Friday, 12 September 2014

Messing with the future of the students in the name of quality

आदिवासी बहुल इलाके में संचालित बिलासपुर विश्वविद्यालय प्रबंधन शिक्षा में गुणवत्ता के नाम पर एक लाख से ज्यादा छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने पर उतारु हो गया है। विश्वविद्यालय ने शैक्षणिक सत्र प्रारंभ होने के तकरीबन डेढ़ महीने बाद अचानक तकनीकी शिक्षा से जुड़े आधा दर्जन से ज्यादा महत्वपूर्ण विषयों के पाठ्यक्रम में बदलाव कर दिया है।

एमएससी कंप्यूटर साइंस विषय लेकर पढ़ाई करने वाले तकनीकी छात्रों को विश्वविद्यालय ने करारा झटका दिया है। मौजूदा शैक्षणिक सत्र में इस विषय के छात्र अब हिंदी माध्यम से परीक्षा नहीं दिला पाएंगे। ऐसे छात्रों के लिए अंग्रेजी माध्यम को अनिवार्य शिक्षा में शामिल कर दिया गया है। छात्रों के साथ ही कॉलेज प्रबंधन के सामने भी मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। छात्रों के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था करने के लिए तकनीकी शिक्षा वाले कॉलेज प्रबंधकों को लैब को पूरी तरह अपडेट करना होगा। साथ ही किताबों की व्यवस्था भी करनी पड़ेगी। नए पाठ्यक्रम की किताबें प्रकाशित होकर कब तक बाजार में उपलब्ध हो पाएंगी, यह भी फिलहाल तय नहीं है।

बिलासपुर विश्वविद्यालय के अंतर्गत संभाग के तकरीबन 158 कॉलेज सम्बद्ध हैं। यहां एक लाख से ज्यादा छात्र-छात्राएं अध्ययनरत्‌ हैं। शहरी क्षेत्रों में संचालित महाविद्यालयों में परंपरागत पाठ्यक्रमों के अलावा तकनीकी शिक्षा से जुड़े पाठ्यक्रमों की शिक्षा भी दी जा रही है। समय के साथ कॉलेज प्रबंधकों ने अपने आपको अपडेट कर लिया है। सरकारी कॉलेजों के साथ ही निजी महाविद्यालयों में भी तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रमों को संचालन किया जा रहा है।

कस्बाई इलाकों में संचालित कॉलेजों में भी कमोबेश कुछ इसी तरह के पाठ्यक्रमों का जोर देखा जा रहा है। विश्वविद्यालय के शैक्षणिक कैलेंडर पर गौर करें तो 16 जून से शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हो जाती है। सत्र को प्रारंभ हुए दो महीने से अधिक हो रहा है। तय कैलेंडर के अनुसार महाविद्यालयों में पढ़ाई भी प्रारंभ हो गई है। दो महीने बाद अचानक विश्वविद्यालय प्रशासन को शिक्षा में गुणवत्ता व सुधार की बात याद आ गई। छात्रों के भविष्य की परवाह किए बगैर उन्होंने अपना फैसला भी सुना दिया।

पाठ्यक्रमों में बदलाव की जानकारी सीधे विश्वविद्यालय ने अपनी वेबसाइट पर डाल दी है। अचरज की बात ये कि आधिकारिक तौर पर इसकी सूचना कॉलेज प्रबंधन को देना भी उचित नहीं समझा गया है। कॉलेज के प्राचार्यों के सेलफोन पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने मैसेज कर इसकी खानीपूर्ति कर दी है। जानकारी के अनुसार पाठ्यक्रमों में बदलाव संबंधी मैसेज प्राचार्यों के मोबाइल पर 4 सितंबर को डाला गया है। वेबसाइट में जाने के बाद ही किस विषय के पाठ्यक्रम में किस स्तर पर बदलाव किया गया है, इसकी जानकारी मिलेगी।

इन विषयों के पाठ्यक्रम में बदलाव

एमएससी कंप्यूटर साइंस, एमए पूर्व हिंदी, एमए राजनीति शास्त्र, पीजीडीसीए, डीसीए व बीसीए प्रथम वर्ष।

एमटेक के पाठ्यक्रम को किया शामिल

एमएससी कंप्यूटर साइंस विषय लेकर पढ़ाई करने वाले छात्रों को अब कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। जानकारी के अनुसार विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसमें एमटेक के पाठ्यक्रम में शामिल कुछ महत्वपूर्ण विषयों को शामिल कर दिया है। इसके अलावा हिंदी माध्यम की अनिवार्यता को भी समाप्त कर दिया है। अब तक की व्यवस्था के तहत छात्रों को हिंदी व अंग्रेजी दोनों में से किसी एक माध्यम से परीक्षा देने की छूट थी। अब अंग्रेजी माध्यम से ही छात्रों को परीक्षा देनी होगी।

ये कैसा तुगलकी फरमान

हिंदी विषय लेकर पीजी करने वाले छात्रों को भी नए पाठ्यक्रम के झमेले से दो-चार होना पड़ेगा। अंतिम वर्ष के छात्रों को प्रैक्टिकल दिलाने की बाध्यता थी। अब पूर्व के छात्रों को भी इस तरह के इम्तिहान से गुजरना पड़ेगा। इनको थिसिस भी लिखनी होगी। थिसिस लिखने के लिए गाइड उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी कॉलेज प्रबंधन की होगी। गौर करने वाली बात ये है कि थिसिस के लिए गाइड उन्हीं प्राध्यापकों को नियुक्त किया जााता है, जिनकी नियुक्ति स्थाई होती है। अधिकांश कॉलेजों को इस तरह के संकट का भी सामना करना पड़ेगा।

बजट का संकट

शासकीय तथा निजी कॉलेजों में बजट का संकट भी आएगा। नए पाठ्यक्रमांें की किताबें खरीदने के अलावा तकनीकी शिक्षा के लिए कंप्यूटर के अलावा नए सॉफ्टवेयर भी बदलना होगा। इसके लिए लाखों रुपए की जरूरत पड़ेगी। शैक्षणिक सत्र की शुरुआत के बाद खरीद-बिक्री के लिए बजट संकट से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

क्या कहते हैं प्राचार्य

कुछ दिनों पहले इस संबंध में चर्चा हुई थी। पाठ्यक्रम के संबंध में विश्वविद्यालय का बदलाव कितना व्यावहारिक है इस बारे में कुलपति ही अच्छी तरह बता पाएंगे।

डॉ. अरविंद शर्मा प्राचार्य, एसबीआर कॉलेज

मुझे थोड़े-बहुत सिलेबस बदलने की जानकारी है, लेकिन पीजीडीसीए को अंगे्रजी माध्यम किए जाने की जानकारी नहीं है। अगर ऐसा है तो यह गंभीर मामला है। इससे मुश्किलें बढ़ जाएंगीं।

प्रो. आरसी पांडेय प्राचार्य, डीपी विप्र कॉलेज

तकनीकी शिक्षा से जुड़े पाठ्यक्रमों में बदलाव के संबंध में विश्वविद्यालय ने मोबाइल से मैसेज किया है। शैक्षणिक सत्र की शुरुआत के बाद इस तरह के बदलाव से छात्रों को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। कॉलेज प्रबंधन के सामने भी व्यावहारिक दिक्कतें आएंगीं।

डॉ. अजय तिवारी प्राचार्य, डीएलएस कॉलेज

सिलेबस बदलाव के संबंध में भला रात में मैं क्या बता सकता हूं।

डॉ.अरुण सिंह कुलसचिव, बिलासपुर विश्वविद्यालय

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