सेंट्रल जेल में कैदी के हत्या ने जेल की सुरक्षा पर गंभीर सवाल उछाले हैं। मगर ये सवाल सिर्फ सेंट्रल जेल तक सीमित नहीं। जिला जेल में तो हालात और भी बदतर हैं। सेंट्रल जेल में तो फिर भी सीसीटीवी, सुरक्षा गार्ड जैसी कई पुख्ता व्यवस्थाएं थी (इसके बाद भी कैदी की हत्या हो गई) जबकि जिला जेल में तो इतने इंतजाम भी नहीं। यहां सीसीटीवी कैमरे लगाने की योजना लंबे समय से बन रही है, मगर अमल आज तक नहीं हो सका है।
सेंट्रल जेल में कैदियों पर नजर रखने के लिए कई पुख्ता इंतजाम हैं। जेल के चप्पे-चप्पे पर निगाह रखने के लिए लाखों रुपए खर्च कर सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। इसके बावजूद इस जेल में पिस्टल अंदर पहुंचा दी गई और उससे कैदी की हत्या कर दी गई। मगर इसके उलट जिला जेल में तो हालात और भी भयावह हैं। यहां तो कैदियों पर नजर रखने तक की पुख्ता व्यवस्था नहीं है। आईनेक्स्ट ने जिला जेल की नब्ज टटोली और सुरक्षा व्यवस्था के हर पहलू को जांचा, तो ऐसी खामियां सामने आईं जो ये बताती हैं कि यहां भी ऐसी कोई घटना आसानी से अंजाम दी जा सकती है।
क्या घटनाएं भी कैमरे लगने का इंतजार करती रहेंगी?
प्रदेश की 11 संवेदनशील जेलों में इंदौर की जिला जेल भी शुमार है। यही वजह है कि जिला जेल में दो महीने पहले 360 डिग्री एंगल तक घूमकर चारों ओर नजर रखने वाले 6 पीटीजेड कैमरे लगाने की योजना बनी है। इसके अलावा परिसर में 20 स्टिल कैमरे भी लगाए जाने हैं। इस योजना के बनने के बाद उज्जैन जेल के अधीक्षक संजय पांडे जिला जेल का मुआयना कर सीसीटीवी कैमरे लगाने के स्थानों का भी चयन कर चुके हैं। मगर अब तक सीसीटीवी कैमरे लगाने की शुरुआत नहीं हुई है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या घटनाएं सीसीटीवी कैमरे लगने का इंतजार करेंगी?
सब कुछ मेटल डिटेक्टर के भरोसे
जिला जेल में सुरक्षा के नाम पर सिर्फ 5 हैंड हेल्ड मेटल डिटेक्टर व 2 डोर मेटल डिटेक्टर ही हैं। जेल में प्रवेश करने वाले कैदियों की जांच इनके माध्यम से ही की जाती है। इस तरह स्पष्ट है कि फिलहाल जेल में बंदूक या अन्य हथियार जांचने के लिए सिर्फ ये चुनिंदा संसाधन हैं। जब तक परिसर में सीसीटीवी कैमरे नहीं लग जाते, यहां की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत नहीं हो सकती।
वॉच टॉवर तक नहीं
जिला जेल में तो कैदियों व जेल के आसपास के इलाके पर नजर रखने के लिए वॉच टॉवर तक नहीं है। हालांकि जेल प्रबंधन का कहना है कि यहां टॉवर बनाने का प्रोजेक्ट भी स्वीकृत है, लेकिन हकीकत यह है कि इसका निर्माण अब तक शुरू नहीं हुआ है। उधर, सेंट्रल जेल में सिर्फ एक ही वॉच टॉवर है, जिस पर बैठकर जेलकर्मी जेल के अंदर व बाहर नजर रखते हैं। हालांकि यहां वॉच टॉवर की संख्या बढ़ाए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है। नियमानुसर जेल के चारों ओर वॉच टॉवर लगाए जाने चाहिए, लेकिन इस ओर अब तक जेल प्रबंधन का ध्यान नहीं गया है।
यहां भी बंद हैं कुख्यात अपराधी
जिला जेल में विचाराधीन कैदियों को रखा जाता है। जब तक केस कोर्ट में चलता है, कैदियों को यहीं रखा जाता है। फिलहाल यहां 770 कैदी हैं, जिनमें 99 महिलाएं हैं। इनमें कई खतरनाक कैदी भी हैं।
जेल पहुंचे पिटाई से चिंतित परिजन
सेंट्रल जेल में हत्या के बाद कैदियों की जांच व कुछ संदिग्ध कैदियों की पिटाई का असर जिला जेल पर भी हुआ। शुक्रवार सुबह से ही जिला जेल में बंद कई कैदियों के परिजन जेल प्रबंधन से मिलने पहुंचने लगे। उन्होंने जेल अधिकारियों से गुजारिश की जेल में कैद उनके बेटे, पति को न पीटा जाए।
सेंट्रल जेल है कैदियों की पहली पसंद
