Thursday, 25 September 2014

Utera sowing of peas would also like tivra

किसान अब तिवरा, मसूर व अलसी की तरह मटर को भी उतेरा पद्धति से बो सकेंगे। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने मटर की एक नई किस्म विकसित की है, जिसे बोता के साथ उतेरा पद्धति से भी बोया जा सकता है। मटर की 'आरपीएफ 2009-1' नाम की इस वेराइटी में सामान्य मटर की तुलना में डेढ़ गुणा उत्पादन होगा।

मटर की इस नई वेराइटी को विकसित करने वाले कृषि वैज्ञानिक डॉ.एचसी नंदा, डॉ.सुनील कुमार नायर व डॉ.दीपक चंद्राकर ने बताया कि इस नई किस्म से बोता पद्धति में प्रति हेक्टेयर 19 क्विंटल तक उत्पादन होगा। यह मटर की पहली वेराइटी है, जिसमें उतेरा पद्धति में भी उत्पादन होगा। खरीफ फसल में धान के बाद उतेरा (रिले क्रॉपिंग) में मटर की यह वेराइटी प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल तक उत्पादन दे रही है। इसकी खासियत यह है कि छत्तीसगढ़ के अलावा राज्य से लगे हुए उत्तर पूर्वी राज्यों जैसे बिहार के लिए भी अनुशंसित है।

फली बेधक कीट से लड़ने की क्षमता

कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि मटर की किस्म 'आरपीएफ 2009-1' का प्रस्तावित नाम इंदिरा मटर-4 है। यह किस्म मटर में होने वाली रोग चूर्णिल आसिता (पाउडरी मिलड्यू) के लिए मध्यम निरोधक है। साथ ही इसमें फली बेधक कीट से लड़ने की क्षमता है। कीट इस किस्म के पौधे व फली को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, इसलिए यह किसानों के लिए कारगर है।

8-10 साल के रिसर्च का परिणाम

डॉ.एचसी नंदा ने बताया कि मटर की यह नई किस्म उनके करीब 8-10 साल के सतत रिसर्च का नतीजा है। इसे विभिन्न अच्छी वेराइटियों के संकरण के बाद वंशक्रम पद्धति से विकसित किया गया है। यह किस्म 105 से 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसे अखिल भारतीय समन्वित मूल्लार्प अनुसंधान परियोजना के तहत विकसित की गई है।

यह है उतेरा पद्धति

धान की खरीफ फसल को काटने के 2-3 सप्ताह पहले तिवरा, मसूर, अलसी, लाखड़ी आदि के बीजों को खेतों में छिड़क दिया जाता है। ज्यादा पानी को बीज छिड़कने के 24 घंटे के बाद निकाल दिया जाता है। बीजों को बोने के बाद एवं फसल को काटने तक खेतों में किसी प्रकार का काम नहीं किया जाता है। इसे उतेरा पद्धति कहते हैं। उतेरा की फसल के लिए जमीन का संचित जल पर्याप्त होता है। कम पानी सोखने वाली जमीन में फसल को नहीं उगाया जाता है।

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