्य होगी ।गौरतलब है कि हाल के वर्षों में जम्मू कश्मीर के बाद देश में मुठभेड़ की सर्वाधिक घटनाएं छत्तीसगढ़ में घटी है ,पिछले वर्ष राज्य में मुठभेड़ की 109 घटनाएं घटी थी ,जिनमे 20 नागरिकों की जाने गई थी। इस वर्ष लोकसभा में रखे गए एनएचआरसी के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2002 से वर्ष 2013 के बीच छत्तीसगढ़ में फर्जी मुठभेड़ में 46 जाने गई हैं ।

छत्तीसगढ़ में नक्सली मोर्चे पर मुठभेड़ की घटनाएं अब पुलिस के लिए मुश्किलों का सबब बन सकती हैं ।कोर्ट ने कहा है कि जो भी पुलिसकर्मी फर्जी मुठभेड़ के आरोपी हैं उन्हें प्रोन्नति और वीरता पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए । कोर्ट ने मुठभेड़ की घटनाओं को इलेक्ट्रानिक या फिर लिखित तौर पर रिकार्ड करना भी अनिवार्य बना दिया है।कोर्ट का कहना है कि मुठभेड़ के हर एक मामले की जांच सीआईडी या फिर किसी दूसरे पुलिस स्टेशन के अधिकारियों से करानी होगी और मुठभेड़ में होने वाली मौतों की जांच दूसरे जिले का आइपीएस रैंक का अधिकारी करेगा ।

छत्तीसगढ़ में पिछले दो वर्षों में मुठभेड़ की तमाम छोटी बड़ी घटनाएं घटी है ।हाल के वर्षों में सर्वाधिक चर्चित मामला एडसमेटा में हुआ था पिछले वर्ष झीरम काण्ड से ठीक पहले 17 मई की रात को यहाँ हुई मुठभेड़ में आठ लोगों की जान गई थी ,जिनमे तीन बधो और एक आम नागरिक मारे गए थे ।इस मामले की जांच जस्टिस वी के अग्रवाल कमीशन कर रहा है जिसके पास सरकेगुडा और सुकमा में हुए मुठभेड़ के मामलों की जांच है,जिनमे कथित तौर पर बेगुनाहों की जान गई थी ।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के विशेष संपर्ककर्ता प्रोफ़ेसर एस नारायण सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का स्वागत करते हुए कहते हैं कि अकेले छत्तीसगढ़ से आयोग के पास फर्जी मुठभेड़ की एक हजार से ज्यादा शिकायतें मौजूद हैं ।वो कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति को चाहे वो अपराधी ही क्यूँ न हो ,जान से मारने को उचित नहीं कहा जा सकता ।

वर्जन -1

इनकाउंटर किसी भी स्थिति में नहीं होना चाहिए ,अगर किसी अपराधी को गोली मारने की जरुरत पड़ भी जाए तो उसके पैर में गोली मारनी चाहिए ।अगर मुठभेड़ के बाद पुलिस को अदालत को और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सूचना नहीं दी जा रही है तो संदेह होना लाजिमी है ।हाल के दिनों में हमने छत्तीसगढ़ में फर्जी मुठभेड़ की घटनाओं पर राज्य सरकार को सख्त दिशा निर्देश दिया हैं और प्रभावितों को मुआवजा दिलाया है ।

प्रोफ़ेसर एन नारायण विशेष संपर्ककर्ता (छत्तीसगढ़ ,मध्य प्रदेश ) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

वर्जन - 2

सुप्रीम कोर्ट की आज दी गई गाइडलाइन आर्टिकल 141 के तहत कानून का शक्ल ले चुकी है ।निस्संदेह इससे फर्जी मुठभेड़ के मामलों में कमी आएगी । अब तक मुठभेड़ के मामले को हम राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और मुंबई हाईकोर्ट के आदेशों के तहत देखते थे ।सुप्रीम कोर्ट ने इन सबको मिलाकर और अपनी तरफ से कुछ चीजें जोड़कर जो चीजे प्रस्तुत की है वो काबिलेतारीफ हैं । मेरा मानना है कि पुलिस का जो काम है वो करेगी और उसे करना भी चाहिए लेकिन यह भी जरुरी है कि एक भी निर्दोष न मारा जाए ।

संजय पारिख उपाध्यक्ष पीपुल यूनियन आफ सिविल लिबर्टी

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