आईनेक्स्ट को मिली जानकारी के मुताबिक जिला जेल के मुकाबले सेंट्रल जेल कैदियों की पहली पसंद है, क्योंकि जिला जेल के मुकाबले यहां पर कैदियों को अनैतिक तरीके से ज्यादा सुविधाएं मिल जाती हैं। यही वजह है कि कई बड़े अपराधों के रसूखदारों से संबंध रखने वाले कैदी भी यहीं रहना चाहते हैं। भू-माफिया बॉबी छाबड़ा ने भी कोर्ट से सेंट्रल जेल में रखने की गुजारिश की थी। इसके लिए उसने अफसरों पर भी दबाव बनाया था, लेकिन कोर्ट ने उसे जिला जेल में ही रखा था।
दीवारों पर लगाई जाए फेंसिंग व नेट
सेंट्रल जेल के पास राजकुमार ब्रिज है। जेल की दीवारों की ऊंचाई इस ब्रिज से कम है। हालात ये हैं कि इस जेल के आसपास की इमारतें भी इतनी ऊंची हैं कि उन पर चढ़कर कोई भी आसानी से देख सकता है कि जेल परिसर में क्या हो रहा है? चूंकि जेल की दीवारों की ऊंचाई अत्यधिक नहीं बढ़ाई जा सकती, इसलिए यहां दीवारों पर तार फेंसिंग कर हरी नेट भी लगाई जा सकती है। इसका फायदा यह होता है कि ऊंची इमारतों से भी जेल परिसर की गतिविधि नहीं दिखती और किसी व्यक्ति द्वारा जेल में फेंकी गई चीजें इस नेट में उलझ जाती हैं। चंडीगढ़ में जेल को सुरक्षित करने के लिए यही तरीका अपनाया गया है। वहां जेल की दीवारों पर लोहे के एंगल लगाकर उन पर नेट लगा दी गई। हालांकि जिला जेल की दीवारों की ऊंचाई सेंट्रल जेल के मुकाबले ज्यादा है। इस वजह से दीवारों पर फेंसिंग व नेट की ज्यादा जरूरत सेंट्रल जेल को है।
जिला जेल में भी हुई सर्चिंग
जेल में कैदी की हत्या की घटना के बाद सेंट्रल जेल के साथ ही जिला जेल में भी 150 पुलिस जवानों द्वारा कैदियों की चेकिंग की गई। जिला जेल के कैदियों के पास भारी मात्रा में तंबाकू व कुछ के पास रुपए निकले। रुपए तो जेल प्रबंधन ने ज?त कर लिए, लेकिन जेल कानूनों के तहत कैदियों को तंबाकू दिया जा सकता है। इस वजह से तंबाकू को ज?त नहीं किया गया। मगर सवाल ये है कि इतनी बड़ी मात्रा में तंबाकू जेल के अंदर पहुंचा कैसे? जेल प्रबंधन का कहना है हम रेगुलर जांच करते हैं।
वॉल वार्ड के सहारे ही रहती सुरक्षा
सेंट्रल जेल की दीवार के बाहर से परिसर में बंदूक फेंके जाने से कई सवाल खड़े हो गए हैं। इस तरह तो कैदियों को कोई भी चीज परिसर के बाहर से फेंककर दी जा सकती है। वैसे तो जेलों में वॉल वार्ड नियुक्त किए जाते हैं, जो परिसर के अंदर व दीवारों के आसपास भी नजर रखते हैं। इनकी जिम्मेदारी इस बात पर नजर रखने की होती कि परिसर में कोई बाहर से वस्तु तो नहीं आई। हालांकि ये भी पूरी तरह जेल के चारों ओर नजर नहीं रख पाते।
इनका कहना है
दो महीने पहले जेल परिसर में 6 पीटीजेड व 20 स्टिल सीसीटीवी कैमरे लगाने की योजना बनी थी। अधिकारों के निरीक्षण के बाद इनका स्थान तय हो चुका है। अब जल्द ही परिसर में कैमरे लगाएंगे। इसके अलावा जेल में एक वॉच टॉवर बनाने का प्रस्ताव भी स्वीकृत है। जल्द ही इस पर काम शुरू होगा।
-शैफाली तिवारी, जेल अधीक्षक, जिला जेल
सेंट्रल जेल में कैदियों पर नजर रखने के लिए कई पुख्ता इंतजाम हैं। जेल के चप्पे-चप्पे पर निगाह रखने के लिए लाखों रुपए खर्च कर सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। इसके बावजूद इस जेल में पिस्टल अंदर पहुंचा दी गई और उससे कैदी की हत्या कर दी गई। मगर इसके उलट जिला जेल में तो हालात और भी भयावह हैं। यहां तो कैदियों पर नजर रखने तक की पुख्ता व्यवस्था नहीं है। आईनेक्स्ट ने जिला जेल की नब्ज टटोली और सुरक्षा व्यवस्था के हर पहलू को जांचा, तो ऐसी खामियां सामने आईं जो ये बताती हैं कि यहां भी ऐसी कोई घटना आसानी से अंजाम दी जा सकती है।
क्या घटनाएं भी कैमरे लगने का इंतजार करती रहेंगी?
