देश की रक्षा में अपनी जान देने वाले शहीद राजीव पाण्डेय के सम्मानस्वरूप, उनके परिवार को जो जमीन दी गई थी, उसमें दो हेक्टेयर कटौती कर दी गई है। उल्लेखनीय है कि सात हेक्टेयर जमीन दी गई थी, लेकिन उसमें से दो हेक्टेयर जमीन घास भूमि घोषित कर दी गई है। सरकार से मिले इस जमीन के टुकड़े के लिए परिवार को अब कोर्ट-कचहरी तक के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। वहीं शहीद की मां का कहना है कि हमें जमीन का लालच नहीं है, लेकिन मेरे बेटे को जमीन सम्मान स्वरूप दी गई है। मैं अपने बेटे के सम्मान के लिए मरते दम तक लड़ती रहूंगी।
सन 1987 में सियाचिन के खिलाफ ऑपरेशन मेघदूत में शरीक लेफ्टिनेंट राजीव पाण्डेय ने दुश्मनों से लड़ते-लड़ते अपनी जान गंवाई थी। इसके बाद तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने सन 1996-97 में शहीद राजीव पाण्डेय के परिवार को सम्मान स्वरूप अभनपुर के पास ग्राम बेलर में 7 हेक्टेयर (साढ़े 17 एकड़) जमीन दी थी। शहीद पाण्डेय का परिवार इस भूमि पर कृषि कार्य कर परिवार का जीवन-यापन कर रहा था। लेकिन साल 2003-04 में परिवार को पता चला कि 1 हेक्टेयर भूमि को घास भूमि घोषित कर दिया गया है। इस मामले में आवाज उठाना भी शहीद परिवार को महंगा पड़ा। परिवार ने जब जिला प्रशासन को इस संबंध में आवेदन दिया तो एक बार फिर 1 हेक्टेयर जमीन घास भूमि घोषित कर दी गई। शहीद परिवार तब से लेकर आज तक न्याय के लिए भटक रहा है।
न्याय की ल़ड़ाई में घिस गए जूते
अपनी भूमि वापस पाने की लड़ाई लड़ते-लड़ते शहीद परिवार के जूते घिस गए हैं। साल 2004 में जिला प्रशासन को इस संबंध में आवेदन देने के बाद से ही यह प्रकरण एसडीएम कोर्ट में लंबित है। तब से लेकर आज तक केवल आश्वासन ही शहीद परिवार को जिला प्रशासन की ओर से मिल रहा है। शहीद राजीव पाण्डेय के पिता ने भी देश की सेवा की है। वे आर्मी में डॉक्टर थे। शहीद के माता और पिता दोनों बुजुर्ग हो चुके हैं। ऐसे में इस मामले को उनके भाई देख रहे हैं।
तत्कालीन मुख्य सचिव से भी शिकायत
उक्त प्रकरण के संबंध में शहीद परिवार ने तत्कालीन मुख्य सचिव सुनिल कुमार से मिलकर अपनी व्यथा सुनाई थी और शासन-प्रशासन से मदद न मिलने की लिखित शिकायत की थी। इस पर सुनिल कुमार ने तत्कालीन राजस्व सचिव केआर पिस्दा को इस मामले में जल्द निपटारा करने पत्र अग्रेषित किया था और पांच दिन के भीतर रिपोर्ट मांगी थी। इसके बाद राजस्व सचिव स्वयं शहीद परिवार से मिलने पहुंचे और संबंधित मामले पर चर्चा की। कलेक्टर को मामले का जल्द निपटारा करने पत्र लिखा था, बावजूद इसके अब तक यह प्रकरण हल नहीं हो पाया है।
5 हेक्टेयर रह गई जमीन
सरकार ने शहीद राजीव पाण्डेय की मां शकुंतला पाण्डेय के नाम पर 7 हेक्टेयर जमीन आवंटित की थी, जो अब 5 हेक्टेयर रह गई है। शहीद परिवार को इस बात की पीड़ा है कि जब जमीन आवंटित की गई थी, तब जिला प्रशासन ने नाप-जोख कराई थी। पूरा खसरा निकालकर सीमांकन कराया था। तब क्या जिला प्रशासन को पता नहीं था कि कितनी जमीन घास भूमि है? जिला प्रशासन ने उस समय घास भूमि को क्यों अलग नहीं किया? आवंटन के 7 साल बाद जिला प्रशासन को ऐसा क्या हुआ कि उसने दो हेक्टेयर जमीन को घास भूमि घोषित कर दिया?
नहीं दी सूचना
शहीद परिवार ने बताया कि जब एक हेक्टेयर जमीन को जिला प्रशासन ने घास भूमि घोषित किया तब उन्हें सूचना नहीं दी गई। यह गुपचुप हुआ। जब वे अपनी जमीन देखने गए तब जानकारी हुई। इसका नया नक्शा खसरा भी जारी कर दिया गया था।
आहत है शहीद परिवार
इस पूरे मामले को लेकर शहीद परिवार आहत है। नम आंखों से शहीद की मां कहती हैं- 'मेरे बेटे के सम्मान में बॉर्डर पर स्मारक बनाया गया है, लेकिन यहां तो मेरे बेटे के सम्मान को मजाक बना दिया गया है। पहले सरकार जमीन देती है, फिर वापस ले लेती है। अगर सरकार को ऐसा ही करना था, तो जमीन दी ही क्यों थी?'
