अपनी जान जोखिम में डाल धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में चुनाव कार्य संपन्न कराने वाले जवानों को चंदा कर अपने खाने-पीने की व्यवस्था करनी पड़ी। प्रशासन ने उनकी ड्यूटी तो लगाई, लेकिन उनके खाने-पीने के बारे में सोचा तक नहीं। इस उपेक्षा व अव्यवस्था से उन सहायक आरक्षकों में निराशा के साथ काफी आक्रोश है। अंतागढ़ विधानसभा उपचुनाव कराकर लौटे ऐसे जवानों ने कहा कि प्रशासन के उपेक्षापूर्ण व्यवहार से वे काफी दुखी हैं। पिछले तीन चुनावों से उन्हें कोई टीए-डीए नहीं दिया गया है। बावजूद इसके फर्ज सबसे ऊपर है और वे इसे हर हाल में निभाएंगे।
प्रशासनिक अव्यवस्था से नाराज सहायक आरक्षकों ने कहा कि ड्यूटी के लिए उन्हें दूरदराज के इलाकों में भेज तो दिया जाता है, पर उन्हें किसी प्रकार का भत्ता नहीं दिया जाता। विधानसभा, लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव तीनों में उन्होंने अंतागढ़ विधानसभा क्षेत्र के अतिसंवेदनशील स्थानों पर अपनी सेवा दे चुके, परंतु उन्हें किसी भी चुनाव के दौरान टीए या डीए नहीं दिया गया। सहायक आरक्षकों ने कहा कि अधिकारियों द्वारा उनके लिए खाने की व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्हें आपस में चंदा कर खाने-पीने की व्यवस्था करनी पड़ी। खाना बनाने के लिए बर्तन सहित अन्य सामान स्वयं जुटाने पड़े।
अव्यवस्था के बीच निभाया फर्ज
अंतागढ़ उपचुनाव में जिला सहित अन्य जिलों के सहायक आरक्षकों की ड्यूटी लगाई गई थी। अपनी जान जोखिम में डाल उन्होंने तो अपना फर्ज निभाया परंतु अधिकारियों ने न तो उनके रुकने की कोई व्यवस्था की, न ही खाने-पीने की। ड्यूटी निभाने वे जब पखांजूर शासकीय कॉलेज पहुंचे तो सुविधा के नाम पर उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला।
नहीं दिया जाता बीमा
सहायक आरक्षकों ने कहा कि नक्सली क्षेत्र होने के बावजूद उन्हें ड्यूटी के दौरान किसी प्रकार की बीमा सुविधा नहीं दी जाती, जबकि अंतागढ़ विधानसभा के लगभग सभी मतदान केन्द्र अतिसंवेदनशील हैं। यहां नक्सली घटना में जान जाने का जोखिम हमेशा बना रहता है।
समान वेतन की कर रहे मांग
सहायक आरक्षकों ने बताया कि उनका वेतनमान आरक्षकों के वेतनमान से बहुत कम है। उन्होंने कहा कि जब उनसे काम आरक्षकों के समान ही लिया जाता है फिर वेतन में भेदभाव क्यों? उन्होंने कहा कि वेतन कम होने के बावजूद वे अपना फर्ज निभाने से न कभी पीछे हटे हैं, न ही हटेंगे।
मुख्यमंत्री ने नहीं निभाया वादा
जवानों ने कहा कि वर्ष 2011 में मुख्यमंत्री ने सहायक आरक्षकों के वेतन वृद्धि और आरक्षक पद पर पदोन्नति देने का वादा किया था, जो आज तक पूरा नहीं किया गया। वे इन दोनों मांगों को लेकर लगातार आवाज उठाते रहे हैं, बावजूद इसके प्रशासन ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
खाने-पीने की व्यवस्था उनकी जिम्मेदारी
सहायक आरक्षक ट्रेनिंग पीरिएड में होते हैं। ऐसे में खाने-पीने की व्यवस्था उन्हें स्वयं करने का प्रावधान है। केवल उनके ठहरने की व्यवस्था ही की जाती है। हालांकि इस दौरान कुछ अव्यवस्था भी हो सकती है।
राजेन्द्र दास, एसपी, कांकेर
प्रशासनिक अव्यवस्था से नाराज सहायक आरक्षकों ने कहा कि ड्यूटी के लिए उन्हें दूरदराज के इलाकों में भेज तो दिया जाता है, पर उन्हें किसी प्रकार का भत्ता नहीं दिया जाता। विधानसभा, लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव तीनों में उन्होंने अंतागढ़ विधानसभा क्षेत्र के अतिसंवेदनशील स्थानों पर अपनी सेवा दे चुके, परंतु उन्हें किसी भी चुनाव के दौरान टीए या डीए नहीं दिया गया। सहायक आरक्षकों ने कहा कि अधिकारियों द्वारा उनके लिए खाने की व्यवस्था नहीं होने के कारण उन्हें आपस में चंदा कर खाने-पीने की व्यवस्था करनी पड़ी। खाना बनाने के लिए बर्तन सहित अन्य सामान स्वयं जुटाने पड़े।
अव्यवस्था के बीच निभाया फर्ज
अंतागढ़ उपचुनाव में जिला सहित अन्य जिलों के सहायक आरक्षकों की ड्यूटी लगाई गई थी। अपनी जान जोखिम में डाल उन्होंने तो अपना फर्ज निभाया परंतु अधिकारियों ने न तो उनके रुकने की कोई व्यवस्था की, न ही खाने-पीने की। ड्यूटी निभाने वे जब पखांजूर शासकीय कॉलेज पहुंचे तो सुविधा के नाम पर उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला।
नहीं दिया जाता बीमा
सहायक आरक्षकों ने कहा कि नक्सली क्षेत्र होने के बावजूद उन्हें ड्यूटी के दौरान किसी प्रकार की बीमा सुविधा नहीं दी जाती, जबकि अंतागढ़ विधानसभा के लगभग सभी मतदान केन्द्र अतिसंवेदनशील हैं। यहां नक्सली घटना में जान जाने का जोखिम हमेशा बना रहता है।
समान वेतन की कर रहे मांग
सहायक आरक्षकों ने बताया कि उनका वेतनमान आरक्षकों के वेतनमान से बहुत कम है। उन्होंने कहा कि जब उनसे काम आरक्षकों के समान ही लिया जाता है फिर वेतन में भेदभाव क्यों? उन्होंने कहा कि वेतन कम होने के बावजूद वे अपना फर्ज निभाने से न कभी पीछे हटे हैं, न ही हटेंगे।
मुख्यमंत्री ने नहीं निभाया वादा
जवानों ने कहा कि वर्ष 2011 में मुख्यमंत्री ने सहायक आरक्षकों के वेतन वृद्धि और आरक्षक पद पर पदोन्नति देने का वादा किया था, जो आज तक पूरा नहीं किया गया। वे इन दोनों मांगों को लेकर लगातार आवाज उठाते रहे हैं, बावजूद इसके प्रशासन ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
खाने-पीने की व्यवस्था उनकी जिम्मेदारी
सहायक आरक्षक ट्रेनिंग पीरिएड में होते हैं। ऐसे में खाने-पीने की व्यवस्था उन्हें स्वयं करने का प्रावधान है। केवल उनके ठहरने की व्यवस्था ही की जाती है। हालांकि इस दौरान कुछ अव्यवस्था भी हो सकती है।
राजेन्द्र दास, एसपी, कांकेर
Source: MP Hindi News and Chhattisgarh Hindi News
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