प्रदेश की 11 संवेदनशील जेलों में इंदौर की जिला जेल भी शुमार है। यही वजह है कि जिला जेल में दो महीने पहले 360 डिग्री एंगल तक घूमकर चारों ओर नजर रखने वाले 6 पीटीजेड कैमरे लगाने की योजना बनी है। इसके अलावा परिसर में 20 स्टिल कैमरे भी लगाए जाने हैं। इस योजना के बनने के बाद उज्जैन जेल के अधीक्षक संजय पांडे जिला जेल का मुआयना कर सीसीटीवी कैमरे लगाने के स्थानों का भी चयन कर चुके हैं। मगर अब तक सीसीटीवी कैमरे लगाने की शुरुआत नहीं हुई है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या घटनाएं सीसीटीवी कैमरे लगने का इंतजार करेंगी?
सब कुछ मेटल डिटेक्टर के भरोसे
जिला जेल में सुरक्षा के नाम पर सिर्फ 5 हैंड हेल्ड मेटल डिटेक्टर व 2 डोर मेटल डिटेक्टर ही हैं। जेल में प्रवेश करने वाले कैदियों की जांच इनके माध्यम से ही की जाती है। इस तरह स्पष्ट है कि फिलहाल जेल में बंदूक या अन्य हथियार जांचने के लिए सिर्फ ये चुनिंदा संसाधन हैं। जब तक परिसर में सीसीटीवी कैमरे नहीं लग जाते, यहां की सुरक्षा व्यवस्था मजबूत नहीं हो सकती।
वॉच टॉवर तक नहीं
जिला जेल में तो कैदियों व जेल के आसपास के इलाके पर नजर रखने के लिए वॉच टॉवर तक नहीं है। हालांकि जेल प्रबंधन का कहना है कि यहां टॉवर बनाने का प्रोजेक्ट भी स्वीकृत है, लेकिन हकीकत यह है कि इसका निर्माण अब तक शुरू नहीं हुआ है। उधर, सेंट्रल जेल में सिर्फ एक ही वॉच टॉवर है, जिस पर बैठकर जेलकर्मी जेल के अंदर व बाहर नजर रखते हैं। हालांकि यहां वॉच टॉवर की संख्या बढ़ाए जाने की जरूरत महसूस की जा रही है। नियमानुसर जेल के चारों ओर वॉच टॉवर लगाए जाने चाहिए, लेकिन इस ओर अब तक जेल प्रबंधन का ध्यान नहीं गया है।
यहां भी बंद हैं कुख्यात अपराधी
जिला जेल में विचाराधीन कैदियों को रखा जाता है। जब तक केस कोर्ट में चलता है, कैदियों को यहीं रखा जाता है। फिलहाल यहां 770 कैदी हैं, जिनमें 99 महिलाएं हैं। इनमें कई खतरनाक कैदी भी हैं।
जेल पहुंचे पिटाई से चिंतित परिजन
सेंट्रल जेल में हत्या के बाद कैदियों की जांच व कुछ संदिग्ध कैदियों की पिटाई का असर जिला जेल पर भी हुआ। शुक्रवार सुबह से ही जिला जेल में बंद कई कैदियों के परिजन जेल प्रबंधन से मिलने पहुंचने लगे। उन्होंने जेल अधिकारियों से गुजारिश की जेल में कैद उनके बेटे, पति को न पीटा जाए।
सेंट्रल जेल है कैदियों की पहली पसंद
आईनेक्स्ट को मिली जानकारी के मुताबिक जिला जेल के मुकाबले सेंट्रल जेल कैदियों की पहली पसंद है, क्योंकि जिला जेल के मुकाबले यहां पर कैदियों को अनैतिक तरीके से ज्यादा सुविधाएं मिल जाती हैं। यही वजह है कि कई बड़े अपराधों के रसूखदारों से संबंध रखने वाले कैदी भी यहीं रहना चाहते हैं। भू-माफिया बॉबी छाबड़ा ने भी कोर्ट से सेंट्रल जेल में रखने की गुजारिश की थी। इसके लिए उसने अफसरों पर भी दबाव बनाया था, लेकिन कोर्ट ने उसे जिला जेल में ही रखा था।
