Monday, 15 September 2014

Maoist sympathizers in preparation harvester

अपने स्थापना दिवस 21 सितम्बर के पूर्व नक्सली 13 से 19 सितम्बर तक राजबंदी कैदी सहानुभूति सप्ताह मना रहे हैं। इस सप्ताह में जगह-जगह रैलियां और सभा आयोजित कर आदिवासियों वेलफेयर से जुडे़ ज्वलंत मुद्दे उठाकर वे लोगों के दिलों-दिमाग पर छा जाने की तैयारी है। इसके लिए जेल में बंद आदिवासियों के परिजनों के भरण-पोषण के लिए दाल-चावल और खेती करने के लिए जमीन दिए जाने की कार्ययोजना पर अमल शुरू कर दिया गया है।

सहानुभूति सप्ताह के पहले दिन शनिवार को आंध्र-ओडिशा सीमावर्ती एरिया कमेटी के अंतर्गत चित्रकोण्डा जलाशय के अंदर रालेगेड़ा के जंगल में चार घंटे तक प्रजा मेला का आयोजन किया गया। इस मेला में कोरूकोण्डा एरिया कमेटी के सचिव विजयलक्ष्मी के नेतृत्व में 30 गांवों के एक हजार से अधिक ग्रामीण तथा डेढ़ सौ से अधिक सशस्त्र नक्सली उपस्थित हुए।

ग्रामीणों से विजयलक्ष्मी ने कहा कि नक्सली दर्शा कर मलकानगिरी, कोरापुट, गजपति, रायगढ़ा, विशाखापटनम, गंजाम जिले में एक हजार से अधिक निर्दोष आदिवासियों को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया है। मलकानगिरी जेल में ही 63 से अधिक बेकसूर आदिवासी नक्सली नाम पर बंदी हैं।

उन्हें तथा उनके परिवार को सहानुभूति प्रदान करने यह सप्ताह मनाया जा रहा है। सरकार की गलत नीतियों के कारण आदिवासियों को हो रहे नुकसान को जन नाट्य मंडली द्वारा नाच-गाकर समझाया रहा है। मलकानगिरी के पूर्व कलेक्टर आर विनिल कृष्णा के अपहरण के बाद जिन शर्तों को मानकर उन्हें रिहा किया गया था सरकार उन्हें भूल गई है बंदूक की नोक पर आदिवासियों के साथ अत्याचार किया जा रहा है। इसकी बड़ी कीमत सरकार को चुकानी होगी। यह कार्यक्रम ओड़िशा, छत्तीसगढ़, आंध्र सहित सभी नक्सली इलाकों में चलाया जाएगा।

आदिवासी कल्याण में सरकार विफल

नक्सली नेता विजयलक्ष्मी ने आंध्र तथा ओडिशा सरकार पर आदिवासी कल्याण की योजनाओं में विफल रहने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि चित्रकोण्डा जलाशय के कट-ऑफ एरिया में बसे सात पंचायतों के आदिवासियों के लिए कोई स्वास्थ्य सुविधा नहीं है। सरकार को इस इलाके के लिए तत्काल एम्बूलेंस व अच्छे चिकित्सकों की व्यवस्था करनी चाहिए।

सरकारें आदिवासी कल्याण के लिए नई योजनाएं लांच तो कर रही हैं पर उसका उचित क्रियान्वयन नहीं हो रहा है। सड़क का मेन्टेनेंस नहीं हो रहा है और न ही ग्रामीणों के लिए स्वच्छ पेयजल उपलब्ध है। राज्य सरकारें अपनी विफलता छूपाने दोष नक्सलियों पर मढ़ रही हैं।

नक्सल समस्या के उन्मूलन के लिए सुरक्षा बलों के बढ़ते दवाब के बीच अपने घटते जनाधार को पुर्नस्थापित करने नक्सलियों ने यह नया पैंतरा बदला है। जो राज्य सरकारों के लिए खतरे की घंटी है।

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