घास भूमि सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के आधार पर तय की जाती है। यह हाईकोर्ट का मामला है। मेरी जानकारी में नहीं है कि शहीद परिवार की जमीन को घास भूमि घोषित किया गया है। अगर ऐसा हुआ है तो शहीद परिवार की हर संभव मदद की जाएगी।
- ठाकुर राम सिंह, कलेक्टर रायपुर
सन 1987 में सियाचिन के खिलाफ ऑपरेशन मेघदूत में शरीक लेफ्टिनेंट राजीव पाण्डेय ने दुश्मनों से लड़ते-लड़ते अपनी जान गंवाई थी। इसके बाद तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार ने सन 1996-97 में शहीद राजीव पाण्डेय के परिवार को सम्मान स्वरूप अभनपुर के पास ग्राम बेलर में 7 हेक्टेयर (साढ़े 17 एकड़) जमीन दी थी। शहीद पाण्डेय का परिवार इस भूमि पर कृषि कार्य कर परिवार का जीवन-यापन कर रहा था। लेकिन साल 2003-04 में परिवार को पता चला कि 1 हेक्टेयर भूमि को घास भूमि घोषित कर दिया गया है। इस मामले में आवाज उठाना भी शहीद परिवार को महंगा पड़ा। परिवार ने जब जिला प्रशासन को इस संबंध में आवेदन दिया तो एक बार फिर 1 हेक्टेयर जमीन घास भूमि घोषित कर दी गई। शहीद परिवार तब से लेकर आज तक न्याय के लिए भटक रहा है।
न्याय की ल़ड़ाई में घिस गए जूते
अपनी भूमि वापस पाने की लड़ाई लड़ते-लड़ते शहीद परिवार के जूते घिस गए हैं। साल 2004 में जिला प्रशासन को इस संबंध में आवेदन देने के बाद से ही यह प्रकरण एसडीएम कोर्ट में लंबित है। तब से लेकर आज तक केवल आश्वासन ही शहीद परिवार को जिला प्रशासन की ओर से मिल रहा है। शहीद राजीव पाण्डेय के पिता ने भी देश की सेवा की है। वे आर्मी में डॉक्टर थे। शहीद के माता और पिता दोनों बुजुर्ग हो चुके हैं। ऐसे में इस मामले को उनके भाई देख रहे हैं।
तत्कालीन मुख्य सचिव से भी शिकायत
उक्त प्रकरण के संबंध में शहीद परिवार ने तत्कालीन मुख्य सचिव सुनिल कुमार से मिलकर अपनी व्यथा सुनाई थी और शासन-प्रशासन से मदद न मिलने की लिखित शिकायत की थी। इस पर सुनिल कुमार ने तत्कालीन राजस्व सचिव केआर पिस्दा को इस मामले में जल्द निपटारा करने पत्र अग्रेषित किया था और पांच दिन के भीतर रिपोर्ट मांगी थी। इसके बाद राजस्व सचिव स्वयं शहीद परिवार से मिलने पहुंचे और संबंधित मामले पर चर्चा की। कलेक्टर को मामले का जल्द निपटारा करने पत्र लिखा था, बावजूद इसके अब तक यह प्रकरण हल नहीं हो पाया है।
5 हेक्टेयर रह गई जमीन
सरकार ने शहीद राजीव पाण्डेय की मां शकुंतला पाण्डेय के नाम पर 7 हेक्टेयर जमीन आवंटित की थी, जो अब 5 हेक्टेयर रह गई है। शहीद परिवार को इस बात की पीड़ा है कि जब जमीन आवंटित की गई थी, तब जिला प्रशासन ने नाप-जोख कराई थी। पूरा खसरा निकालकर सीमांकन कराया था। तब क्या जिला प्रशासन को पता नहीं था कि कितनी जमीन घास भूमि है? जिला प्रशासन ने उस समय घास भूमि को क्यों अलग नहीं किया? आवंटन के 7 साल बाद जिला प्रशासन को ऐसा क्या हुआ कि उसने दो हेक्टेयर जमीन को घास भूमि घोषित कर दिया?
नहीं दी सूचना
शहीद परिवार ने बताया कि जब एक हेक्टेयर जमीन को जिला प्रशासन ने घास भूमि घोषित किया तब उन्हें सूचना नहीं दी गई। यह गुपचुप हुआ। जब वे अपनी जमीन देखने गए तब जानकारी हुई। इसका नया नक्शा खसरा भी जारी कर दिया गया था।
आहत है शहीद परिवार
इस पूरे मामले को लेकर शहीद परिवार आहत है। नम आंखों से शहीद की मां कहती हैं- 'मेरे बेटे के सम्मान में बॉर्डर पर स्मारक बनाया गया है, लेकिन यहां तो मेरे बेटे के सम्मान को मजाक बना दिया गया है। पहले सरकार जमीन देती है, फिर वापस ले लेती है। अगर सरकार को ऐसा ही करना था, तो जमीन दी ही क्यों थी?'
घास भूमि सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के आधार पर तय की जाती है। यह हाईकोर्ट का मामला है। मेरी जानकारी में नहीं है कि शहीद परिवार की जमीन को घास भूमि घोषित किया गया है। अगर ऐसा हुआ है तो शहीद परिवार की हर संभव मदद की जाएगी।
- ठाकुर राम सिंह, कलेक्टर रायपुर
Source:MP Hindi News and Chhattisgarh News
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