दीवारों पर लगाई जाए फेंसिंग व नेट
सेंट्रल जेल के पास राजकुमार ब्रिज है। जेल की दीवारों की ऊंचाई इस ब्रिज से कम है। हालात ये हैं कि इस जेल के आसपास की इमारतें भी इतनी ऊंची हैं कि उन पर चढ़कर कोई भी आसानी से देख सकता है कि जेल परिसर में क्या हो रहा है? चूंकि जेल की दीवारों की ऊंचाई अत्यधिक नहीं बढ़ाई जा सकती, इसलिए यहां दीवारों पर तार फेंसिंग कर हरी नेट भी लगाई जा सकती है। इसका फायदा यह होता है कि ऊंची इमारतों से भी जेल परिसर की गतिविधि नहीं दिखती और किसी व्यक्ति द्वारा जेल में फेंकी गई चीजें इस नेट में उलझ जाती हैं। चंडीगढ़ में जेल को सुरक्षित करने के लिए यही तरीका अपनाया गया है। वहां जेल की दीवारों पर लोहे के एंगल लगाकर उन पर नेट लगा दी गई। हालांकि जिला जेल की दीवारों की ऊंचाई सेंट्रल जेल के मुकाबले ज्यादा है। इस वजह से दीवारों पर फेंसिंग व नेट की ज्यादा जरूरत सेंट्रल जेल को है।
जिला जेल में भी हुई सर्चिंग
जेल में कैदी की हत्या की घटना के बाद सेंट्रल जेल के साथ ही जिला जेल में भी 150 पुलिस जवानों द्वारा कैदियों की चेकिंग की गई। जिला जेल के कैदियों के पास भारी मात्रा में तंबाकू व कुछ के पास रुपए निकले। रुपए तो जेल प्रबंधन ने ज?त कर लिए, लेकिन जेल कानूनों के तहत कैदियों को तंबाकू दिया जा सकता है। इस वजह से तंबाकू को ज?त नहीं किया गया। मगर सवाल ये है कि इतनी बड़ी मात्रा में तंबाकू जेल के अंदर पहुंचा कैसे? जेल प्रबंधन का कहना है हम रेगुलर जांच करते हैं।
वॉल वार्ड के सहारे ही रहती सुरक्षा
सेंट्रल जेल की दीवार के बाहर से परिसर में बंदूक फेंके जाने से कई सवाल खड़े हो गए हैं। इस तरह तो कैदियों को कोई भी चीज परिसर के बाहर से फेंककर दी जा सकती है। वैसे तो जेलों में वॉल वार्ड नियुक्त किए जाते हैं, जो परिसर के अंदर व दीवारों के आसपास भी नजर रखते हैं। इनकी जिम्मेदारी इस बात पर नजर रखने की होती कि परिसर में कोई बाहर से वस्तु तो नहीं आई। हालांकि ये भी पूरी तरह जेल के चारों ओर नजर नहीं रख पाते।
इनका कहना है
दो महीने पहले जेल परिसर में 6 पीटीजेड व 20 स्टिल सीसीटीवी कैमरे लगाने की योजना बनी थी। अधिकारों के निरीक्षण के बाद इनका स्थान तय हो चुका है। अब जल्द ही परिसर में कैमरे लगाएंगे। इसके अलावा जेल में एक वॉच टॉवर बनाने का प्रस्ताव भी स्वीकृत है। जल्द ही इस पर काम शुरू होगा।
-शैफाली तिवारी, जेल अधीक्षक, जिला जेल
Source: MP News in Hindi and Chhattisgarh News
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