Tuesday, 16 September 2014

When the time came to transfer the declare him self disabled

प्रदेश के ढाई हजार अध्यापक महज तबादले के लिए विकलांग हो गए। स्कूल शिक्षा विभाग ने मेडिकल सर्टिफिकेट के आधार पर तीन साल में इन अध्यापकों का पसंद की जगह तबादला किया है। दो से 10 साल पहले भर्ती के समय ये सभी पूरी तरह से स्वस्थ थे।

राज्य शासन ने पुरुष अध्यापकों की तबादला नीति अब तक नहीं बनाई है, लेकिन 17 साल से एक ही स्थान पर जमे अध्यापकों ने तबादला कराने का नया तरीका तलाश लिया है। वे मेडिकल बोर्ड से विकलांगता सर्टिफिकेट बनवाते हैं और विभाग उसी आधार पर उनका पसंद की जगह तबादला कर देता है।

वैसे तो प्रदेशभर में ऐसा हुआ है, लेकिन ग्वालियर संभाग में ऐसे शिक्षकों की संख्या सबसे ज्यादा है। इसमें भी भिंड-मुरैना जिले अव्वल हैं। तबादला कराने वाले अध्यापकों की विकलांगता का मुख्य आधार आंख और कान है।प्रदेश में वर्तमान में 3.43 लाख अध्यापक और 7 हजार गुरुजी कार्यरत हैं।

तबादले के नियम

राज्य में महिला और विकलांग अध्यापकों के तबादले की ही अनुमति है। विकलांगता के आधार पर तबादले तभी संभव हैं जब अध्यापक 40 फीसद से ज्यादा विकलांग हो और जिला स्तरीय मेडिकल बोर्ड ने उसे प्रमाणित करे।

पूर्व आयुक्त ने की थी सख्ती

लोक शिक्षण संचालनालय के पूर्व आयुक्त अशोक बर्णवाल को इस गड़बड़ी की भनक लगी थी। उन्होंने वकलांगता के आधार पर पुरुष अध्यापकों के तबादले पर रोक लगाते हुए साफ कहा था कि जो भर्ती के समय भी विकलांग थे उन्हें ही तबादले की अनुमति रहेगी। शेष के तबादले तभी होंगे, जब वे आयुक्त के समक्ष उपस्थित होकर विकलांगता प्रमाणित कर देंगे।

नौकरी पाने आए थे दूसरे शहर

बतौर संविदा शिक्षक नौकरी मिलने पर युवा जिसे जहां जगह मिली, वहीं से फार्म भरा और भर्ती हो गए। अब घर-परिवार से दूर रहते लंबा समय हो गया है। पहले तो ये तबादला नीति का इंतजार करते रहे। कई बार प्रयास और मांग के बाद भी सरकार ने नीति नहीं बनाई, तो यह हथकंडे अपनाने लगे।

करा रहे जांच

मामला मेरी जानकारी में आया है। ऐसा ग्वालियर संभाग में हुआ है। जांच करा रहे हैं।

राजेश जैन, संचालक, लोक शिक्षण संचालनालय

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