Monday, 8 September 2014

Ratlam district sewer rope to cross the support

झूलती रस्सी और उस पर एक-एक कदम रख आगे बढ़ने की मजबूरी... नाले में गिरने का खतरा उठाते हुए ग्राम बाजेड़ा के रहवासी प्रतिदिन इसी तरह गांव के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में आवाजाही करते हैं। स्कूल जाने से लेकर जरूरी सामान लाने तक यही क्रम दोहराया जाता है।

गांव के दूसरे हिस्से में पहुंचने के लिए वैकल्पिक मार्ग करीब तीन किमी लंबा है और कच्चा भी। इस से ग्रामवासी यह खतरा उठा रहे हैं। आलम यह है कि नाले के दोनों छोर पर अलग-अलग रस्सी बंधी दिखाई देती हैं, जिसकी रस्सी उसी परिवार केे लोग वहां से निकल पाते हैं।

बाजेड़ा में करीब पांच साल पहले बने स्टॉपडेम का बैक वॉटर गांव के बीच से निकल रहे नाले में जमा हो जाता है। इससे रस्सी का पुल बनाकर नाला पार करना पड़ता है। गर्मी के दौरान पानी सूखने पर दो-तीन माह छोड़कर शेष समय में यह समस्या बनी रहती है।

1800 की आबादी

जिला मुख्यालय से करीब 15 किमी दूर रतलाम-जावरा फोरलेन के करीब स्थित बाजेड़ा की आबादी करीब 1800 है। अधिकांश आबादी नाले के एक छोर पर ही रहती है, लेकिन गांव का विस्तार होने के साथ अब एक दर्जन घर नाले के दूसरे छोर पर भी बन गए हैं।

इसी तरह गांव की करीब 2 हजार बीघा जमीन नाले के दूसरे छोर पर है, जहां खेती के लिए दिन में कई बार ग्रामवासियों को नाला पार करना पड़ता है। इसमें बच्चे, महिलाएं और वृद्ध भी शामिल हैं। स्टॉपडेम बनने के बाद उपजी इस समस्या के निराकरण के लिए प्रशासकीय स्तर पर भी ग्रामवासियों ने प्रयास किए लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकला।

वैकल्पिक रास्ता कच्चा

गांव के दूसरे छोर पर जाने के लिए नेगदड़ा होकर जाने वाला मार्ग कच्चा व करीब तीन किमी लंबा होने के कारण ग्रामीण सीधे नाला पार करने का जोखिम उठा लेते हैं। वैकल्पिक मार्ग से खेत तक आने के लिए भी मशक्कत करना पड़ती है।

सिर्फ आश्वासन ही मिला

नाले के कारण गांव दो हिस्सों में बंट गया है। भोपाल से लेकर स्थानीय प्रशासन तक समस्या के निराकरण को लेकर संपर्क किया लेकिन आश्वासन ही मिला। खेती का सामान लाने-ले जाने में भी परेशानी आती है।

-धारासिंह सोलंकी, बाजेड़ा

समस्या को लेकर किसी का ध्यान नहीं है। शिकायत करने पर भी कोई हल नहीं निकला। नाले पर छोटी पुलिया बनाने से सुविधा होगी।

-सोहनसिंह गोहिल, बाजेड़ा

बड़ी राशि का अभाव

नाले पर रास्तानुमा पुलिया बनाने के लिए प्रस्ताव तैयार कराया था। इसमें आठ लाख रुपए की लागत आंकी गई थी। ग्राम पंचायत के पास इतनी बड़ी राशि नहीं है। वैसे दूसरे हिस्से में जाने के लिए वैकल्पिक रास्ता है। किसी अन्य मद से राशि मिलने पर पुलिया बन सकती है।

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