Wednesday 25 June 2014

Doctor religion

भगवान श्रीराम व रावण के बीच युद्ध चल रहा था। मेघनाद के शक्ति बाण से लक्ष्मण घायल होकर भूमि पर मूर्छित अवस्था में पड़े हुए थे।

जब हनुमानजी को इस बात का पता चला कि लंका में रहने वाले सुषेण वैद्य मरते हुए व्यक्ति को मृत्यु के मुंह से निकाल लेने की अनूठी क्षमता रखते हैं।

हनुमानजी जी तुरंत वैद्य सुषेण के घर जा पहुंचे। सुषेण उस समय गहरी नींद में थे। हनुमान जी उन्हें उसी अवस्था में उठाकर रणभूमि में ले आए। सुषेण जब नींद से जागे तो उन्होंने भगवान श्रीराम को खड़े देखा।

वैद्य ने फिर मूर्छित लक्ष्मण जी को देखा। वो समझ गए कि उन्हें यहां चिकित्सा के लिए लाया गया है।

वह हाथ जोड़कर बोले प्रभु आप मेंरे राजा रावण के विरुद्ध युद्ध कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में यदि में आपके भाई लक्ष्मण की चिकित्सा करता हूं तो मुझे स्वामी द्रोह का पाप लगेगा।

प्रभु बोले कि ऐसा नहीं है हां पर लंका के नागरिक होने के चलते पर राजद्रोह का पाप लग सकता है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने कहा हनुमान तुरंत वैद्य को लंका छोड़कर आओ।

श्रीराम की विनयशीलता व मर्यादा भरे वचनों ने वैद्य सुषेण का विवेक जाग गया। वह बोले वैद्य होने के कारण हर रोगी का इलाज करना मेरा पहला कर्तव्य है।

इसके लिए मैं देशद्रोही का पाप भी सहन करने के लिए तैयार हूं। किंतु चिकित्सक के धर्म को नहीं छोड़ूंगा और उन्होंन लक्ष्मण जी की चिकित्सा शुरू कर दी।

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