Wednesday, 17 September 2014

Two thousand teachers were challenged to transfer

प्रदेश के ढाई हजार अध्यापक महज तबादले के लिए विकलांग हो गए। स्कूल शिक्षा विभाग ने मेडिकल सर्टिफिकेट के आधार पर पिछले तीन साल में इन अध्यापकों का अपने पसंद की जगह तबादला किया है। मजे की बात यह है कि दो से 10 साल पहले भर्ती के समय ये अध्यापक पूरी तरह से स्वस्थ थे।

राज्य शासन ने पुरुष अध्यापकों की तबादला नीति अब तक नहीं बनाई है। पिछले 17 साल से एक ही स्थान पर काम कर रहे अध्यापकों ने तबादला कराने का नया तरीका तलाश लिया है। वे मेडिकल बोर्ड से विकलांगता सर्टिफिकेट बनवाते हैं और विभाग के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं। विभाग इस सर्टिफिकेट के आधार पर उनका पसंद के शहर या कस्बे में तबादला कर देता है।

वैसे तो प्रदेशभर में ऐसा हुआ है, लेकिन ग्वालियर संभाग में ऐसे तबादला लेने वाले शिक्षकों की संख्या ज्यादा है। यहां भी भिंड और मुरैना जिलों में ऐसे तबादले सबसे ज्यादा हुए हैं। तबादला कराने वाले अध्यापकों की विकलांगता का मुख्य आधार आंख और कान है। ज्यादातर अध्यापकों ने इन्हीं श्रेणी में खुद को विकलांग बताया है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में वर्तमान में 3.43 लाख अध्यापक और 7 हजार गुरुजी कार्यरत हैं।

तबादले के नियम

राज्य में सिर्फ महिला और विकलांग अध्यापकों के तबादले की अनुमति है। विकलांगता के आधार पर तबादले तभी संभव हैं जब तबादला चाहने वाला अध्यापक 40 फीसद से ज्यादा विकलांग हो और जिला स्तरीय मेडिकल बोर्ड ने उसकी विकलांगता को प्रमाणित किया हो।

पूर्व आयुक्त ने अपनाया कड़ा रुख

लोक शिक्षण संचालनालय के पूर्व आयुक्त अशोक बर्णवाल को इस गड़बड़ी की भनक लग गई थी। उन्होंने अपने कार्यकाल में विकलांगता के आधार पर पुरुष अध्यापकों के तबादले पर रोक लगा दी थी। उन्होंने साफ कहा था कि जो अध्यापक भर्ती के समय भी विकलांग थे। सिर्फ उन्हें ही तबादले की अनुमति रहेगी। शेष अध्यापकों के तबादले तभी होंगे, जब वे आयुक्त के समक्ष उपस्थित होकर प्रमाणित कर देंगे कि वे विकलांग हैं। सिर्फ मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर तबादला संभव नहीं होगा।

नौकरी पाने आए थे दूसरे शहर

संविदा शिक्षक के रूप में नौकरी मिलने की खुशी में युवा दूसरे शहर तक आ गए थे। जिसे जहां जगह मिली, उसने वहीं से फार्म भरा और भर्ती हो गई। अब घर और परिवार से दूर रहते लंबा समय हो गया है। पहले तो अध्यापक तबादला नीति का इंतजार करते रहे, लेकिन कई बार के प्रयास और मांग के बाद भी सरकार ने नीति नहीं बनाई, तो यह हथकंडे अपनाए।

इनका कहना है

यह मामला मेरी जानकारी में आया है। ऐसा ग्वालियर संभाग में हुआ है। जांच कराई जा रही है।

राजेश जैन, संचालक, लोक शिक्षण संचालनालय

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